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जानिए, किस देश में होगा कोरोना वैक्सीन का कितना उत्पादन और कहां आता है इसमें भारत

दुनियाभर में इस्‍तेमाल की जाने वाली 60 फीसद वैक्‍सीन का उत्‍पादन अकेले भारत में ही होता है। जानलेवा कोरोना वायरस की कारगर वैक्‍सीन के उत्‍पादन को लेकर भी पूरी दुनिया की नजर भारत पर ही टिकी हुई हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 15 Jan 2021 10:00 AM (IST)Updated: Fri, 15 Jan 2021 10:00 AM (IST)
जानिए, किस देश में होगा कोरोना वैक्सीन का कितना उत्पादन और कहां आता है इसमें भारत
भारत में होता है सबसे अधिक वैक्‍सीन का उत्‍पादन

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए तैयार की जा रही कई वैक्सीन जब परीक्षण के अंतिम दौर में पहुंचीं तभी कंपनियों ने उनकी खुराक का उत्पादन शुरू कर दिया। फिलहाल, फाइजर, मॉडर्ना व ऑक्सफोर्डस्ट्राजेनेका आदि की वैक्सीन को कई देशों में इस्तेमाल की इजाजत मिल चुकी है। भारत ने स्वदेशी को वैक्सीनको भी आपातकालीन इस्तेमाल की इजाजत दे दी है, जिसका फिलहाल तीसरे दौर का परीक्षण चल रहा है। हालांकि, नियामकों का कहना है कि कोवैक्सीन के पहले व दूसरे दौर के परीक्षण परिणाम प्रभावी रहे हैं। आइए जानते हैं कि मौजूदा साल के अंत तक कौन सा देश कोरोना वैक्सीन की कितनी खुराक का उत्पादन कर सकता है...

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अमेरिका सबसे आगे

आंकड़ों का विश्लेषण करने वाली कंपनी एयरफाइनिटी के अनुसार, अमेरिका के पास वर्ष 2021 के अंत तक कोरोना वैक्सीन की 4.69 अरब खुराक के उत्पादन की क्षमता है। फाइजर व मॉडर्ना की वैक्सीन के परीक्षण के अंतिम दौर में पहले पहुंचने से अमेरिका में वैक्सीन उत्पादन को गति मिली है।

भारत सबसे ज्यादा क्षमतावान

वैक्सीन उत्पादन के मामले में भारत सबसे आगे है। दुनियाभर में दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की वैक्सीन के 60 फीसद से ज्यादा का उत्पादन भारत में होता है। हालांकि, कोरोना वैक्सीन उत्पादन के मामले में अपना देश अमेरिका से पीछे होता दिखाई दे रहा है। वर्ष 2021 के अंत तक अपने देश में कोरोना वैक्सीन की 3.13 अरब खुराक का उत्पादन हो सकता है। माना जा रहा है कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका व भारत बायोटेक की वैक्सीन तीसरे दौर के परीक्षण में देर से पहुंचीं और इसका प्रभाव उनकी खुराक के उत्पादन पर भी पड़ा।

कमाई के मामले में पीछे है सीरम

सीरम भले ही दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी हो, लेकिन कमाई के मामले में पीछे रह जाती है। वर्ष 2015 में कंपनी का कुल राजस्व 55.6 करोड़ डॉलर यानी करीब 4,062 करोड़ रुपये था। इसके मुकाबले सैनोफी का राजस्व 35 अरब व फाइजर का 50 अरब यानी करीब 2,557 अरब व 3,653 अरब रुपये था। इसकी एक वजह यह है कि सीरम वैक्सीन उत्पादन का बड़ा हिस्सा कम कीमत पर देश के भीतर ही उपलब्ध करा देता है।

सीरम की उत्पादन क्षमता सर्वाधिक

एक्सेस टू मेडिसिन फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार, पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया हर साल वैक्सीन की 1.4 अरब खुराक का उत्पादन कर सकती है। दूसरी तरफ, फ्रांस की दवा निर्माता कंपनी सैनोफी प्रति वर्ष वैक्सीन की एक अरब खुराक का उत्पादन करने में सक्षम है। ब्रिटिश दवा निर्माता कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन हर साल वैक्सीन की 70 करोड़ खुराक का उत्पादन कर सकती है। फाइजर ने उत्पादन क्षमता को सार्वजनिक नहीं किया है। जर्मन प्रसारक डॉयचे वेले के अनुसार, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका ने सीरम इंस्टीट्यूट के साथ कोविशील्ड वैक्सीन की एक अरब खुराक के उत्पादन की योजना की है।


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