मुस्लिम देशों का दोहरा रवैया, आखिर अफगानिस्तान छोड़कर भगाने वाले लाखों मुस्लिम शरणार्थी कहां जाएं?
अफगानिस्तान को इस दलदल में फंसाने वाले अमेरिका ने अपने यहां इस देश के मुस्लिमों को शरण देने के लिए योजना बनाई है। लेकिन इन 57 मुस्लिम देशों के स्वार्थ और लालच को देखिए कि ये धर्म के नाम पर अपने मुस्लिम बहन-भाइयों को शरण देने के लिए तैयार नहीं।
संतोष पाठक। अब यह पूरी तरह से सुनिश्चित हो चुका है कि अफगानिस्तान पर तालिबान का लगभग पूरी तरह से नियंत्रण हो गया है और जल्द ही वे वहां अपनी सरकार बनाने जा रहे हैं। हालांकि पंजशीर जैसे एकाध प्रांत अभी तालिबान के कब्जे में नहीं आ सके हैं, इसके बावजूद यह तो निर्विवाद है कि अफगानिस्तान का भविष्य अब क्या होगा, इस बारे में कोई भी नहीं बता सकता है। इसलिए अपने भविष्य के संकट को देखते हुए तमाम अफगान नागरिक अपने देश से बाहर जाने की युक्ति में जुटे हुए हैं। इसका आरंभ तो उसी दिन से हो गया था जिस दिन अमेरिका ने सार्वजनिक तौर पर यह घोषणा की थी कि उसकी सेना अफगानिस्तान को छोड़ कर अब जल्द अपने देश लौट जाएगी।
उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान एक मुस्लिम देश है। अमेरिकी सेना की मौजूदगी के दो दशकों के दौरान भी अफगानिस्तान का राष्ट्रपति मुस्लिम ही बनता रहा है। हाल ही में देश छोड़कर भागने वाले गनी भी मुसलमान ही थे और अब बंदूक के सहारे सत्ता हासिल करने वाले तालिबानी भी मुसलमान ही हैं। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि मुस्लिम तालिबान शासक के बावजूद मुसलमानों को भी अफगानिस्तान छोड़ क्यों भागना पड़ रहा है? हिंदू, सिख और अन्य मतों के लोगों का अफगानिस्तान छोड़ने का कारण तो समझ में आता है, लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोग जिस तरह से अपना देश छोड़कर भाग रहे हैं, उससे कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि इस साल के आरंभ से लेकर अब तक चार लाख से अधिक लोग अफगानिस्तान से पलायन कर चुके हैं। तालिबान के शासन में आने के बाद यह आंकड़ा तेजी से बढ़ेगा, इस बात की पूरी आशंका है। आखिर अफगानिस्तान छोड़कर भगाने वाले लाखों मुस्लिम शरणार्थी कहां जाएं? दुनिया में कितने देश इन्हें शरण देने को तैयार हैं? दुनिया के कई देश इन मुसलमानों को अपने देश में क्यों नहीं आने देना चाहते हैं? दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले दुनिया के 57 मुस्लिम देश आखिरकार अपने मुस्लिम भाइयों को शरण क्यों नहीं दे रहे हैं? मुसलमानों की आबादी ज्यादा होने के कारण दुनिया के 57 देशों ने स्वयं को इस्लामिक देश घोषित कर रखा है, जिसमें भारत से अलग हुआ हमारा पड़ोसी पाकिस्तान भी शामिल है। इन 57 देशों ने दुनिया भर के मुसलमानों का भला करने के नाम पर ‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ के नाम से एक संगठन भी बना रखा है।
पिछले कई दशकों से कश्मीरी आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान की शह पर यह संगठन भारत के खिलाफ प्रस्ताव पारित करता रहा है, लेकिन जब मुसलमानों पर चीनी अत्याचार या अमेरिकी बर्बरता की खबरें आती हैं तो इन्हे सांप सूंघ जाता है। वर्तमान संकट के समय भी अधिकांश मुस्लिम देशों ने अफगान शरणार्थियों को अपने देशों में घुसने पर पाबंदी लगा दी है। इससे पहले रोहिंग्या मुस्लिम और सीरियाई मुस्लिम समस्या के समय भी इन 57 मुस्लिम देशों का दोहरा रवैया सामने आया था। इसके विपरीत अमेरिका, ब्रिटेन सहित दुनिया के कई देश अफगानी नागरिकों को शरण देने के लिए नीतियों की घोषणा कर रहे हैं। कनाडा ने भी महिला नेता और तालिबान द्वारा सताए गए 20 हजार अफगानियों को शरण देने का एलान किया है।
जब अमेरिका ने अपना डंडा घुमाया और मदद के नाम पर लालच दिखाया तो कई मुस्लिम देश अमेरिकी योजना के तहत इन्हें शरण देने को तैयार तो हो गए, लेकिन अस्थायी तौर पर। कई मुस्लिम देशों ने तो अफगानी नागरिकों को निकलने का रास्ता देने के लिए भी अमेरिका से वसूली की।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)