आखिर कौन है सुब्रमण्यम भारती, पीएम मोदी ने लाल किले के प्राचीर से भी लिया था उनका नाम, सुनाई थी उनकी कविता
पीएम मोदी ने उनकी एक तमिल कविता एलारुम एलिनेलैई एडुमनल एरिएई सुनाई थी। इसका तात्पर्य है कि भारत दुनिया के हर बंधन से मुक्ति पाने की राह दिखाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कौन है सुब्रमण्यम भारती। दक्षिण के साहित्य इतिहास में उनका क्या योगदान है।
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इसके पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती की एक तमिल कविता सुनाई थी। तब तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती चर्चा में थे। पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से उनकी एक तमिल कविता 'एलारुम एलिनेलैई एडुमनल एरिएई' सुनाई थी। इसका तात्पर्य है कि भारत दुनिया के हर बंधन से मुक्ति पाने की राह दिखाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कौन है सुब्रमण्यम भारती। दक्षिण के साहित्य इतिहास में उनका क्या योगदान है।
तमिल भाषा के एक प्रख्यात कवि
दरअसल, सुब्रमण्यम का संबंध दक्षिण के प्रांत तमिलनाडु से था। वह तमिल भाषा के एक प्रख्यात कवि थे। दक्षिण में यह महाकवि भरतियार के नाम से भी विख्यात थे। इनकी रचनाएं देश प्रेम और देश भक्ति से ओत-प्रोत हैं। सुब्रमण्य एक कवि के साथ ब्रिटिश काल में देश की आजादी में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। इसके साथ वह समाज सुधारक और पत्रकार भी थे। देश की आजादी के दौरान सुब्रमण्यम की रचनाओं से प्रभावित होकर कई लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। 11 दिसंबर, 1982 को उनका जन्म हुआ था।
राष्ट्रीय कांग्रेस के संपर्क में आए सुब्रमण्यम
देश की आजादी के दौरान वह राष्ट्रीय कांग्रेस के संपर्क में आए। 1900 तक वह भारत के राष्ट्रीय आंदोलन से पूरी तरह से जुड़ चुके थे। सुब्रमण्यम ने कांग्रेस की अधिकतर बैठकों में हिस्सा लिया। 1907 के ऐतिहासिक सूरत कांग्रेस सम्मेलन में भी वह सम्मिलित हुए थे। कांग्रेस की इस बैठक में नरम दल और गरम दल का स्पष्ट विभाजन हो गया था। सुब्रमण्यम ने गरम दल का समर्थन किया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनका लेखन कार्य बंद नहीं हुआ।
कई भाषाओं के जानकार थे सुब्रमण्यम
सुब्रमण्यम का संबंध भले तमिल भाषा से रहा हो, लेकिन वह कई भाषाओं के जानकार थे। उनकी रचनाओं में आम आदमी बसता था। यही वजह रही कि उनकी रचनाओं में उनकी भाषा शैली अति सरल और सुबोध थी। वह तमिल को सबसे मीठी बोली वाली भाषा मानते थे। उनकी रचना गीतांजलि, जन्मभूमि और पांचाली सप्तम में आधुनिक तमिल भाषा का प्रयोग किया गया है। इसके चलते उनकी भाषा जनभाषा बन गई। वह कई भाषाओं के जानकार थे। उनकी पकड़ हिंदी, बंगाली, संस्कृत, और अंग्रेजी में थी। उनका साहित्य कई भाषाओं में उपलब्ध है।