छग में नक्सलियों की टूटी कमर, हथियारों की आपूर्ति रुकी
नक्सलियों को पुलिस से मोर्चा लेने के लिए आधुनिक हथियार और गोला-बारू द खरीदना तो दूर, अपने कैडर को चलाने और रसद के इंतजाम के भी लाले पड़ने लगे हैं।
मृगेंद्र पांडेय, रायपुर : नोटबंदी के बाद छत्तीसगढ़ के लाल गलियारे में गहराया आर्थिक संकट अब नक्सलियों को बेहद कमजोर कर चुका है। खुफिया एजेंसियों से राज्य के आला अफसरों को इस बात का इनपुट मिल चुका है। बस्तर में नक्सलियों का पूरा मूवमेंट अब मुश्किलों भरा है। ऐसे में फोर्स ने आपरेशन तेज कर दिया है। सूत्रों का कहना है कि नक्सलियों को पुलिस से मोर्चा लेने के लिए आधुनिक हथियार और गोला-बारू द खरीदना तो दूर, अपने कैडर को चलाने और रसद के इंतजाम के भी लाले पड़ने लगे हैं।
रुपये को लेकर हुई बगावत
पिछले साल नोटबंदी की घोषणा के दौरान पुराने नोट बदलने में नक्सलियों के बड़े कैडर की पोल खुल गई। नक्सलियों के आला कमांडरों ने जब नोट बदलने के लिए छोटे कैडर के हाथ में रुपये दिए तो बगावत हो गई। कई छोटे कैडर या तो नक्सलियों के पैसे को लेकर फरार हो गए या फिर बड़ी रकम में अपने हिस्से की मांग करने लगे। यही नहीं, सैकड़ों की संख्या में नक्सली कैडर ने मूवमेंट का ही साथ छोड़ दिया है।
कई ने किया आत्मसमर्पण
छत्तीसगढ़ पुलिस के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि निचले कैडर को रुपयों की सही जानकारी मिलने के बाद कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। छत्तीसगढ़ में नोटबंदी के दौरान धमतरी, राजनांदगांव और कांकेर में लाखों रुपये के साथ कई कमांडर पकड़े गए। धमतरी में तीन लाख रुपये के पुराने नोट के साथ नक्सली पकड़े गए थे। राजनांदगांव व कांकेर और गढ़चिरौली बार्डर पर 28 लाख रुपये के साथ नक्सली पकड़े गए।
जानकारी मिलते ही लगी रोक
नोटबंदी के दौरान नक्सलियों ने अंदरूनी इलाकों में ग्रामीण आदिवासियों के जनधन खाते में पैसे जमा किए। यही नहीं, सहकारी सोसाइटी में किसानों के खातों में भी पैसे जमा किए गए। इसमें से अधिकांश पैसे की जानकारी बैंकों से पुलिस को मिल गई और उस पर रोक लगा दी गई। खुफिया पुलिस की मानें तो ग्रामीण जो कभी नक्सलियों का समर्थन करते थे, नोटबंदी के दौरान उनसे मोह भंग हो गया।
यहां से आता है फंड
नक्सलियों के पास सबसे ज्यादा फंड तेंदूपत्ता संग्रहण से आता रहा है। इसके बाद रोड कांट्रेक्टर, नक्सल समर्थक एनजीओ, अंदरू नी इलाकों में काम करने वाले सरकारी कर्मचारी भी फंडिंग करते थे। कई बार सरकारी कर्मचारियों से काम की चीजें मंगाकर नक्सली अपना कोटा पूरा कर लेते रहे हैं। इस फंड का इस्तेमाल दवा, राशन और हथियार खरीदने में किया जाता है। नक्सलियों के एरिया कमेटी के ऊपर के कैडर पैसे की वसूली का काम करते हैं। यह फंड सेंट्रल कमेटी को भेजा जाता रहा है, जिसे नीचे के कैडर में बांटा जाता है। लेकिन अब इनकी फंडिंग में कमी आई है।
मुठभेड़ में मारे गए 41 नक्सली
2017 में नक्सली सिर्फ दो बड़ी वारदात करने में सफल हुए, जबकि फोर्स के आपरेशन में 41 नक्सली मारे गए। आपरेशन प्रहार-1 में 25 से ज्यादा नक्सलियों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी। इस वर्ष नक्सलियों ने सुकमा के भेज्जी और बुरकापाल में दो बड़ी वारदात को अंजाम दिया, जिसमें 37 जवान शहीद हुए।
यह भी पढ़ेंः भारतीय डीजीएमओ ने पाक को चेताया, नियंत्रण रेखा पर शांति कायम करें
यह भी पढ़ेंः जम्मू-कश्मीर: लखवी के भतीजे समेत लश्कर के 6 आतंकी ढेर, एक जवान शहीद