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ब्रिटेन, फ्रांस के बाद भारत में उठी क्लाइमेट इमरजेंसी घोषित करने की आवाज, जानिए क्यों

संसद से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त कानून है लेकिन कानून कुछ नहीं कर सकता है जब तक कि उसे सख्ती से लागू नहीं किया जाए।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Fri, 20 Sep 2019 10:00 PM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 10:00 PM (IST)
ब्रिटेन, फ्रांस के बाद भारत में उठी क्लाइमेट इमरजेंसी घोषित करने की आवाज, जानिए क्यों
ब्रिटेन, फ्रांस के बाद भारत में उठी क्लाइमेट इमरजेंसी घोषित करने की आवाज, जानिए क्यों

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) की बढ़ती समस्या को देखते हुए ब्रिटेन, फ्रांस सहित दुनिया के कई देशों ने जहां अपने यहां क्लाइमेट इमरजेंसी घोषित कर दी है, वहीं भारत में भी इसे लेकर मांग तेज हो गई है। ईपीसीए (एनवायरमेंट पाल्यूशन प्रिवेंशन एंड कंट्रोल) के अध्यक्ष भूरे लाल ने भी इस मांग की समर्थन किया है। साथ ही कहा है कि भारत में बिल्कुल ऐसे हालात है। जो दिख भी रहा है। देश का आधा हिस्सा जहां सूखा है, जबकि आधा हिस्सा बाढ़ की चपेट में है।

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कैपिटल फाउंडेशन सोसाइटी और काउंसिल फार ग्रीन रिवोल्यूशन ( सीजीआर) की ओर से शुक्रवार को कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित कार्यक्रम में एनजीटी के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने भी हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या से सभी प्रभावित है। बावजूद इसके हम सख्त कदम उठाने से बच रहे है। ऐसा भी नहीं है, कि इससे निपटने के लिए हमारे पास कानून नहीं है।

संसद से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इससे निपटने के लिए पर्याप्त कानून है, लेकिन कानून कुछ नहीं कर सकता है, जब तक कि उसे सख्ती से लागू नहीं किया जाए। हालांकि इसके साथ ही सभी विशेषज्ञों ने एक सुर में कहा कि हालात खराब है, पर अभी भी समय है। हम इससे बच सकते है, लेकिन इसके लिए हमें अपने रहन-सहन के तरीकों में बदलाव लाना होगा। इसे पर्यावरण फ्रेंडली बनाना होगा। इस दौरान जल संकट पर भी चिंता जताई गई। साथ ही लोगों से इसके संरक्षण पर जोर देने को कहा।

दुनिया के जिन प्रमुख देशों ने अपने यहां क्लाइमेंट इमरजेंसी घोषित कर दी है, उनमें ब्रिट्रेन सबसे आगे है। जिसने एक मई 2019 को ही इसकी घोषणा कर दी। इसके बाद फ्रांस, कनाडा, आस्ट्रिया, अर्जेटीना, रिपब्लिक आफ आयरलैंड, पुर्तगाल आदि देशों ने अपने यहां इसकी घोषणा कर दी है। इसके पीछे जो तर्क है, वह यह है कि इससे जलवायु परिवर्तन के रोकथाम की गतिविधियां तेज हो सकेगी। 


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