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बंजर जमीन को बनाया हरा-भरा, पर्यावरण संरक्षण की भी दी सीख

मौजूदा समय में उनके खेतों में तेजपात के पांच हजार, रीठा के 250, अखरोट के 200, समोया व लेमनग्रास के 50-50 हजार पेड़ लहलहा रहे हैं।

By Srishti VermaEdited By: Published: Fri, 10 Nov 2017 09:38 AM (IST)Updated: Fri, 10 Nov 2017 10:32 AM (IST)
बंजर जमीन को बनाया हरा-भरा, पर्यावरण संरक्षण की भी दी सीख
बंजर जमीन को बनाया हरा-भरा, पर्यावरण संरक्षण की भी दी सीख

पौड़ी (गणेश काला)। उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पाबौ ब्लॉक का छोटा सा गांव पोखरी। पलायन की मार से यह
गांव भी बुरी तरह त्रस्त है। बावजूद इसके गांव की दस हेक्टेयर भूमि में लहलहा रही जड़ी-बूटियों और बारानाजा (बारह प्रकार के अनाज) की फसल एक परिवार के पुरुषार्थ की कहानी बयां कर रही है। यह संभव हो पाया दो दशक तक मुंबई में जीने की राह तलाशते रहे 55 वर्षीय रामकृष्ण पोखरियाल की घर वापसी से। उन्होंने हाड़तोड़ मेहनत कर गांव को सरसब्ज ही नहीं बनाया, अन्य लोगों को स्वरोजगार व स्वावलंबन के साथ पर्यावरण संरक्षण की भी सीख दे रहे हैं।

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खानदानी वैद्यकीय परंपरा को चौथी पीढ़ी में भी जीवित रखे हुए रामकृष्ण ने गांव की बंजर भूमि को हरा-भरा करने की ठानी तो पलभर में मुंबई से दो दशक का नाता तोड़ सीधे गांव की राह पकड़ ली। शिक्षक पिता वैद्य राजाराम पोखरियाल के सानिध्य में पारंपरिक जड़ी-बूटियों के नुस्खे सीखे और जुट गए हरियाली की बयार लौटाने में। पहले स्वयं की जमीन को सींच वहां पौधे रोपे और धीरे-धीरे खेतों को सरसब्ज करने का यह दायरा कुटुंब की दस हेक्टेयर भूमि तक फैल गया।

मौजूदा समय में उनके खेतों में तेजपात के पांच हजार, रीठा के 250, अखरोट के 200, समोया व लेमनग्रास के 50-50 हजार पेड़ लहलहा रहे हैं। ठेठ पहाड़ी आबोहवा में जीने वाले रामकृष्ण के परिवार के आंगन में तीन दर्जन बकरियां और एक दर्जन गाय-भैंस भी मौजूद हैं। रामकृष्ण के मुताबिक, उन्होंने खेती के साथ ही वैद्यकीय सेवाओं के जरिए ही बेटी को एमबीए और बेटे को बीटेक की पढ़ाई कराकर अपने पैरों पर खड़ा किया है।

वाटर हार्वेस्टिंग के जरिए मत्स्य पालन : वैद्य रामकृ ष्ण की मेहनत और खेतीबाड़ी के प्रति रुचि को देखते हुए
2006-07 में तत्कालीन सीडीओ (वर्तमान में गढ़वाल कमिश्नर) दिलीप जावलकर ने मनरेगा से उनके खेतों के लिए सात लाख लीटर क्षमता का टैंक स्वीकृत कराया। साथ ही मनरेगा में ही खेतों के किनारे हदबंदी भी की गई। इसके अलावा चार वॉटर हार्वेस्टिंग टैंकों में मत्स्य पालन भी हो रहा है। इनमें दो टैंक दो-दो लाख और दो 20-20 हजार लीटर क्षमता के हैं।

सरस मेले में जीत चुके हैं राष्ट्रीय पुरस्कार : वैद्य रामकृष्ण को जड़ी-बूटी कृषिकरण के लिए 2008 में दून में आयोजित सरस मेले में सर्वश्रेष्ठ काश्तकार चुना गया। मेले में 24 राज्यों के काश्तकारों ने शिरकत की थी।

-गांव को हरियाली से सराबोर करने की जिद ने तुड़वाया मुंबई से नाता
-रेन वाटर हार्वेस्टिंग से दस हेक्टेयर भूमि में कर रहे जड़ी-बूटियों के साथ बारानाजा की खेती

पोखरियाल जी के मार्गदर्शन में हमने अपने गांव चामी में सात हेक्टेयर भूमि पर जड़ी-बूटी व फल-सब्जी उत्पादन का कार्य शुरू किया है। अगले तीन वर्षों में इसे 25 हेक्टेयर तक बढ़ाने का लक्ष्य है।’ -डॉ.अरुण कुकसाल, चामी
(असवालस्यूं)

पोखरियाल जी की जड़ी-बूटियों से पहाड़ से लेकर दिल्ली व अन्य शहरों के लोग लाभान्वित हो रहे हैं। ऐसे प्रयासों से पहाड़ से पलायन, बेरोजगारी जैसी समस्याएं काफी कम हो जाएंगी। साथ में आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी। -वैद्य दिगंबर प्रसाद थपलियाल, सिमतोली (खातस्यूं)

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