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नक्सलियों की मांद तक जाकर फोर्स में जगा रहे जोश, पिता और भाई को वर्दी में देख बने आइपीएस अधिकारी

घरवालों को सेना की वर्दी में देखने वाले अशोक जुनेजा को भी वर्दी पहनने का जुनून इस तरह सवार हुआ कि उन्होंने एमटेक करने के बाद सिविल सेवा परीक्षा दी और भारतीय पुलिस सेवा को चुना। अब वे सुकमा जिले के जंगलों से नक्सलियों को बाहर निकालने में जुटे हैं..

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 01:05 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 01:05 PM (IST)
नक्सलियों की मांद तक जाकर फोर्स में जगा रहे जोश, पिता और भाई को वर्दी में देख बने आइपीएस अधिकारी
अशोक जुनेजा सुकमा जिले के जंगलों से नक्सलियों को बाहर निकालने में जुटे हैं..

अनिल मिश्र, जगदलपुर। छत्तीसगढ़ पुलिस के स्पेशल डीजी (महानिदेशक) अशोक जुनेजा इन दिनों सुर्खियों में हैं। गुरुवार को वह बस्तर आइजी सुंदरराज पी, सुकमा के एसपी तथा चंद जवानों को लेकर नक्सल प्रभावित पालोडी कैंप तक जा पहुंचे। पालोडी तक पहुंचने वाले वह पहले डीजी हैं। सुकमा जिले के धुर नक्सल प्रभावित किस्टारम थाने से छह किमी दूर पालोडी तक पहुंचने का एकमात्र जरिया बाइक है। किस्टारम के आगे का सफर चुनौतीपूर्ण व खतरनाक है। ऐसे इलाके में खतरा मोलकर जुनेजा के यहां पहुंचने से पुलिस बल में एक अलग जोश दिख रहा है। जुनेजा का मानना है कि अब यहां से जल्द ही नक्सलियों के साम्राज्य का खात्मा हो सकेगा।

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घरवालों को वर्दी में देख बने आइपीएस अधिकारी : दिल्ली में पले बढ़े जुनेजा को वर्दी पहनकर देशसेवा करने की प्रेरणा परिवार से ही मिली। उनके पिता, भाई और अन्य रिश्तेदार सभी सेना में रहे। बहनोई मर्चेंट नेवी में हैं। घर में सबको वर्दी में देखकर जुनेजा का दिल भी वर्दी पहनने को मचलता था। एमटेक तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने संघ लोकसेवा की परीक्षा की तैयारी की और सफल रहे। वर्दी की ललक के चलते उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) में आने का निर्णय लिया।

छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों में एएसपी, एसपी, आइजी रहे जुनेजा दो बार प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली गए। छत्तीसगढ़ में एडीजी प्रशासन व गृह सचिव भी जुनेजा रहे हैं। पत्नी और इकलौती बेटी को छोड़कर जुनेजा नक्सल समस्या को जड़ से उखाड़ने जंगलों की खाक छान रहे हैं। जुनेजा ने छह महीने पहले नक्सल डीजी का चार्ज संभाला। नक्सल प्रभावित बस्तर में कोरोना काल में जब नक्सली निदरेष ग्रामीणों को मारने लगे तब जुनेजा ने खुद बस्तर के नक्सल मोर्चे की कमान संभाल ली। अब स्थिति यह है कि जुनेजा नक्सलियों को उनकी मांद में जाकर चुनौती दे रहे हैं।

क्यों अहम है पालोडी जाना : 13 मार्च, 2018 को नक्सलियों ने यहां सीआरपीएफ की गाड़ी को ब्लास्ट से उड़ा दिया था जिसमें नौ जवान शहीद हुए थे। इस साल 14 सितंबर को पालोडी इलाके से ड्रोन की एक तस्वीर आई थी जिसमें सैकड़ों नक्सली एक नाले को पार करते दिख रहे हैं। फोर्स ने पालोडी तक जून में सड़क बना दी थी। नक्सलियों के दबाव में ग्रामीणों ने सड़क खोद दी। अब जुनेजा को यहां देख भरोसा जागा तो ग्रामीण ही कह रहे हैं कि हम खुद सड़क बना देंगे।


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