आतंरिक मुद्दों से निपटने के बाद ही पाक से वार्ता
पाकिस्तान ने भले ही पठानकोट हमले को लेकर अपनी टीम जल्द भारत भेजने के संकेत दिए हो, लेकिन इसके बावजूद दोनों देशों के बीच विदेश सचिव स्तरीय वार्ता जल्द शुरू होने के आसार कम हैं। खास तौर पर जिस तरह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) विवाद में पाकिस्तान और आतंकी
नई दिल्ली। पाकिस्तान ने भले ही पठानकोट हमले को लेकर अपनी टीम जल्द भारत भेजने के संकेत दिए हो, लेकिन इसके बावजूद दोनों देशों के बीच विदेश सचिव स्तरीय वार्ता जल्द शुरू होने के आसार कम हैं। खास तौर पर जिस तरह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) विवाद में पाकिस्तान और आतंकी हाफिज सईद का नाम जोड़ा गया है उसकी वजह से भी सरकार द्विपक्षीय शांति वार्ता को लेकर बहुत उत्साह नहीं दिखाना चाहती। बहुत संभव है कि अब विदेश सचिव स्तरीय वार्ता की नई तारीख बजट सत्र के बाद ही रखी जाए।
पाकिस्तान के आतंरिक मामलों के मंत्री चौधरी निसार अली खान ने वहां कहा है कि पठानकोट हमले की जांच के संदर्भ में जल्द ही भारत से आग्रह किया जाएगा कि पाकिस्तानी जांच दल को वहां जाने की अनुमति दी जाए। इस जांच दल का गठन इस हमले के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की अध्यक्षता में उचस्तरीय बैठक के बाद किया गया था।
वैसे भारत पहले ही कह चुका है कि वह इस दल को जांच में हर तरह का सहयोग देगा, लेकिन अभी तक आधिकारिक तौर पर वहां से कोई आग्रह नहीं प्राप्त हुआ है। विदेश मंत्रलय के अधिकारी यह तो बताते हैं कि भारत पाकिस्तान के साथ वार्ता को हर हालत में जारी रखने के पक्ष में है, लेकिन अभी विदेश सचिवों के बीच समग्र बातचीत का दौर कब शुरू होगा, इस बारे में सब चुप्पी साधे हुए हैं। उक्त अधिकारी यह तो स्वीकार करते हैं कि दिसंबर, 2015 में बातचीत का जो माहौल बनाया गया था, फिलहाल वैसा अब नहीं है।
दरअसल, पिछले एक पखवाड़े में दो घटनाओं की वजह से दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों में कुछ तनाव आया है। पहली, एफ-16 विमानों की खरीद पर भारत ने जिस तरह निराशा जताई, उसको लेकर पाकिस्तान काफी असहज है। दूसरा, जेएनयू विवाद में पाकिस्तान और आतंकी हाफिज सईद का नाम आने से भी असुविधाजनक माहौल बना है।
अगर सरकार इस माहौल में पाकिस्तान से शांति वार्ता शुरू करती है तो विपक्ष को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि जब तथाकथित तौर पर पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने पर लोगों के खिलाफ राजद्रोह का मामला चलाया जा सकता है तो फिर इस शांति वार्ता की क्या जरूरत है। वैसे भी अगले हफ्ते से बजट सत्र शुरू हो रहा है और इसके काफी हंगामेदार होने के आसार हैं। ऐसे में सरकार काफी सोच समझ कर ही आगे बढ़ेगी।