इंदिरा के कहने पर राजीव को मनाने गई थीं ओशो की सचिव
किताब का प्रकाशन सिमोन एंड स्कस्टर ने किया है। इसमें लक्ष्मी के जीवन के तमाम पहलुओं का जिक्र किया गया है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। संजय गांधी की 1980 में विमान हादसे में मौत के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि उनके बड़े पुत्र राजीव राजनीति में आ जाएं, लेकिन वह राजनीति को अच्छा नहीं मानते थे। जब राजीव समझाने पर भी नहीं माने तो इंदिरा ने यह जिम्मेदारी ओशो की सचिव लक्ष्मी को दी। यह खुलासा राशिद मैक्सवेल की किताब द ओनली लाइफ, ओशो लक्ष्मी एंड द वर्ल्ड इन क्राइसिस में किया गया है।
ओशो की सचिव लक्ष्मी के जीवन के तमाम पहलुओं को इसमें संजोया गया है। किताब कहती है कि अपने पिता जवाहर लाल नेहरू की तरह से इंदिरा का झुकाव धार्मिक कार्यो की तरफ काफी ज्यादा था। वह कई धर्म गुरुओं से व्यक्तिगत तौर पर संपर्क में भी थीं। वह ओशो का सम्मान करती थीं, लेकिन बावजूद इसके वह उनके मिलने से बचती थीं। कई बार पुणे में होने के बावजूद भी इंदिरा ओशो से मिले नहीं गईं, क्योंकि ओशो एक विवादित शख्सियत थे।
1977 में जब इमरजेंसी के बात सत्ता चली गई और इंदिरा को विपक्ष में बैठना पड़ा, तब उन्होंने लक्ष्मी को अपने खास लोगों में शुमार किया। लक्ष्मी को ग्रीन पास दिया गया। इसके होने का मतलब था, इंदिरा से कभी भी मिलने की अनुमति होना। लक्ष्मी कहती हैं कि 1980 में इंदिरा दोबारा प्रधानमंत्री बनीं। उसके कुछ समय बाद ही उनके छोटे बेटे संजय की मृत्यु हो गई। तब उन्होंने लक्ष्मी को मिलने के लिए बुलाया। इंदिरा ने लक्ष्मी से कहा कि वह राजीव से मिलें और उन्हें राजनीति में आने के लिए तैयार करें। लक्ष्मी ने राजीव से मुलाकात की।
किताब में दावा किया गया है कि राजीव से लंबी मुलाकात के बाद लक्ष्मी उन्हें मनाने में कामयाब हो गईं। राजीव शुरू में पायलट के तौर पर अपना करियर छोड़ने को तैयार नहीं थे, अलबत्ता समझाने पर वह मान गए। गौरतलब है कि इंदिरा की मृत्यु के बाद राजीव देश के प्रधानमंत्री भी बने। किताब का प्रकाशन सिमोन एंड स्कस्टर ने किया है। इसमें लक्ष्मी के जीवन के तमाम पहलुओं का जिक्र किया गया है। यह बताया गया है कि कैसे वह ओशो के नजदीक पहुंचने के बाद एक शक्तिशाली महिला बन सकीं।
यह भी पढ़ें: निजामी के खिलाफ गुजरात में पोस्टर, ‘जो अफजल का यार है वो देश का गद्दार है’