नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। देश के कई हिस्सों में अभी भी लोग फ्लोराइड और आर्सेनिक की अधिकता का सामना कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में 44 जिले के कुछ भाग ऐसे हैं, जहां भू-जल में आंशिक रूप से फ्लोराइड की अधिकता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के 36 जिलों के कुछ भाग ऐसे हैं जहां आंशिक रूप से पानी में आर्सेनिक की अधिकता है। हालांकि, केंद्र सरकार का जल जीवन मिशन के तहत 2024 तक देश के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को निर्धारित गुणवत्ता की पेयजल आपूर्ति प्रदान करने का लक्ष्य है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, असम, बिहार, छ्त्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड में क्रमश: 12, 10,17,13, 22,7,24,21,1,2,16 जिले ऐसे हैं जहां भूजल में फ्लोराइड की आंशिक मात्रा 1.5 एमजी प्रति लीटर से अधिक है। वहीं, इन्हीं जिलों में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा (0.01 एमजी प्रति लीटर से अधिक) क्रमश: 7,1,20,27,4,3,12,16,1,3,2 है। देश में 26 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में 409 जिलों के भाग ऐसे हैं जहां पानी में फ्लोराइड की मात्रा आंशिक तौर पर ज्यादा है। वहीं 25 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में 209 जिलों के भाग ऐसे हैं जहां आर्सेनिक की मात्रा आंशिक तौर पर अधिक है।

आर्सेनिक का सेहत पर असर

विश्व स्वास्‍थ्य संगठन के अनुसार, आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी आर्सेनिक प्रदूषण की वजह से ही होती है। आर्सेनिक वाले पानी के सेवन से त्वचा में कई तरह की समस्याएं होती है। इनमें प्रमुख हैं, त्वचा से जुड़ी समस्याएं, त्वचा कैंसर, ब्लैडर, किडनी व फेफड़ों का कैंसर, पैरों की रक्त वाहनिओं से जुड़ी बीमारियों के अलावा डायबिटीज,उच्च रक्त चाप और जनन तंत्र में गड़बड़ियां। भारतीय मानक ब्यूरो के मुताबिक इस मामले में स्वीकृत सीमा 10 पीपीबी नियत है, हालांकि वैकल्पिक स्रोतों की अनुपस्थिति में इस सीमा को 50 पीपीबी पर सुनिश्चित किया गया है।

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1.8 से 3 करोड़ लोगों पर आर्सेनिक का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। शारदा अस्पताल के डा. भूमेश त्यागी का कहना है कि फिल्टर पानी का प्रयोग करना चाहिए। बीमारी की शुरुआती स्तर पर पहचान इसे गंभीर होने से बचा सकती है। जागरुकता कार्यक्रम, हेल्थ कैंपेन से इससे होने प्रभावों के बारे में लोगों को सचेत किया जा सकता है। पानी में आर्सेनिक की अधिक मात्रा से त्वचा का रंग बदल जाता है और नाखून की त्वचा भी मोटी हो जाती है यही नहीं इसके कारण त्वचा, फेफड़े, गुर्दा के कैंसर होने की संभावना भी बढ़ जाती है।

फ्लोराइड का नुकसान

शारदा अस्पताल के मेडिसिन विभाग के डा. भूमेश त्यागी का कहना है कि पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा फ्लोरोसिस को जन्म देती है। इसका असर दांतों और हड्डियों पर पड़ता है। दांतों में पीलापन आ जाता है। शरीर के सभी अंगों एवं प्रणालियों पर प्रभाव पड़ने से स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न प्रकार की शिकायतें होती हैं। अधिक फ्लोराइड गर्दन, पीठ, कंधे व घुटनों के जोड़ों व हड्डियों को प्रभावित करता है। कैंसर, स्मरण शक्तिकमजोर होना, गुर्दे की बीमारी व बांझपन जैसी समस्या भी इससे हो सकती है। विदेश में पानी में फ्लोराइड की मात्रा 0.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक सामान्य मानी जाती है, जबकि भारत में यह दर 1.0 मिलीग्राम निर्धारित है।