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सामने आई यूएन की चौकाने वाली रिपोर्ट, विश्‍व में 1.03 अरब टन खाद्य उत्‍पादन होता है बर्बाद!

पूरी दुनिया में हर वर्ष करीब 1.03 अरब टन खाद्य उत्‍पादन बर्बाद हो जाता है। ये करीब 17 फीसद है। इसको लेकर संयुक्‍त राष्‍ट्र ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें इसको लेकर चिंता जताई गई है। इतने भोजन से करोड़ों का पेट भर सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 05 Mar 2021 10:19 AM (IST)Updated: Fri, 05 Mar 2021 10:05 PM (IST)
सामने आई यूएन की चौकाने वाली रिपोर्ट, विश्‍व में 1.03 अरब टन खाद्य उत्‍पादन होता है बर्बाद!
खाद्य उत्‍पादन की बर्बादी पर यूएन ने जताई चिंता

न्यूयार्क (एपी)। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि दुनियाभर में हर साल 17 फीसद खाद्य उत्पादन बर्बाद हो जाता है। यह करीब 1.03 अरब टन होता है। यह बर्बादी पिछली रिपोर्टो से कहीं अधिक है। हालांकि इसकी सीधी तुलना मुश्किल है, क्योंकि इसके आकलन की अलग-अलग पद्धतियां हैं और कई देशों में आंकड़ों का अभाव है।

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ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता ब्रायन रो ने कहा कि आकलन में सुधार से प्रबंधन में सुधार किया जा सकता है। ज्यादातर बर्बादी या उसका 61 फीसद घरों में होती है जबकि खाद्य सेवाओं में यह बर्बादी 26 फीसद और फुटकर में 13 फीसद है। संयुक्त राष्ट्र विश्वभर में खाद्य बर्बादी कम करने के प्रयासों में जुटा है और शोधकर्ता भी बर्बादी का आकलन करने के काम में लगे हैं, इसमें उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले बर्बाद होने वाले खाद्य पदार्थ शामिल हैं।

संयुक्‍त राष्‍ट्र की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में 930 करोड़ टन खाना कचरे में बर्बाद किया गया। आपको बता दें कि संयुक्‍त राष्‍ट्र ने वर्ष 2030 तक खाने की बर्बादी को कम करने का संकल्‍प लिया है। यूएन एन्वायरन्मेंट प्रोग्राम और पार्टनर ऑगेनाइजेशन डब्‍ल्‍यूआरएपी के सहयोग से फूड वेस्‍ट इंडेक्‍स रिपोर्ट 2021 में ये बातें कही गई हैं। इसमें दुनिया को इस खतरे से आगाह भी किया गया है।

यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब किया गया ये भोजन भी खेतों में ही उगता है और सप्‍लाई चेन के माध्‍यम से बाजारों और फिर ग्राहकों तक पहुंचता है। इसके बाद इसको खाया नहीं जाता है और इसको कचरे के डिब्‍बे में फेंक दिया जाता है, जबकि इस भोजन से करोड़ों लोगों का पेट भरा जा सकता है। इस रिपोर्ट को बनाते समय यूएन ने दुनिया के देशों को उस तकनीके के बारे में भी बताया है, जिससे वो अपने यहां पर खराब होते खाने का सटीक अनुमान लगा सकते हैं।

यूएनईपी के एग्‍जीक्‍यूटिव डायरेक्‍टर इंगर एंडरसन का कहना है कि यदि हम क्‍लाइमेट चेंज और प्राकृतिक संसाधनों के नुकसान के प्रति अपनी जिम्‍मेदारी को नहीं समझेंगे तो इसका खामियाजा भी एक दिन हम ही को उठाना होगा। दुनिया के हर देश और हर देशवासी को इस तरफ ध्‍यान देना होगा कि अन्‍न का एक दाना भी खराब न होने पाए। खाद्य उत्‍पादन को बेकार करने में सबसे आगे अमीर देश हैं।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि घरों से करीब 11 फीसद, फूड सर्विस से करीब 5 फीसद और रिटेल आउटलेट से करीब 2 फीसद खाना बर्बाद होता है। इसका असर न सिर्फ सामाजिक तौर पर काफी व्‍यापक होता है, बल्कि ये पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचाता है। इसकी वजह से देश की आर्थिक स्थिति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि इस तरह के बर्बाद हुए खाने का प्रभाव ग्रीन हाउस गैसों के अधिक उत्‍सर्जन पर भी पड़ता है।

खाने की बर्बादी को रोककर हम ग्रीन हाउस गैसों के उत्‍सर्जन को कम कर सकते हैं। ये सीधेतौर पर हमारे पर्यावरण और वातावरण से संबंधित है। इसका असर हर जगह देखा जा सकता है। एंडरसन का कहना है कि हम जितना भोजन बर्बाद कर देते हैं उससे करोड़ों लोगों का पेट भरा जा सकता है। ऐसा करने से हम विश्‍व के विकास में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं। पैसों की बर्बादी को भी रोक सकते हैं।

इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में करीब 690 मिलियन लोग भुखमरी के शिकार थे, जबकि 3 बिलियन ऐसे थे जिन्‍हें हेल्‍दी डाइट नहीं मिलती थी। मौजूदा कोविड-19 महामारी ने स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया है। पेरिस एग्रीमेंट के तहत 12.3 सस्‍टेनेबल डेवलपमेंट गोल को पाने का लक्ष्‍य रखा गया है। साथ ही, खाने की बर्बादी को कम से कम करने का लक्ष्‍य रखा गया है।  


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