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हीरों की नगरी के नाम से है विख्यात ये शहर, जहां कभी रुके थे भगवान श्रीकृष्ण

सूरत शहर की आज जो सूरत है, इसमें कितनी ही सभ्यताओं का योगदान रहा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की हालिया रिपोर्ट में इसे दुनिया के सबसे अधिक जीडीपी वाले शहरों में शीर्ष पर रखा गया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 01 Feb 2019 02:17 PM (IST)Updated: Sat, 02 Feb 2019 08:52 AM (IST)
हीरों की नगरी के नाम से है विख्यात ये शहर, जहां कभी रुके थे भगवान श्रीकृष्ण
हीरों की नगरी के नाम से है विख्यात ये शहर, जहां कभी रुके थे भगवान श्रीकृष्ण

[डॉ. कायनात काजी]। सूरत का नाम जेहन में आते ही हीरा, जरीवाली साड़ी और सूरती साड़ियों का ख्याल आता है। जो भी इस शहर से मुखातिब हुआ, वह इसकी स्वच्छता का भी मुरीद हुआ। आज सूरत की जो सूरत बदली है, उसे देखकर कहा जा सकता है कि यह शहर तेजी से आगे बढ़ रहा है। अनेक फ्लाइओवर्स से सजे इस शहर को रात की रोशनी में देखें तो नजरें चौंधिया जाती हैं। वैसे, आधुनिकता के पथ पर बढ़ते सूरत का इतिहास भी कम गौरवपूर्ण नहीं। एक ऐसा इतिहास, जिसमें पुर्तगाली, आर्मेनियन और अंग्रेजों के साथ व्यापार और संघर्ष दोनों जुड़े हुए हैं।

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अगर पौराणिक कथाओं का रुख करें तो ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान कृष्ण ने अपनी मथुरा से द्वारका की यात्रा के दौरान निवास किया था। वहीं, सूरत सोलहवीं सदी का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था, जिसका व्यापार की दृष्टि से बड़ा महत्व था। इसीलिए अंग्रेज और डच लोगों में इस शहर को लेकर युद्ध हुआ। दोनों ही यूरोप से व्यापार करने के लिए इस बंदरगाह को फायदे का सौदा मानते थे और इस पर अधिकार पाना चाहते थे। बड़ा ही अनूठा है इसका कल और आज भी। सांस्कृतिक रूप से भी बड़ा समृद्ध है यह शहर।

तीसरा सबसे स्वच्छ शहर: यह देश का तीसरा सबसे साफ-सुथरा शहर माना जाता है। इसकी झोली में पुरस्कारों की कोई कमी नही है। हाल ही में स्मार्ट सिटी अभियान के अंतर्गत सूरत को बेस्ट सिटी सम्मान मिला है। यह एक स्मार्ट सिटी यूं ही नहीं है। इसे ‘फ्लाइओवर्स का शहर’ भी कहा जाता है।

फर्श से अर्श तक: साफ पानी से लेकर, लोकल ट्रांसपोर्ट, नागरिक सुरक्षा तक सब कुछ बड़ा चाक-चौबंद है यहां। हाल में सूरत म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने यहां शहर के बारछा इलाके में 40 टन लोहे के कबाड़ से बनी शेर की प्रतिमा स्थापित की है। यह आज शहर का नया आकर्षण है, पर प्रगति का यह सफर किसी परीकथा सरीखा है। एक ऐसा समय भी था, जब सूरत में भीषण विनाशलीला हुई। इस शहर पर पुर्तगालियों, डचों और अंग्रेजों के साथ-साथ मराठा राजा शिवाजी ने भी आक्रमण किया था।

साल 1790-91 में यहां फैली महामारी में एक लाख लोगों की मौत हो गई थी। 1837 की भयानक आग और बाढ़ ने सूरत की कई इमारतों को नष्ट कर दिया था। इतना ही नहीं, पिछली सदी के आखिर यानी 1994 में भारी बारिश और बंद नालियों की वजह से सूरत में भयंकर बाढ़ आई थी। समय रहते गंदे कचरे और मृत पशुओं को न हटाए जाने से यहां भयंकर महामारी फैली। इसने प्रशासन को शहर की सूरत बदलने को मजबूर कर दिया। नगरपालिका ही नहीं, बल्कि शहर के लोगों ने भी इसमें खासा योगदान दिया। आज सूरत म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को बड़ा जागरूक सरकारी संगठन माना जाता है।

स्मार्ट हेरिटेज वॉक: सूरत एक स्मार्ट सिटी है, इसलिए यहां घूमने का तरीका भी काफी स्मार्ट है। अगर आप इस आधुनिक सिटी को इसके अतीत के साथ जोड़कर देखना चाहते हैं तो इसका बंदोबस्त भी सूरत म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने कर दिया है। आपकी सुविधा के लिए एक सूरत हेरिटेज वॉक एप है, जिसे डाउनलोड कर बिना किसी की सहायता के शहर के धरोहरों से रूबरू हो सकते हैं। मात्र 2.5 किलोमीटर के दायरे में फैली इस हेरिटेज वॉक में आप 25 ऐतिहासिक महत्व की संरचनाओं को एप में बने इंटरैक्टिव मैप और जानकारी की सहायता से देख सकते हैं। ढाई किलोमीटर की यह हेरिटेज वॉक शुरू होती है इंग्लिश सिमेट्री से और डच व आर्मेनियन सिमेट्री होते हुए सूरत फोर्ट पर खत्म होती है। इस बीच पड़ते हैं कुछ बेहद खास स्मारक जैसे पाश्र्वनाथ जैन मंदिर, जिसका 55 फीट ऊंचा गुंबद पूरे भारत में प्रसिद्ध है, पुरानी हवेलियां और अन्य महत्वपूर्ण धरोहर।

 

खूबसूरत गोपी तालाब: सूरत शहर में मनोरंजन के सबसे प्राचीन साधन के रूप में विख्यात गोपी तालाब साल 1510 में उस समय के मुगल गवर्नर मलिक गोपी द्वारा तैयार कराया गया। यह शहर में पानी की आपूर्ति के प्रमुख स्रोत के रूप में बनवाया गया था। लंबे समय तक यह जल संरचना नगर को जलापूर्ति करती रही, लेकिन कालांतर में अन्य तालाबों की तरह इसकी हालत भी बिगड़ने लगी। हालांकि यहां के प्रशासनिक अधिकारियों और आम जनता ने मिलकर इसका भी जीर्णोद्धार किया है। आज यह शहर का मुख्य पिकनिक स्पॉट बन गया है। अब यह एक खूबसूरत तालाब है, जहां पर मनोरंजन के अनेक साधन मौजूद हैं। जैसे यहां थीम पार्क है, गेमिंग जोन हैं, जहां आकर बच्चे और युवा आनंदित होते हैं।

डायमंड से पहचान: सूरत शहर के आज को समझने के लिए इस शहर के कल को समझना जरूरी है। इसके लिए सरदार वल्लभभाई पटेल म्यूजियम से बेहतर जगह और कोई नहीं हो सकती है। इस तीन मंजिला इमारत में अलगअलग तल पर गैलरीज बनाई गई हैं। इसके ग्राउंड फ्लोर पर साइंस सेंटर शोकेस, 3डी थियेटर है। पहली मंजिल पर फन साइंस एग्जीबिट्स हैं, दूसरी मंजिल पर डायमंड गैलरी, टेक्सटाइल गैलरी आदि मौजूद हैं। सूरत आकर डायमंड के बारे में जानने की काफी जिज्ञासा होती है। आखिर दुनिया का 90 प्रतिशत डायमंड कटिंग और पॉलिश के लिए यहीं आता है। आप यहां की सदियों पुरानी कला से रूबरू होना चाहते हैं तो यह और कहीं नहीं, इसी म्यूजियम में मिलेगा।

ऐतिहासिक दांडी और बारदोली

दांडी में नमक सत्याग्रह स्मारक: सूरत शहर से दांडी मात्र 31 किलोमीटर की दूरी पर है। इस गांव में महात्मा गांधी के दांडी मार्च की याद में बापू की एक प्रतिमा भी लगी हुई है, जहां महात्मा गांधी नमक का क़ानून तोड़ते नजऱ आते हैं। यहां ‘नमक सत्याग्रह स्मारक’ बनाया गया है, जो इन दिनों चर्चा में है। दांडी नवसारी जिले के जलालपुर तालुका में पड़ने वाला एक छोटा-सा गांव है, लेकिन इसका नाम महात्मा गांधी के नमक आंदोलन के कारण इतिहास में अमर हो चुका है। जब महात्मा गांधी ने 1930 में अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा था और नमक कानून तोड़ा था, तब उन्होंने दांडी मार्च यहीं से निकाला था।

बारदोली : सूरत से बारदोली 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 1928 में बारदोली सत्याग्रह की शुरुआत यहीं से हुई थी। इस आंदोलन की कमान सरदार वल्लभ भाई पटेल ने संभाली थी। 1925 में बारदोली में बाढ़ और महामारी से बड़े पैमाने पर किसानों की फसलें खराब हुई थीं। उस पर ब्रिटिश हुकूमत ने टैक्स 30 प्रतिशत और बढ़ा दिया था, जिससे इस क्षेत्र के किसान बेहाल थे। इसी संघर्ष ने आगे चलकर बारदोली सत्याग्रह का रूप लिया। यहां सरदार पटेल नेशनल म्यूजियम है। यहां आप उस समय के संघर्ष से जुड़े बेहद क़ीमती दस्तावेजों को देख सकते हैं, जो यहां सुरक्षित रखे हुए हैं।

तापी रिवर फ्रंट : खूबसूरत होती हैं शामें सूरत शहर को तापी नदी एक वरदान स्वरूप मिली है। इससे शहरवासियों को खास लगाव है। सूरत म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने अहमदाबाद में स्थित साबरमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर यहां तापी रिवर फ्रंट का विकास किया है। 133 एकड़ में फैला यह रिवर फ्रंट सूरतवासियों के लिए एक बेहतरीन सैरगाह के रूप में विकसित हुआ है। शाम को यहां का नजारा पुलकित करने वाला होता है। सूरत जाएं तो यहां जाना न भूलें।

डच सिमेट्री: स्वर्णिम अतीत की निशानियां कटरगाम दरवाजा इलाके में पड़ने वाली डच सिमेट्री सूरत की खास दर्शनीय स्मारकों में शामिल है। यहां अनेक समाधियां और गुंबद हैं, जो खामोशी से गुजरे हुए डच जमाने की याद दिलाते हैं। यहीं इंग्लिश सिमेट्री में अंग्रेज अफसरों की समाधियां बनी हुई हैं। इंडो-गोथिक शैली में निर्मित ये संरचनाएं अपने स्वर्णिम अतीत की बेशकीमती निशानियां हैं।

आतिश बहराम: आकर्षक पारसी मंदिर शहर की संस्कृति में पारसियों का भी बड़ा योगदान रहा है। इसकी झलक आप पा सकते हैं यहां के भगोल इलाके में स्थित पारसी आतिश मंदिर में। गौरतलब है कि यह दुनिया के नौ पारसी आतिश मंदिरों में से एक है। हालांकि इस सुंदर इमारत में गैरपारसी लोगों का प्रवेश वर्जित है। बाहर से ही वे इस इमारत को निहार सकते हैं।

सूरत फोर्ट: अतीत का आईना सूरत का पुराना फोर्ट आज भले ही एक प्राचीन संरचना जैसा खामोश खड़ा हो, लेकिन अतीत के पन्नों में इसका महत्व देखते ही बनता है। सूरत मध्यकाल में व्यापारियों और आक्रमणकारियों के निशाने पर रहा। इससे निपटने के लिए अहमदाबाद के तत्कालीन सुल्तान महमूद शाह बेगड़ा ने यहां एक मजबूत किला बनवाने का फैसला किया। इस काम के लिए उन्होंने अपने एक भरोसेमंद तुर्की सिपाही को चुना, जिसका नाम सफी आगा था। वही आगे चलकर खुदावंद खान के नाम से जाना गया। इस किले का निर्माण 1546 ई. में पूरा हुआ। पर इस किले ने सुकून का समय कम ही देखा।

1573 में मुगल बादशाह अकबर ने सूरत पर हमला कर इस किले को हासिल कर लिया। यह किला मुगलों के पास भी ज्यादा समय तक नहीं रहा। यह 1759 में अंग्रेजों के अधीन हो गया। यह एक मजबूत किला था, जिसका निर्माण पुर्तगलियों के हमलों को रोकने के लिए किया गया। तापी नदी के किनारे बना यह किला सामरिक महत्व की महत्पूर्ण संरचना के रूप में रहा। बेशक जैसा इसके निर्माण का उद्देश्य रहा था, वैसा ही यह साबित भी हुआ। इसके निर्माण के बाद कोई भी बड़ा हमला पुर्तगालियों की ओर से सूरत पर नहीं हुआ।

लुभावनी बगिया

जहांगीराबाद स्थित है रश्मि बोटेनिकल गार्डन। इसमें आपको फूलों की बहुत सारी वैरायटी देखने को मिलेगी। यह जगह स्थानीय लोगों को ही नहीं, बल्कि पर्यटकों को भी लुभाता है। यह सोमवार के दिन बंद रहता है।

सूरत नू जमना ने काशी नू मरना

बात सूरत के स्वाद की निकली है तो यहां की एक कहावत ही सब कुछ कह डालती है। सूरत वासी कहते हैं, ‘सूरत नू जमना ने काशी नू मरना’। मतलब जिस प्रकार काशी में मरने पर मोक्ष प्राप्त होने की मान्यता है, उसी प्रकार माना जाता है कि सूरत में खाना खाने से जीते जी स्वर्ग की प्राप्ति होती है। सूरत का स्ट्रीट फूड नहीं खाया तो आपकी यात्रा अधूरी मानी जाएगी। यहां सड़कों पर देर रात तक स्ट्रीट फूड बिकता है। सूरतवासी थोड़े से चटोरे स्वभाव के माने जाते हैं। यहां का एसएमसी मार्केट पूरी रात खुला रहता है, जहां आप अनोखे स्वाद चख सकते हैं। सूरत में एक जगह है पिपलोड, यहां पर खाने के खोमचे शाम होते ही सजने लगते हैं।

कॉलेजियन चाट: सूरत की यह मशहूर चाट पीनट से बनती है। इसका नाम कॉलेजियन इसलिए पड़ा, क्योंकि यह कॉलेज के छात्रों में बड़ी लोकप्रिय है। कह सकते हैं कि यह खालिस सूरत का आविष्कार है। लोचा अमूमन लफड़े के लिए इस्तेमाल होता है, पर यहां लोचा एक डिश का नाम है, जिसका आविष्कार खमण बनाते समय गलती से हो गया था, इसीलिए इसे नाम मिला लोचा। सड़क किनारे हरी चटनी और तली मिर्च के साथ मूंग की दाल और ज्वार के वड़े खाने को मिलें तो कहने ही क्या। जी हां, सूरत को तो ऐसे वड़े बनाने में महारत हासिल है। इन वड़ों को ‘पोंक’ वड़ा कहते हैं, जो दिन के किसी भी समय मिल जाते हैं।

गुजरात के अलग-अलग हिस्सों में खमण मिलता है, लेकिन सूरत में मिलती है खमणी। यह चने की दाल से बनी एक स्पेशल चाट है, जिसका स्वाद आप भूल नहीं पाएंगे। हीराबाग इलाके में एक प्रसिद्ध दुकान है, जिसका नाम है माधी नी खमणी, यहां पर आप जरूर जाएं। यहां मेवा की फिलिंग के साथ खोये की एक मिठाई होती है, जिसे ‘घरी’ कहा जाता है। इस मिठाई जैसा स्वाद कहीं और मिलना मुश्किल है।

शॉपिंग का खूबसूरत गढ़

अगर आप साड़ियों के शौकीन हैं तो सूरत में आपके लिए एक से बढ़कर एक मार्केट हैं। यहां का न्यू टेक्सटाइल मार्केट बदलते समय के फैशन की डिमांड को पूरा करता है। झिलमिल करते जरी वर्क की साड़ियां आपका मन मोह लेंगी।

सहारा दरवाजा : यह सूरत का एक पुराना होलसेल मार्केट एरिया है, जहां से आप कपड़ों की शॉपिंग थोक के भाव में कर सकते हैं। यहां का ओल्ड बॉम्बे मार्केट भी एक पुराना होलसेल मार्केट है, जहां से आप जरी वाली, कढ़ाई वाली साड़ियां, सलवार-कमीज और मर्दाना कपड़े खरीद सकते हैं।

डायमंड शॉपिंग : कहते हैं पूरी दुनिया के बाजारों में बिकने वाले दस में से 8 हीरे सूरत के कारीगरों के हाथ से तराशे गए होते हैं। सूरत में हीरों का व्यापार प्राचीनतम कारोबार में से एक है। अगर आप सूरत से हीरे की खरीदारी करने जा रहे हैं तो पहले अपनी जानकारी बढ़ा लें और हीरा परखने के गुर यहां के किसी काबिल जौहरी से जरूर ले लें। यहां महिधरपुरा इलाके में डायमंड का बड़ा मार्केट है, जहां अनेक जौहरी रोजाना करोड़ों का व्यापार करते हैं। खचाखच भरे इस मार्केट से सही हीरा खरीदना बड़ी होशियारी का काम है, इसलिए हीरे की परख करना आना जरूरी है।

ट्रेकिंग, बीच की सैर और नेचुरोपैथी ट्रीटमेंट

अल्तान नेशनल पार्क: अल्तान नेशनल पार्क सूरत शहर से बाहर निकलते ही मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस नेशनल पार्क की खूबसूरती यहां आकर ही महसूस की जा सकती है। यहां जंगल में आप ट्रेकिंग का आनंद ले सकते हैं। इस नेशनल पार्क में जगह-जगह वॉटर बॉडी हैं। कैंप साइट है। चारों तरफ हरियाली फैली हुई है। यह जगह नेचर फोटोग्राफी के लिए बहुत अच्छी है।

ड्यूमज बीच: सूरत शहर को अरब सागर का सुंदर तट मिला हुआ है, जिसकी वजह से यहां बेहद खूबसूरत बीच भी देखे जा सकते हैं। इनमें ड्यूमज बीच बहुत प्रसिद्ध है। यह बीच सूरत शहर से 21 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में पड़ता है। स्थानीय लोगों में यह बीच एक पिकनिक स्पॉट के रूप में काफ़ी पसंद किया जाता है। कहते हैं यह बीच भारत के 35 रहस्यमय स्थानों में से एक है।

हजीरा विलेज: हजीरा गांव सूरत से 24 किलोमीटर दूर अरब सागर के तट के नजदीक पड़ता है। इस छोटे से बीच टाउन की अपनी ही महिमा है। वैसे तो यह जगह एक व्यस्ततम पोर्ट के रूप में जानी जाती है, लेकिन यह स्थान धीरे-धीरे नेचुरोपैथी ट्रीटमेंट के लिए मशहूर हो रहा है। इसका कारण यहां पर प्राकृतिक गरम पानी के स्नोत होना है। हजीरा में गरम पानी के दो कुएं हैं, जिनमें सल्फर की मात्रा अधिक होने के कारण गरम पानी निकलता है।


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