Move to Jagran APP

हर राज्य में बनेगा गिद्ध संरक्षित क्षेत्र, अगले पांच सालों में 207 करोड़ होंगे खर्च, राज्यों से मांगे गए प्रस्ताव

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने स्वच्छता में अहम भूमिका निभाने वाले गिद्धों के संरक्षण को लेकर नई कार्ययोजना को मंजूरी दी है। इस कार्योजना के तहत अगले पांच वर्षों में गिद्धों के संरक्षण पर 207 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जाएंगे।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2020 09:30 PM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2020 09:30 PM (IST)
हर राज्य में बनेगा गिद्ध संरक्षित क्षेत्र, अगले पांच सालों में 207 करोड़ होंगे खर्च, राज्यों से मांगे गए प्रस्ताव
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने गिद्धों के संरक्षण को लेकर नई कार्ययोजना को मंजूरी दी है।

नई दिल्ली, जेएनएन। स्वच्छता में अहम भूमिका निभाने वाले गिद्धों के संरक्षण की मुहिम अब तेज होगी। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसे लेकर एक नई कार्ययोजना को मंजूरी दी है। इसके तहत अगले पांच वर्षों में गिद्धों के संरक्षण पर 207 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च होंगे। इसके तहत उत्तर प्रदेश के गोरखपुर सहित देश के पांच राज्यों में गिद्धों के नए ब्रीडिंग सेंटर की स्थापना सहित उनके रहवासों के संरक्षण आदि का काम किया जाएगा।

loksabha election banner

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसके साथ ही नई कार्ययोजना में प्रत्येक राज्य में गिद्धों के संरक्षण के लिए कम से कम एक संरक्षित क्षेत्र स्थापित करने की भी योजना बनाई है। इसे लेकर राज्यों से प्रस्ताव मांगे गए है। वहीं स्थापित होने वाले पांच ब्रीडिंग सेंटरों की स्थापना पर 35 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यह नए ब्रीडिंग सेटंर गोरखपुर (उप्र) के साथ त्रिपुरा, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में स्थापित होंगे।

इसके साथ ही भोपाल (मप्र), मूटा चिडियाघर (झारखंड), रानी (असम), राजाभातखावा (पश्चिम बंगाल) जूनागढ़ (गुजरात) आदि जगहों पर पहले सें संचालित ब्रीडिंग सेंटरों के संरक्षण की भी योजना बनाई है। मौजूदा समय में देश में गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती है। इनमें पांच प्रजातियां सबसे ज्यादा खतरे में हैं। मौजूदा वक्‍त में गिद्धों की कम सख्‍या बची है।

गिद्धों की पर्यावरण को स्वच्छ रखने में अहम भूमिका को देखते हुए सरकार ने इसके संरक्षण की योजना को गति दी है। हालांकि इनकी मौत का जो बड़ी वजह पाई गई है... वह पशुओं को दी जाने वाली दर्दनाशक दवाएं हैं। ऐसे में पशुओं की मौत के बाद उनके मांस को खाने से उनकी किडनी फेल हो जाती है। इससे गिद्धों की भी मौत हो जाती है। हालांकि इन दवाओं की जहर को पहचानते हुए केंद्र सरकार ने साल 2004 में भी इनके संरक्षण की एक योजना बनाई थी।

यह योजना साल 2009 तक चलाई गई। इस दौरान पशुओं को दी जाने वाली इन दवाओं को प्रतिबंधित भी कर दिया गया, लेकिन मौजूदा वक्‍त में अभी भी ये दवाएं बाजार में चोरी छुपे बिक रही हैं। यही वजह है कि नई कार्ययोजना में प्रत्येक में पर्यावरण सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित की जाएगी। इनमें पशु चिकित्सा से जुड़े राज्य के आला अधिकारियों को भी रखा जाएगा। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.