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जानिए, क्या होता है हेजिंग? निवेशक-कारोबारी जोखिम से बचने के लिए लेते हैं इसका सहारा

जब किसी निवेश या परिसंपत्ति के लिए हेजिंग नहीं की जाती है तो उसे एक्सपोजर कहते हैं। इसका मतलब यह है कि उस निवेश पर जोखिम की आशंका है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 19 Aug 2018 07:22 PM (IST)Updated: Mon, 20 Aug 2018 07:43 AM (IST)
जानिए, क्या होता है हेजिंग? निवेशक-कारोबारी जोखिम से बचने के लिए लेते हैं इसका सहारा
जानिए, क्या होता है हेजिंग? निवेशक-कारोबारी जोखिम से बचने के लिए लेते हैं इसका सहारा

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। आर्थिक खबरों में आप अक्सर एक शब्द पढ़ते होंगे - 'हेजिंग'। 'हेजिंग' का मतलब क्या है? निवेशक और कारोबारी अपना जोखिम कम करने के लिए किस तरह इसका इस्तेमाल करते हैं? 'जागरण पाठशाला' के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।

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जागरण पाठशाला: बीमा की तरह होती है 'हेजिंग'

निवेश हो या कोई व्यवसाय, वह जोखिम भरा होता है। इसलिए निवेशक और कारोबारी अपना जोखिम कम करने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाते हैं। ऐसा ही एक प्रचलित तरीका 'हेजिंग' है। असल में जब कोई क्रेता, विक्रेता या निवेशक अपने कारोबार या परिसंपत्ति (असेट) को संभावित मूल्य परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव से बचाने के उपाय करता है तो उसे 'हेजिंग' कहते हैं।

आइये हम इसे एक उदाहरण के जरिए समझते हैं। मान लीजिए आपके शहर में एक फ्लोर मिल यानी आटा-चक्की है। उस फ्लोर मिल को दो माह बाद एक निश्चित भाव पर आटे की एक निश्चित मात्रा सप्लाई करने का ठेका प्राप्त हुआ है। उस मिल के मालिक को यह नहीं मालूम कि आने वाले दो महीने में गेहूं सस्ता होगा या महंगा। अगर गेहूं के दाम बढ़ेंगे तो फ्लोर मिल को घाटा हो जाएगा। इसलिए फ्लोर मिल जोखिम कम करने के लिए जरूरत भर का गेहूं अभी से खरीदकर अपने गोदाम में रख लेता है या वायदा कारोबार का सहारा लेते हुए दो माह बाद गेहूं की आपूर्ति का कान्ट्रेक्ट किसी व्यापारी से कर लेता है। इस तरह वह संभावित मूल्यवृद्धि से 'हेजिंग' कर लेता है। हालांकि ऐसा भी हो सकता है कि दो माह बाद गेहूं महंगा होने के बजाय उल्टे सस्ता ही हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो उस मिल को थोड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए कहा भी जाता है कि व्यवहार में पूर्णत: 'हेजिंग' संभव नहीं है।

वास्तव में 'हेजिंग' एक तरह से बीमा पॉलिसी की तरह होती है। अगर आप का घर ऐसी जगह पर है जहां बाढ़ आने का खतरा हो तो आप उसका बीमा करा कर बाढ़ से नुकसान की स्थिति में अपना सुरक्षा कवच तैयार कर लेते हैं यानी संभावित जोखिम को टालने के लिए 'हेजिंग' कर लेते हैं।

ऐसा नहीं है कि 'हेजिंग' बिल्कुल मुफ्त हो। आपको जोखिम टालने के लिए हेज करने पर भी राशि खर्च करनी पड़ती है। मसलन, आप बाढ़ से संभावित नुकसान की भरपाई के लिए जो बीमा कवर लेना चाहते हैं, उसके लिए आपको प्रीमियम भरना पड़ेगा। मान लीजिए कि पूरे साल अगर बाढ़ नहीं आती है तो आपका प्रीमियम तो ऐसे ही चला जाएगा। हालांकि इस तथ्य के बावजूद भी लोग बीमा कवर लेना पसंद करते हैं क्योंकि वे जोखिम उठाना नहीं चाहते।

जब किसी निवेश या परिसंपत्ति के लिए 'हेजिंग' नहीं की जाती है तो उसे 'एक्सपोजर' कहते हैं। इसका मतलब यह है कि उस निवेश पर जोखिम की आशंका है।

जो भारतीय कारोबार आयात-निर्यात के व्यवसाय में हैं वे फ्यूचर्स और ऑप्संश जैसे 'हेजिंग प्रोडक्ट' का इस्तेमाल कर इंटरनेशनल कमोडिटी एक्सचेंज में खुद को जोखिम से सुरक्षित कर सकते हैं। चूंकि इस तरह के सौदों में विदेशी मुद्रा का लेन-देन होता है इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक इस संबंध में नियम बनाता है और यह तय करता है कि किन-किन वस्तुओं के लिए हेजिंग की अनुमति है और किसके लिए नहीं।

उदाहरण के लिए तेल कंपनियां कच्चे तेल का आयात करने और रिफाइन किए हुए पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात करते समय हेजिंग का इस्तेमाल करती हैं। इसी तरह एयरलाइनें भी एविएशन टरबाइन फ्यूल यानी एटीएफ के भाव में उतार-चढ़ाव के चलते होने वाले नुकसान से बचने के लिए 'हेजिंग' का सहारा लेती हैं।


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