Jammu and Kashmir: जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिरोध तोड़ने में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की बड़ी भूमिका, ऐसे बनी बात
जम्मू-कश्मीर में अरसे बाद जिस मंशा से एक सक्रिय राजनीतिज्ञ मनोज सिन्हा को बतौर उपराज्यपाल भेजा गया था वह उसे पूरा करते दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ चली लगभग साढ़े तीन घंटे की बैठक बहुत सफल रही।
नई दिल्ली, नीलू रंजन। जम्मू-कश्मीर में अरसे बाद जिस मंशा से एक सक्रिय राजनीतिज्ञ मनोज सिन्हा को बतौर उपराज्यपाल भेजा गया था, वह उसे पूरा करते दिख रहे हैं। पिछले 13 महीनों में सिन्हा न तो सतपाल मलिक की तरह स्थानीय राजनेताओं के साथ आरोपों-प्रत्यारोपों में न उलझे और न ही नौकरशाह उपराज्यपाल जीसी मुर्मु की तरह राजभवन की चहारदीवारी तक सीमित रहे। उन्होंने आम जनता के साथ व्यापक संपर्क साधने के साथ ही राज्य के नेताओं के साथ भी संवाद कायम रखा। गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ चली लगभग साढ़े तीन घंटे की बैठक बहुत सफल रही। हर दल ने बैठक पर संतोष जताया, क्योंकि इसके लिए कोई एजेंडा तय नहीं किया गया था। हर किसी को अपनी बात रखने की आजादी थी और प्रधानमंत्री ने सबको धैर्य के साथ सुना भी।
सिन्हा बीते 13 महीनों में कुछ इसी तर्ज पर काम करते रहे। उपराज्यपाल बनकर श्रीनगर पहुंचने के एक महीने के भीतर ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला को फोन किया और साथ में चाय पीने की इच्छा जताई। उस समय केंद्र के साथ तल्खी के दौर से गुजर रहे फारूक अब्दुल्ला ने हैरानी जताते हुए कहा कि कहीं दिल्ली में बैठे लोग मेरे साथ चाय पीने से नाराज नहीं हो जाएं। मनोज सिन्हा का जवाब था कि वे सिर्फ एक कॉल की दूरी पर हैं और जब भी इच्छा हो, वे 15 मिनट में चाय पीने के लिए पहुंच सकते हैं। मनोज सिन्हा ने पिछले 13 महीने में कोई भड़काऊ बयानबाजी नहीं की, बेवजह किसी नेता को ललकारा नहीं और सबसे बड़ी बात कि हर नेता से किसी भी समय मिलने और बात सुनने के लिए तत्पर दिखे। इसका परिणाम यह हुआ कि स्थानीय नेताओं की उनके खिलाफ बयानबाजी भी देखने को नहीं मिली और तल्खी धीरे-धीरे कम होती चली गई।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली की मांग करते हुए यहां तक कह दिया कि मनोज सिन्हा को उपराज्यपाल की जगह वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में देखना पसंद करेंगे।विश्वास बहाली में मनोज सिन्हा का सबसे कारगर हथियार रहा निष्पक्ष रहना। उन्होंने राज्य की समस्याओं को राजनीतिक चश्मे से देखने के बजाय निष्पक्ष रहकर निपटाने की कोशिश की। उनकी निष्पक्षता की सबसे बड़ी बानगी देखने को डीडीसी चुनावों में मिली। डीडीसी चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टियों ने हिस्सा लिया और किसी स्तर पर पक्षपात की एक भी शिकायत नहीं मिली। इससे पार्टियों के साथ-साथ जनता में सिस्टम के प्रति भरोसा कायम करने में सफलता मिली।
मनोज सिन्हा ने राजनेताओं के साथ-साथ जनता के साथ सीधा संवाद कायम किया। जनता दरबार के साथ-साथ आम लोगों से उनके क्षेत्र में मुलाकात का सिलसिला शुरू किया और वहीं पर उनकी समस्याओं का तत्काल समाधान भी किया। मनोज सिन्हा ने पूर्व के राज्यपालों और उपराज्यपालों की तरह एक जगह से दूसरी जगह हेलीकाप्टर से जाने से परहेज किया और खतरे के बावजूद सड़क मार्ग से आना-जाना शुरू किया। कोरोना के दौरान वे खुद अस्पतालों का मुआयना करते भी दिखे और अस्पतालों, स्कूलों, कंस्ट्रक्शन साइट्स पर खुद जाकर हो रहे कामों की निगरानी की। जनता से जुड़े मुद्दे पर उनकी संवेदनशीलता उस समय देखने को मिली जब एक छोटी बच्ची के ट्वीट पर उन्होंने आनलाइन क्लासेज पर रोक लगा दी।