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आखिर क्यों नक्सलियों का गढ़ अबूझमाड़ आज भी अबूझ पहेली है?

नारायणुपर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिले का पहाड़ी जंगली इलाका अबूझमाड़ कहलाता है। यहां से गुजरने वाली इंद्रावती नदी अबूझमाड़ को बस्तर के दूसरे इलाकों से अलग करती है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Tue, 25 Apr 2017 12:28 PM (IST)Updated: Tue, 25 Apr 2017 05:57 PM (IST)
आखिर क्यों नक्सलियों का गढ़ अबूझमाड़ आज भी अबूझ पहेली है?
आखिर क्यों नक्सलियों का गढ़ अबूझमाड़ आज भी अबूझ पहेली है?

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। सोमवार को करीब साढ़े तीन सौ नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के सुकमा में हाल के दिनों का सबसे बड़ा हमला किया। इस हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए। नक्सलियों ने सुकमा में जिस जगह हमला किया वह इलाका अबूझमाड़ जंगल क्षेत्र के करीब ही है। जिसे नक्सलियों का गढ़ भी कहा जाता है।

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दरअसल अबूझमाड़ अपने नाम की तरह ही आज तक एक अबूझ पहेली ही बना हुआ है। यहां जंगल इतना घना है कि सरकार और सुरक्षाकर्मी तो क्या धूप भी जमीन तक नहीं पहुंच पाती है। लेकिन नक्सलियों की तो जैसे यहां खेती लहलहाती है। यहां वे बेखौफ घूमते हैं और आसपास के इलाकों में अपने नापाक इरादों को अंजाम भी देते हैं।

करीब 3900 वर्ग किमी में फैले अबूझमाड़ के जंगलों को नक्सलियों के लिए सुरक्षित गढ़ माना जाता है। एक समय जर-जंगल और जमीन के लिए चला नक्सल आंदोलन विकास की रफ्तार में पीछे छूट गए इलाके के लोगों का रोष व्यक्त करने का माध्यम था। लेकिन कब यह खूनी खेल में बदल गया, खुद नक्सली विचारधारा के लोग भी इसका स्पष्ट जवाब नहीं दे पाते। तमाम सरकारें वर्षों से दूर-दराज के इलाकों तक विकास की रोशनी पहुंचाने के लिए काम कर रही हैं, लेकिन अपने मकसद से भटके ये लोग अब विकास की रफ्तार में ही रोड़ा बनकर खड़े हैं।

यह है असली अबूझमाड़

नारायणुपर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिले का पहाड़ी जंगली इलाका अबूझमाड़ कहलाता है। यहां से गुजरने वाली इंद्रावती नदी अबूझमाड़ को बस्तर के दूसरे इलाकों से अलग करती है। अबूझमाड़ में घने जंगलों, पहाड़ों और छोटी-छोटी नदियों के बीच कई गांव बसे हैं जहां अबूझमाड़िया आदिवासी रहते हैं। खास बात यह है कि अबूझमाड़िया बाहरी लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं करते हैं। अबूझमाड़िया के अलावा यहां गोंड, मुरिया और हल्बास जनजातियां भी रहती हैं।

कभी बाहरी लोगों का आना था मना

1980 के दशक में इस क्षेत्र में बाहरी लोगों के आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। सालों तक यह प्रतिबंध जारी रहा, आखिरकार साल 2009 में छत्तीसगढ़ सरकार ने इस प्रतिबंध को हटा दिया।

अबूझमाड़ का भेत्र भौगोलिक रूप से अलग-थलग और आमतौर पर दुर्गम क्षेत्र है। यहां नागरिक प्रशासन की उपस्थिति अब भी नगण्य ही बनी हुई है। प्रतिबंधित भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (माओवादी) और इसकी मिलिट्री विंग पीपुल्स लिब्रेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) यहां समानांतर सरकार चलाते हैं और वे अपने इस गढ़ को मुक्त क्षेत्र कहकर बुलाते हैं।

कार्रवाई में कैसे बच निकलते हैं नक्सली

यहां से नक्सली आस-पास के राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडीशा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश तक फैल जाते हैं। विभिन्न राज्यों की सरकारों और पुलिसबलों में आपसी तालमेल का फायदा उठाकर नक्सली एक तरफ कार्रवाई होने पर दूसरे राज्य के क्षेत्र में पहुंच जाते हैं।

...ताकि अबूझ पहेली न रहे अबूझमाड़

छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने पिछले साल 30 अप्रैल को 'लोक सुराज अभियान' के तहत कहा था कि अबूझमाड़ को अब अबूझ पहेली नहीं रहने दिया जाएगा। यहां आने वाले समय में विकास की धारा बहेगी। उन्होंने क्षेत्र में 50 नए कुएं और 15 तालाब खुदवाए जाने की भी घोषणा की थी। 'लोक सुराज अभियान' का केंद्र बिन्दु अबूझमाड़ का क्षेत्र ही रहा है। मुख्यमंत्री ने नक्सल प्रभावित इस क्षेत्र में शत प्रतिशत विद्युतिकरण के लिए 500 करोड़ की योजना के माध्यम से दो साल में 5600 मजराटोला में बिजली पहुंचाने की बात कही थी।

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