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क्या है स्टैंडिंग डिपॉजिट फेसिलिटी? आरबीआइ के तरकश में जुड़ा एक और तीर

दुनियाभर में कई देशों में नकदी प्रबंधन के लिए केंद्रीय बैंक नकदी घटाने व बढ़ाने के लिए स्टैंडिंग फैसिलिटी का इस्तेमाल करते हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 09 Sep 2018 10:17 PM (IST)Updated: Sun, 09 Sep 2018 10:17 PM (IST)
क्या है स्टैंडिंग डिपॉजिट फेसिलिटी? आरबीआइ के तरकश में जुड़ा एक और तीर
क्या है स्टैंडिंग डिपॉजिट फेसिलिटी? आरबीआइ के तरकश में जुड़ा एक और तीर

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक की नीतिगत दरों- 'रेपो' व 'रिवर्स रेपो' के बारे में आपने पढ़ा होगा। ब्याज दरों का रुख तय करने और अर्थव्यवस्था में लिक्विडिटी (नकदी) बढ़ाने व घटाने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है। नकदी प्रबंधन के लिए आरबीआइ के तरकश में अब एक और तीर जुड़ने जा रहा है। यह है 'स्टैंडिंग डिपॉजिट फेसिलिटी'।

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                                                :::जागरण पाठशाला:::

स्टैंडिंग डिपॉजिट फेसिलिटी (एसडीएफ) ऐसा तंत्र है जिसका इस्तेमाल कोई भी केंद्रीय बैंक व्यवसायिक बैंकों के पास उपलब्ध अतिरिक्त नकदी को सोखने के लिए करता है। यह बिल्कुल 'रिवर्स रेपो' की तरह काम करता है लेकिन कई मामलों में उससे भिन्न होता है। आपको मालूम है कि अर्थव्यवस्था में नकदी घटने या बढ़ने का सीधा असर महंगाई और विकास दर पड़ता है, इसलिए केंद्रीय बैंक की यह कोशिश होती है कि नकदी का प्रवाह उपयुक्त स्तर पर बना रहे। इसके लिए वह मौद्रिक नीति के तहत अलग-अलग तंत्रों का सहारा लेता है।

मसलन, 'रेपो दर'- जिस पर वह बैंकों को उधार देता है और 'रिवर्स रेपो दर'- जिस पर बैंकों के पास उपलब्ध अतिरिक्त नकदी को लेकर वह खुद अपने पास जमा करता है। हालांकि 'रेपो दर' के तहत बैंकों को उधार लेते समय आरबीआइ के पास जी-सेक (गवर्नमेंट सीक्युरिटीज) गिरवी रखनी पड़ती है। इसी तरह आरबीआइ को भी 'रिवर्स रेपो दर' पर बैंकों की धनराशि जमा कराने के ऐवज में जी-सेक कोलैटरल के रूप में रखनी पड़ती है। एसडीएफ में ऐसा नहीं होगा।

एसडीएफ के तहत बैंक जब अतिरिक्त नकदी रिजर्व बैंक के पास जमा कराएंगे तो आरबीआइ को जी-सेक बैंकों के पास गिरवी रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस तरह रिजर्व बैंक बिना कुछ गिरवी रखे ही एसडीएफ में बैंकों से धनराशि जमा करा सकेगा और सिस्टम से अधिक नकदी को सोख सकेगा।

आरबीआइ आने वाले समय में यह सुविधा शुरु करेगा। जो बैंक और वित्तीय संस्थान फिलहाल आरबीआइ की लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फेसिलिटी के तहत रिवर्स रेपो का इस्तेमाल कर नकदी जमा करते हैं, वे एसडीएफ के लिए भी पात्र होंगे। सामान्यतया एसडीएफ की अवधि एक दिवसीय यानी ओवरनाइट होती है लेकिन कुछ मामलों में यह नियमित आधार पर फिक्स्ड अवधि के लिए भी जारी की जा सकती है।

भारत में एसडीएफ का विचार सबसे पहले रिजर्व बैंक के एक आंतरिक समूह ने 2003 में दिया था। इसके बाद मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क को मजबूत बनाने को 2014 में उर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने भी सिस्टम से अतिरिक्त नकदी सोखने को एसडीएफ का इस्तेमाल करने की सिफारिश की। इसके बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस साल एक फरवरी को आम बजट 2018-19 पेश करते हुए बजट भाषण में इस आशय की घोषणा की। जेटली ने कहा कि रिजर्व बैंक को अधिक नकदी व्यवस्थित करने के साधन उपलब्ध कराने और एक जमा सुविधा शुरु करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 को संशोधित किया जाएगा। इसके बाद एसडीएफ शुरु करने के लिए रिजर्व बैंक कानून में संशोधन किया गया।

दुनियाभर में कई देशों में नकदी प्रबंधन के लिए केंद्रीय बैंक नकदी घटाने व बढ़ाने के लिए स्टैंडिंग फैसिलिटी का इस्तेमाल करते हैं। इसे पारदर्शी माना जाता है। एसडीएफ बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अपनी बची हुई नकदी, जिसे वे बाजार में नहीं लगा पाए हैं, को जमा करने का अवसर प्रदान करता है। हालांकि उस पर नीतिगत दरों की तुलना में ब्याज दर काफी कम मिलता है।


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