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जानिए, क्या है 'ट्रेड वार'? इसका क्या प्रभाव होता है?

जब अमेरिका किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाता है तो इसका सीधा संदेश होता है कि दूसरे देश उसके साथ कारोबार न करें।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 08:45 PM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 12:08 AM (IST)
जानिए, क्या है 'ट्रेड वार'? इसका क्या प्रभाव होता है?
जानिए, क्या है 'ट्रेड वार'? इसका क्या प्रभाव होता है?

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। अमेरिका और चीन के मध्य 'ट्रेड वार' (व्यापार युद्ध) चल रहा है। भारत सहित अन्य देशों पर इसका असर पड़ना तय है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा भी है कि डालर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट के लिए जिम्मेदार वजहों में 'व्यापार युद्ध' भी एक है। व्यापार युद्ध क्या है? इसका क्या प्रभाव होता है? 'जागरण पाठशाला' के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।

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                                                 ::: 'जागरण पाठशाला' :::    

संरक्षणवादी नीतियों का परिणाम है व्यापार युद्ध

जब एक देश दूसरे के प्रति संरक्षणवादी रवैया अपनाता है यानी वहां से आयात होने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर टैरिफ बढ़ाता है तो दूसरा देश भी जवाबी कार्रवाई करता है। ऐसी संरक्षणवादी नीतियों के प्रभाव को ट्रेड वार कहते हैं। इसकी शुरुआत तब होती है जब एक देश को दूसरे देश की व्यापारिक नीतियां अनुचित प्रतीत होती हैं या वह देश रोजगार सृजन के लिए घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने को आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाता है जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किया है। ट्रंप ने इसी इरादे से चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध का शंखनाद किया है। जब दो देशों में व्यापार युद्ध छिड़ता है तो उसका असर अन्य देशों पर भी पड़ता है।

उदाहरण के लिए अमेरिका और चीन के व्यापार युद्ध से भारतीय मुद्रा सहित कई अन्य एशियाई मुद्राओं के मूल्य पर असर पड़ा है। दरअसल ट्रेड वार का असर धीरे-धीरे करेंसी वार के रूप में दिखने लगा है। अमेरिका ने जब चीन से आयात को महंगा करने के लिए टैरिफ बढ़ाए तो उसके बाद चीनी मुद्रा युआन में भी गिरावट देखने को मिली है। विश्लेषकों का कहना हे कि चीन ने अपने निर्यात को सस्ता बनाए रखने के लिए अपनी मुद्रा को गिरने दिया है। हालांकि इसके चलते भारतीय रुपये सहित अन्य एशियाई मुद्राओं पर भी दवाब बढ़ा है और उनके मूल्य में गिरावट आयी है।

टैरिफ बढ़ाने के अलावा अन्य तरीके भी अपनाते हैं देश

ट्रेड वार में देश एक दूसरे के विरुद्ध कई प्रकार की रणनीति अपनाते हैं। मसलन, आयात पर टैरिफ बढ़ाने, आयात-निर्यात का कोटा तय करने, कस्टम क्लीयरेंस की प्रक्रिया जटिल बनाने और उत्पादों की गुणवत्ता के नए मानक तय करने जैसे टैरिफ व नॉन टैरिफ कदम उठाते हैं।

वैसे यहां ट्रेड वार और सैंक्शंस (प्रतिबंध) में अंतर समझना भी जरूरी है। आप खबरों में पढ़ते होंगे कि अमेरिका ने किसी देश पर सैक्शंस लगाए। शक्तिशाली राष्ट्र दूसरे देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका ने क्यूबा, ईरान, म्यांमार और सीरिया जैसे देशों पर समय-समय पर प्रतिबंध लगाए हैं।

किसी अन्य देश की तुलना में अमेरिकी प्रतिबंध अधिक घातक होते हैं। इसकी वजह यह है कि अमेरिका सबसे बड़ी सैन्य और आर्थिक शक्ति है। दुनियाभर में पौने दो सौ से अधिक मुद्राएं हैं लेकिन सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय व्यापार डालर में होता है।

भारत के कुल आयात का 86 प्रतिशत डालर में होता है जबकि भारत अपने कुल आयात का मात्र पांच प्रतिशत ही अमेरिका से करता है। इसी तरह भारत के कुल निर्यात का 86 प्रतिशत डालर में होता है जबकि कुल निर्यात में से मात्र 15 प्रतिशत ही अमेरिका को जाता है। सभी देशों के केंद्रीय बैंक भी अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे ज्यादा डालर ही रखते हैं।

ऐसे में जब अमेरिका किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाता है तो इसका सीधा संदेश होता है कि दूसरे देश उसके साथ कारोबार न करें क्योंकि जब वे लेन-देन करेंगे तो यह डालर में होगा। यह लेन-देन अमेरिकी बैंकिंग तंत्र से गुजरेगा। अमेरिका उस लेन-देन को ट्रैक कर सकता है और प्रतिबंध लगे होने की स्थिति में उस भुगतान को रोक सकता है।


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