Move to Jagran APP

मध्य प्रदेश: वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ने पूरी आदिवासी बस्ती को जलसंकट से बचाया

पहले ये आदिवासी पानी का इंतजाम करने के लिए तीन-चार किमी दूर तक जाते थे जिससे कई लोग मजदूरी पर भी नहीं जा पाते थे।वहीं अब वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अब अन्य स्थानों पर भी लगवाएंगे।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 07 Jul 2019 07:37 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jul 2019 07:37 PM (IST)
मध्य प्रदेश: वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ने पूरी आदिवासी बस्ती को जलसंकट से बचाया
मध्य प्रदेश: वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ने पूरी आदिवासी बस्ती को जलसंकट से बचाया

सागर, शत्रुघन केशरवानी। मध्य प्रदेश के सागर जिले के मेहर गांव के पास बसी करीब 70 आदिवासी परिवारों की बस्ती नारायणपुरा के लोग हर साल जलसंकट का सामना करते थे। इसी बस्ती में बने सरकारी बालक आदिवासी छात्रावास के अधीक्षक नागेंद्र चौधरी ने इसका उपाय सोचा। उन्होंने छात्रावास के रख-रखाव के लिए मिले बजट से कुछ राशि बचाई और वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाया। इससे जलस्तर बढ़ा। अब छात्रावास का नलकूप भीषण जलसंकट के दौरान पिछले तीन माह से पूरी बस्ती को पानी पिला रहा है।

loksabha election banner

इस बार भी अप्रैल माह में नारायणपुरा बस्ती के सभी नलकूप और कुएं सूख गए थे। यहां रहने वाले आदिवासी हर साल की तरह चार किलोमीटर दूर से पानी लाने को विवश हो गए। इसकी जानकारी जब नागेंद्र चौधरी को हुई तो उन्होंने ग्रामीणों को छात्रावास के नलकूप से पानी लेने की छूट दे दी। लोगों को आश्चर्य हुआ कि इस साल छात्रावास का नलकूप क्यों नहीं सूखा, जबकि यह तो हर साल फरवरी में ही दम तोड़ देता था।

रंगाई-पुताई की राशि बचाई
शासन ने जिले के छात्रावासों को खिड़की, दरवाजों के रख-रखाव और रंगाई-पुताई के लिए 30-30 हजार रुपये का बजट आवंटित किया था। अधीक्षक चौधरी ने इस काम को कराने के बाद करीब 10 हजार रुपये बचा लिए। इसके बाद उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों से अनुमति लेकर इस राशि से छात्रावास में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवा लिया। इससे छत का पानी बेकार बहने की बजाय नलकूप के बगल में जमीन में एकत्रित होने लगा। इसका फायदा गर्मी में भीषण जलसंकट के दौरान स्पष्ट रूप से दिखा। यह नलकूप पूरी गर्मी में 70 परिवारों को पानी उपलब्ध कराता रहा।

सुबह-शाम मिल रहा तीन-तीन घंटे पानी
सरपंच जानकी लगन सिंह ने बताया कि नारायणपुरा बस्ती के लोगों को इस बार भीषण जलसंकट का अहसास नहीं हुआ। ज्यादातर आदिवासी मजदूरी करते हैं, इसलिए वे सुबह या शाम के समय पानी भरते हैं। इसे ध्यान में रखकर छात्रावास का नलकूप सुबह और शाम के समय तीन-तीन घंटे चलाया जाता है। पहले ये आदिवासी पानी का इंतजाम करने के लिए तीन-चार किमी दूर तक जाते थे, जिससे कई लोग मजदूरी पर भी नहीं जा पाते थे। इस तरह का सिस्टम अब स्थानों पर भी लगवाएंगे।

गर्मी में सूख जाते थे कुएं और नलकूप
नारायणपुर के सीनियर बालक छात्रावास अधीक्षक नागेंद्र चौधरी ने बताया कि आदिवासी परिवार जहां से पानी भरते थे, वहां के कुएं और नलकूप गर्मी में सूख जाते हैं। वे चार किलोमीटर दूर से पानी लाते थे। अब छात्रावास के नलकूप से सभी को भरपूर पानी मिल रहा है। पर्याप्त पानी मिलने से यहां लगे पौधों का संरक्षण भी हो पा रहा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.