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हाय री ये गर्मी! ...बिन पानी है प्यासी धरती और हैं प्यासे लोग

गांव से लेकर शहर तक लोग इस समस्या से परेशान नजर आते हैं, पर इसके संचय के प्रति लोग जागरूक नहीं रहते।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 23 May 2018 11:36 AM (IST)Updated: Wed, 23 May 2018 05:57 PM (IST)
हाय री ये गर्मी! ...बिन पानी है प्यासी धरती और हैं प्यासे लोग
हाय री ये गर्मी! ...बिन पानी है प्यासी धरती और हैं प्यासे लोग

[विवेक त्रिपाठी] गर्मियां शुरू होते ही पानी की दिक्कत शुरू हो जाती है। गांव से लेकर शहर तक लोग इस समस्या से परेशान नजर आते हैं, पर इसके संचय के प्रति लोग जागरूक नहीं रहते। मौसम प्रतिकूल होता है, तब जल का महत्व समझ में आता है। इस समस्या से निपटने के लिए ना तो सरकारें सजग हैं ना ही समाज। जब समस्या बढ़ती है तो इसकी बातें जरूरी शुरू हो जाती हैं। जागरूकता फिर भी नहीं आती है। तो भला इस समस्या का निवारण कैसे होगा, यह विचारणीय प्रश्न है। जल संचयन का कार्य कठिन है। हमने भौतिकता और विकास के चक्कर में कुएं पाट दिए हैं। तलाब पर घर बना लिया है। पेड़ पौधे काट डाले हैं। यह समस्या तो आनी ही है। सैकड़ों छोटी नदियां विलुप्ति के कगार पर हैं। देश के अधिकांश गांव और कस्बों में तालाब और कुएं भी बिना संरक्षण के सूख चुके हैं।

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केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट 

गंगा और यमुना का पानी भी पीने योग्य नहीं रह गया है। केंद्रीय जल आयोग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश के 91 बड़े जलाशयों में पानी कुल क्षमता का 22 प्रतिशत बचा है जो पिछले साल के मुकाबले 15 प्रतिशत कम है और पिछले दस साल के औसत से 10 प्रतिशत कम है। दक्षिण भारत के 31 जलाशयों में सिर्फ 14 प्रतिशत पानी बचा है, जबकि उत्तर भारत के 6 जलाशयों में सिर्फ 19 प्रतिशत पानी शेष है। पश्चिमी भारत के बड़े जलाशयों में 22 प्रतिशत पानी बचा है जो इस समय पिछले साल 27 प्रतिशत था। इसी प्रकार पूर्वी भारत में जलाशयों की स्थिति कुछ अच्छी है।

9 राज्यों में पानी का संकट

वहां के जलाशयों में 34 प्रतिशत पानी बचा था जो हालांकि पिछले साल के 41 प्रतिशत के स्तर से कम है। जबकि मध्य भारत के बड़े जलाशयों में पानी का स्तर 27 प्रतिशत है जो पिछले साल के 38 प्रतिशत से 11 प्रतिशत कम है। 9 राज्यों में पानी का संकट काफी गहराया है। इसमें प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल, मध्य प्रदेश, ओडिशा के कुछ क्षेत्रों में पानी की बहुत ज्यादा कमी है। केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक पानी के गिरते स्तर के पीछे मुख्य वजह पिछले 2-3 साल में मानसून के दौरान देश के कई हिस्सों में औसत से कम बारिश होना है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड का क्षेत्रफल 70 हजार वर्ग किमी है। दोनों को मिलाकर 10,800 गांव और छोटी-बड़ी 80 नदियां हैं जबकि जल संचयन संरचनाओं की संख्या 11,6000 है। सूखे से निपटने और पेयजल उपलब्ध करवाने के नाम पर एक दशक में तकरीबन 15 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।

पानी की गुणवत्ता बेहद खराब

अब भी अरबों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे हैं, लेकिन खनन और पेड़ों के कटान की वजह से समस्या हल नहीं हो पा रही है। फिलहाल देश में प्रति व्यक्ति 1000 घनमीटर पानी उपलब्ध है जो वर्ष 1951 में 3-4 हजार घनमीटर था। 1700 घनमीटर प्रति व्यक्ति से कम उपलब्धता को संकट माना जाता है। अमेरिका में यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति आठ हजार घनमीटर है। इसके अलावा जो पानी उपलब्ध है उसकी गुणवत्ता भी बेहद खराब है। यूएन के मुताबिक साल 2030 तक साफ पानी की मांग 40 फीसद तक बढ़ सकती है। ऐसे में पानी को बचाया नहीं गया तो इसके लिए मारामारी बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है। यूएसएड की रिपोर्ट में इस बात की आशंका व्यक्त की गई है कि 2020 तक भारत जल संकट वाला राष्ट्र बन जाएगा। रिपोर्ट की मानें तो देश के शहरी गरीब सबसे ज्यादा पेयजल की समस्या से जूझ रहे हैं।

95 फीसद पानी की रोजाना बर्बादी

यहां करीब 17 फीसद आबादी शहरों में झोपड़ कालोनियों में रहती है। उनमें पानी की उपलब्धता बेहद कम है। पूरी दुनिया में 95 फीसद पानी की रोजाना बर्बादी होती है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यदि दुनिया में पानी बचाने के उपायों पर काम नहीं किया गया तो आने वाले 15 सालों में विश्व को 40 फीसद पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। भारत, मोरक्को, इराक और स्पेन में सिकुड़ते जलाशयों की वजह से इन चार देशों में नलों से पानी गायब हो सकता है। इस समस्या के समाधान के लिए सिंचाई-प्रणाली में सुधार की जरूरत है। अधिक जलदोहन ना हो इसे ध्यान में रखकर योजना बनाए जाने की जरूरत है। किसान भाइयों को कम पानी वाली फसलों पर कार्य करने के लिए जागरूक करना होगा। पंचायती संस्थाएं, स्वयंसेवी संगठन, शोध संस्थाएं और सरकारी संस्थाएं जल संचायन और दोहन के लिए लोगों को जागरूक करें।

भूमिगत जल का दोहन

भूमिगत जल का दोहन हद से ज्यादा ना हो इसके लिए एक ऐसा तंत्र कायम करना होगा जो ग्रामीण इलाकों में सब्सिडी की बिजली का इस्तेमाल भूमिगत पानी के दोहन (मिसाल के लिए ट्यूबवेल) में ना होने दे। गांवों में पेयजल की आपूर्ति और साफ-सफाई के काम में ग्राम-पंचायत को केंद्रीय भूमिका सौंपी जा सकती है। उद्योगों द्वारा पानी के बढ़ते उपयोग और उससे पैदा होने वाले संघर्ष को रोकने के लिए वाटर-ऑडिटिंग को अनिवार्य बनाया जा सकता है। वर्षा जल संचयन एवं हरित आच्छादन व वनाच्छादन को बढ़ावा देकर भूजल को सामान्य स्थिति में लाने में मदद मिलेगी। इससे भूजल की गुणवत्ता में भी धीरे-धीरे सुधार आएगा। इसके अलावा बहुमंजली इमारतों में वाटर रिचार्ज, स्कूलों, सरकारी संस्थानों, बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में जलछाजन की व्यवस्था जरूरी है। इसके अलावा तालाब और डैमों के तल में जमे कीचड़ को साफ करने से भी भूजल स्रोत को बचाया जा सकता है।

पानी संचय के उपाय

इसके साथ ही प्रयोग न करते समय नल बंद रखें। ब्रश करते समय नल खुला रखने से 15 लीटर पानी बेकार हो सकता है। किसी तरह के रिसाव को ठीक कराएं। एक बूंद प्रति सेकेंड की दर पर टपकने वाले नलों से हर वर्ष 10,000 लीटर पानी व्यर्थ हो सकता है। रोजमर्रा की जरूरतों में पानी की बर्बादी न होने पाए इसका ध्यान देने की जरूरत है। सरकार भी पानी संचय पर कड़े कानून बनाए। पानी के बिना जीवन नहीं इस बात का ध्यान रखना अनिवार्य है। भारत में तो जल संचय जीवनशैली का हिस्सा माना जाता था। इसमें नदी, वन वृक्ष का संरक्षण भी शामिल था, लेकिन उपभोगवादी मानसिकता ने इन आदर्शो को पीछे छोड़ा है। पानी सिर के ऊपर हो, उसके पहले इस संकट को समझना होगा। पानी बचाने के प्रयास करने होंगे। तभी मानव का भविष्य सुरक्षित होगा।

[लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]

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