नक्सली हिंसा के कारण वीरान हुए बस्तर के हाट-बाजार
कभी रौनक फैलाने वाले बस्तर के हाट-बाजार अब नक्सली हिंसा के कारण धूमिल हो गए हैं।
रायपुर (अनिल मिश्रा)। बस्तर संभाग के हर बड़े गांव में लगने वाले साप्ताहिक बाजार पर नक्सल हिंसा और खूनखराबे की काली परछाईं तैर रही है। आमोद-प्रमोद से लेकर आदिवासियों के परंपरागत व्यापार व्यवसाय तक में इन बाजारों की बड़ी भूमिका रही है। लेकिन नक्सलवाद के कारण अब हालात बदल गए हैं।
बस्तर के बाजारों में अब वह बात नहीं
बाजार आदिवासी कला-संस्कृति के संवाहक रहे हैं। यहां प्रेमी जोड़े बनते रहे हैं। लेकिन अब नक्सली कभी बाजार में हमला कर देते हैं तो कभी पुलिस इस संदेह में बाजार बंद करा देती है कि यहां से नक्सलियों को सप्लाई मिल रही है। नक्सली हिंसा से वीरान हुए बाजारों को पुलिस खुलवा भी रही है लेकिन बस्तर के बाजारों में अब वह बात नहीं रही।
केवल सरकारी योजनाओं का प्रचार केंद्र
कभी टोरा, महुआ, चिरौंजी, साल बीज, बास्ता, बोड़ा, फूटू, बांस के पंरपरागत सामान, बेल मेटल की कलाकृतियां, मिट्टी के घड़े, देशी थर्मस तुंबा, मुर्गे, बकरियां, गाय-बैल लेकर आदिवासी इन बाजारों में पहुंचते और चूड़ी, टिकली, कपड़े, नमक, चावल आदि लेकर लौटते। दिन-भर आमोद-प्रमोद होता। मुर्गा लड़ाई में दांव लगते। महुआ की शराब और लांदा का बाजार सजता। अब बाजारों में सरकारी टीकाकरण कार्यक्रम का शिविर लगता है। आधार कार्ड और स्मार्ट कार्ड से लेकर मतदाता परिचय पत्र तक यहीं बनते हैं।
नक्सल हिंसा ने बाजारों में फैलाई दहशत
2012 में नारायणपुर जिले के ओरछा बाजार में सुरक्षा में तैनात दो जवानों की नक्सलियों ने गला रेत दिया। 2011 में बस्तर के दरभा ब्लॉक के नेतानार बाजार में नक्सलियों ने थानेदार समेत छह जवानों की हत्या कर दी। बचेली के बाजार में दिन-दहाड़े जवान की हत्या कर उसकी बुलेट प्रूफ जैकेट ले गए। नकुलनार बाजार में कांग्रेस नेता पर एके 47 से हमला किया। 2015 में गीदम के तुमनार बाजार में सोने-चांदी के एक व्यापारी की हत्या कर दी। हिंसा की ऐसी घटनाओं की भरमार है। इन घटनाओं से ऐसी दहशत फैली कि लोगों ने बाजारों से तौबा कर ली।