MP Politics: कांग्रेस सरकार गिरते ही व्यापमं और ई-टेंडर जांच पड़ी ठंडी
हालांकि 15 महीने बाद ही सरकार गिर गई और अब शिवराज सरकार के दोबारा कुर्सी संभालते ही ये दोनों जांच न केवल ठंडी पड़ गई हैं।
रवींद्र कैलासिया भोपाल। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में तत्कालीन शिवराज सरकार के घोटोलों को मुद्दा बनाया था। सरकार में आते ही कमल नाथ सरकार ने व्यापमं की पुरानी शिकायतों पर एफआईआर दर्ज की तो ई-टेंडर घोटाले की जांच में मंत्री, भाजपा नेताओं को घेरने का प्रयास किया। हालांकि 15 महीने बाद ही सरकार गिर गई और अब शिवराज सरकार के दोबारा कुर्सी संभालते ही ये दोनों जांच न केवल ठंडी पड़ गई हैं वरन इनकी जांच करने वाली एजेंसियों के प्रमुखों को भी बदल दिया गया है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान वचन पत्र में शिवराज सरकार के घोटोलों की जांच कराने तथा जनआयोग को बनाने का वचन शामिल किया था।
हालांकि कमल नाथ सरकार 15 महीने के कार्यकाल में जनआयोग तो नहीं बना सकी, लेकिन उसने व्यापमं घोटाले की पुरानी शिकायतों की जांचों को दोबारा खोलने की कार्रवाई तेजी से शुरू की। यह जिम्मेदारी संभालने वाली मध्य प्रदेश पुलिस की एसटीएफ ने तोबड़तोड़ ढंग से 16 एफआईआर दर्ज कर ली थीं। शिकायतकर्ताओं, व्हिसल ब्लोअर पारस सकलेचा, डॉ. आनंद राय, आशीष चतुर्वेदी के विस्तृत बयान ले लिए गए थे, जिसमें कुछ नेताओं के नाम भी बताए गए। इसी तरह 2018 में शिवराज सरकार द्वारा आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) को सौंपी गई ई-टेंडर घोटाले की जांच में कमल नाथ सरकार ने तेजी से कार्रवाई के निर्देश दिए।
इसमें पार्टी के एक दिग्गज नेता को घेरने के लिए बैंक ट्रांजेक्शन को खंगाला गया, जिसकी जांच में भाजपा नेता के गृह नगर के किसानों तक ईओडब्ल्यू की टीम पहुंची थी। साथ ही भाजपा नेता के स्टाफ में रहे दो कर्मचारियों से भी ईओडब्ल्यू ने पूछताछ की थी। भाजपा ने बदल दिए अधिकारी सरकार में आते ही भाजपा ने एसटीएफ और ईओडब्ल्यू के प्रमुखों को बदल दिया। एसटीएफ में व्यापमं घोटाले की इंदौर में दर्ज हुई शुरुआती एफआईआर से जुड़े रहे अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विपिन माहेश्वरी को पदस्थ कर दिया गया। इन पर कांग्रेस ने साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ के आरोप भी लगाए थे। वहीं, ईओडब्ल्यू में पूर्व पुलिस महानिदेशक ऋषिकुमार शुक्ला के विश्वस्त साथी राजीव टंडन को पदस्थ किया गया। शुक्ला को कमल नाथ सरकार ने एक महीने बाद ही हटा दिया था, लेकिन वे इसके कुछ दिन बाद ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में डायरेक्टर बनकर प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे।
जो भी एफआईआर हुई हैं, उन्हें केस टू केस देखना होगा। अदालत में जाने के लिए एफआईआर में आधार भी होना चाहिए, जिससे वहां प्रकरण टिक सके। कोरोना संकट के चलते अभी तो काम नहीं हो रहा है।
विपिन माहेश्वरी, एडीजी, मप्र एसटीएफ