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जंगल में गए थे टूर पर लेकिन गुजार दिए 30 साल, जानें डीयू के प्रोफेसर की दिलचस्‍प कहानी

समाजसेवी शिक्षाविद व बैगा आदिवासियों के रहनुमा कहलाने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर डॉ. प्रभुदत्त खेरा नहीं रहे।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Tue, 24 Sep 2019 08:57 AM (IST)Updated: Tue, 24 Sep 2019 12:57 PM (IST)
जंगल में गए थे टूर पर लेकिन गुजार दिए 30 साल, जानें डीयू के प्रोफेसर की दिलचस्‍प कहानी
जंगल में गए थे टूर पर लेकिन गुजार दिए 30 साल, जानें डीयू के प्रोफेसर की दिलचस्‍प कहानी

बिलासपुर, जेएनएन। समाजसेवी, शिक्षाविद व बैगा आदिवासियों के रहनुमा कहलाने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर डॉ. प्रभुदत्त खेरा नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद सोमवार को उन्होंने बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में अंतिम सांस ली। 13 अप्रैल 1928 को पाकिस्तान के लाहौर में जन्मे डॉ. खेरा ने अपने जीवन के करीब 30 वर्ष बैगा आदिवासियों का जीवन संवारने के लिए जंगलों में गुजार दिए। उनका अंतिम संस्कार 24 सिंतबर को सुबह 11 बजे मुंगेली जिले के वनग्राम लमनी में होगा।

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लमनी, छपरवा व आसपास के वनग्राम उनकी कर्मस्थली रही है। घने जंगलों के बीच बसे वनवासियों और बैगा आदिवासियों के बीच प्रोफेसर खेरा दिल्ली वाले बाबा के नाम से जाने और पहचाने जाते थे। पूरी पेंशन कर दी आदिवासियों को समर्पित : प्रोफेसर खेरा वनवासियों के बीच इतने लोकप्रिय और भरोसेमंद हो गए थे कि वह उनकी बातों को न केवल अक्षरश: मानते थे बल्कि उनकी सीख को गांठ बांध लेते थे।

लमनी के स्कूल में पढ़ रहे वनवासी बच्चे इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं। अचानकमार सेंचुरी स्थित ग्राम लमनी में डीयू के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ.खेरा कुटिया बनाकर करीब तीस साल से रह रहे थे। वह राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र बैगा आदिवासियों के बीच शिक्षा का उजियारा फैलाकर उन्हें जीने की राह दिखाने का काम अनवर करते रहे । इसके लिए वह न तो सरकारी मदद ही ली और न ही किसी के पास झोली फैलाई ।

प्रोफेसर डॉ. प्रभुदत्त खेरा पेंशन की राशि से आदिवासियों का जीवन सुधारने का काम कर रहे थे। डॉ.खेरा गणित विषय में एमएससी (मास्टर ऑफ साइंस) व समाजशास्त्र में एमए (मास्टर ऑफ आर्ट्स) के साथ ही पीएचडीधारी थे। वर्ष 1983 में प्रो.खेरा डीयू के समाजशास्त्र के छात्रों का एक दल लेकर छत्तीसगढ़ स्थित अचानकमार के घने जंगलों में शैक्षणिक टूर पर आए थे। इसके बाद डॉ. खेरा यहीं के होकर रह गए। 


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