Move to Jagran APP

Goswami Tulsidas Birth Anniversary: जिनके हृदय बसे मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम

आज श्रावण शुक्ल सप्तमी को पावन जयंती है गोस्वामी तुलसीदास जी की जिनके मन मंदिर में बसने वाले प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर के अयोध्या में भूमिपूजन की शुभ घड़ी अब बहुत ही समीप है..

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 27 Jul 2020 02:29 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2020 02:29 PM (IST)
Goswami Tulsidas Birth Anniversary: जिनके हृदय बसे मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम
Goswami Tulsidas Birth Anniversary: जिनके हृदय बसे मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम

संत मैथिलीशरण (भाई जी)। कोई महान कृतिकार अपने अस्तित्व को और अपनी कृति को स्वयं ही पूरी तरह नकार दे, यह तो केवल हमने तुलसीदास जी महाराज में ही देखा। उन्होंने अपने संपूर्ण अस्तित्व-कृतित्व का श्रेय श्रीराम को ही दिया और पूर्णरूपेण श्रीराममय हो गए। रामायण में भरत जी, लक्ष्मण जी, शत्रुघ्न जी, हनुमान जी, सीता जी और माण्डवी, उर्मिला, ये सारे पात्र रामराज्य के मंदिर और शिखर में नींव के पत्थर के रूप में विलीन हो गए, श्रीराम के उद्देश्यों के लिए। तुलसीदास पर इस विलीनीकरण की भारी छाप है और उन्होंने भी अपने को विलीन कर दिया।

loksabha election banner

आज भी तुलसी के नाम का कोई पंथ नहीं बना। सारे के सारे गुण श्रीराम में हैं और मुझमें कुछ नहीं, यह तुलसीदास की कोई प्रायोजित अलौकिकता नहीं है। दरअसल भक्ति का यह सहज स्वरूप ही है, जिसमें प्रेमी अपने प्रेमास्पद को अर्पित हो जाता है। पूज्य रामकिंकर जी बड़े चाव में भरकर इस प्रसंग को कहते थे कि श्रीरामचरितमानस माने, जिसमें काल, व्यक्ति और स्थान की सत्ता गौण हो जाए, बस वहीं श्रीराम हैं, वहीं श्रीराम का मंदिर है और वहीं पर श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा भी है।

कहां त्रेता, कहां तुलसीदास का काल! लाखों वर्ष का अंतर, पर नहीं, इसी अंतर को समाप्त करना रामायण है और भक्ति है। कथा है कि तुलसीदास जी भगवान श्रीराम के मंदिर में पहुंचे, लौटने लगे। भगवान ने पूछा क्यों आए और क्यों लौट रहे हो? तुलसीदास बोले मैं जो सुनकर आया वह विशेषता आपके दरबार में नहीं होने के कारण लौट रहा हूं। भगवान ने पूछा, क्या सुनकर आए थे? तुलसीदास जी बोले, हमने सुना कि आप पतितपावन हैं पर आपकी सभा में तो सब एक से एक बड़े भक्त हैं तो निराश होकर लौट रहा हूं। भगवान ने कहा कि हमसे तुम्हारी निराशा दूर हो जाए, कोई रास्ता है? तब तुलसीदास जी बोले, आप मुझे अपनी शरण में ले लीजिए और फिर मेरे बाद कोई आपसे पूछे कि आप कैसे पतितपावन हैं तो मेरी ओर संकेत करके बता दीजिएगा कि मैंने इस तुलसीदास जैसे पतित को शरण में लिया है, इस कारण से मैं पतितपावन हूं। वास्तव में तुलसीदास जी की श्रीराम निष्ठा ने समस्त सनातन धर्म को रामनिष्ठ कर दिया।

कबि न होउं नहिं बचन प्रबीनू।

सकल कला सब बिद्या हीनू।।

मुझमें न तो किसी प्रकार की कोई कला है और न ही भाषा का ही कोई गुण है पर मुझे विश्वास है कि श्रीरामचरितमानस केवल इसलिए संपूज्य होगी क्योंकि इसमें भगवान श्रीराम के नाम का प्रताप प्रकट है और श्रीराम स्वयं भी इसमें प्रकट हुए हैं। यह रामकथा सबका मंगल करेगी और कलियुग के मल को धो देने वाली गाथा सिद्ध होगी। तुलसीदास जी का यह जो विश्वास है, यही उनका शिव स्वरूप है। तुलसीदास जी ने मानस में ज्ञान का दीपक जलाया।

सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा।

दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा।।

दासो हम की भक्ति भावना के द्वारा यदि किसी ने ज्ञान दीपक जला दिया हो तो वे एकमात्र तुलसीदास जी हैं।

जिमि थल बिनु जल रह न सकाई।

कोटि भांति कोउ करै उपाई।।

तथा मोच्छ सुख सुनु खगराई।

रहि न सकइ हरि भगति बिहाई।।

खंडन-मंडन की तीखी धार का उपयोग किए बिना केवल सत्य और तथ्य के आधार पर प्रत्येक मत को मतभेद से बचाकर सम्मत करना तुलसीदास जी का वैशिष्ट्य है। तुलसीदास जी ने भक्ति की मणि दी, जिसको किसी बाह्य उपादान की जरूरत नहीं है। वे कहते हैं कि दीपक के प्रकाश के लिए घी, बत्ती, दीपक, अग्नि, तेज पवन का अभाव, ये उपादान और संयोग चाहिए, पर मणि के प्रकाश में कुछ नहीं चाहिए वह स्वयं प्रकाशित है। यदि जीवन में भक्ति आ जाए तो किसी अन्य साधन की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि जो साध्य ईश्वर है वह सब साधन संपन्न है, उसकी कृपा पाने के बाद हमारे बिना किसी प्रयास के वह स्वयं ही पूरे जीवन को कृपाप्रसाद बना देगा।

परम प्रकास रूप दिन राती।

नहिं कछु चहिए दिया घृत बाती।।

यही भक्ति का स्वतंत्र रूप है जहां पर किसी उपादान आश्रय की अपेक्षा और स्वीकृति भी नहीं है। तुलसीदास जी ने गांव और नगर के बीच दो कूल (किनारे) दिए जो अपने आप में अद्भुत है।

श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुं कूल।

संत सभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल।।

तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस के रूप में ज्ञान भक्ति, कर्म और शरणागति के चार ऐसे घाट दिए जिनमें उतरने पर श्रीराम के दिव्य चरित्र का जल भरा हुआ है और प्रत्येक प्राणी उसका लाभ उठा सकता है।

सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।

तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि।।

चाहे ज्ञानी हो, चाहे भक्त हो या फिर कर्मयोगी या फिर बिल्कुल योग्यतारहित मनुष्य या पशु ही क्यों न हो श्री सीताराम के विशद यश का-चरित्र का पवित्र जल जिस मानस सरोवर में भरा हुआ है, वह तो सबको समान ही मिलेगा। हमें राम नाम का वह बीज मंत्र दिया जिसमें सारी सृष्टि के गहनतम रहस्य छिपे हुए हैं। राम नाम में सूर्य का प्रकाश है, राम नाम में ही चंद्रमा की शीतलता है और राम नाम में ही अग्नि तत्व भी है। तुलसीदास जी ने हमें परम विश्राम लेने की विधि बतलाई जिसको श्रीराम को जाने और पढ़े बगैर पा सकना असंभव है।

जाकी कृपा लवलेस ते मतिमंद तुलसीदासहूं।

पायो परम बिश्राम राम समान प्रभु नाहीं कहूं।।

कोई भी बड़ा श्रम करके थकान होना बुद्धिजीवी होने का लक्षण है, पर कार्य करके परम विश्राम देने वाली रामकथा तो तुलसीदास जी ने ही लिखी। उनका मानना था कि हमारे पास बुद्धि हो तब ही तो हमें थकान और कर्तव्य का बोध होगा, करने वाले तो सब श्रीराम जी हैं और रचना शंकर जी की है, मेरा कुछ है ही नहीं। तुलसी साहित्य का यह अनादि तत्व सार्वकालिक और चिरजीवी है कि जो कुछ है वह सब ईश्वर ही है और वही हममें बोध कराता है।

तुलसीदास जी ने शैव और वैष्णवों के बीच सेतु बनकर सबके हृदय में हरिहरात्मक भावना को जन्म देकर तमसो मां ज्योतिर्गमय की अलख जगाई। लोक और वेद के बीच तुलसीदास जी ने सेतु बनाया और रामकथा की धारा बहाई। तुलसीदास जी का यह योगदान सत्यरूप सनातन धर्म की ध्वजा पताका को फहराता है। जिस धर्म में कोई हारता नहीं है और न कोई हराता है, विलीन होता है और विलीन ही करता है, वह ही सत्यरूप सनातन धर्म है।

आज श्रावण शुक्ल सप्तमी को पावन जयंती है गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज की, जिनके मन मंदिर में बसने वाले प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर के अयोध्या में भूमिपूजन की शुभ घड़ी अब बहुत ही समीप है..


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.