'हां, आतंकवाद का होता है धर्म', VHP अध्यक्ष आलोक कुमार बोले- गुलाम कश्मीर को आजाद कराने का समय
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले द्वारा कुछ दिन पहले दिए गए बयान कि यदि संघ के स्वयं सेवक काशी-मथुरा से संबंधित आंदोलनों में भाग लेना चाहते हैं तो संगठन (संघ) को कोई आपत्ति नहीं होगी को भी हिंदू एकजुटता से जोड़कर देखा जा रहा है और हिंदू एकजुटता के लिए अहम माना जा रहा है।

अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। पहलगाम हमले में जिस तरह से धर्म पूछकर पर्यटकों को निशाना बनाया, उसने हिंदूवादी संगठनों के इस सोच पर एक तरह से मुहर लगा दी है कि आतंकवाद का धर्म होता है... विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार इसके पक्ष में दलील पेश करते हुए इसे वैचारिक चुनौती मानते हैं और एकजुट होने की सलाह देते हैं।
पहलगाम घटना से लेकर जातिवार गणना और काशी-मथुरा की लड़ाई के संदर्भों को हिंदूवादी संगठनों की सोच व तैयारियों पर दैनिक जागरण में उप मुख्य संवाददाता अनूप कुमार सिंह ने उनसे विस्तृत बातचीत की।
उप्र के बदायूं जिले के रहने वाले आलोक कुमार वर्ष 1973-74 में डीयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। पेशे से वकील होने के नाते आक्रामक बयानबाजी के बजाय तथ्यात्मक तरीके से अपनी बात रखना व जमीनी पकड़ उनकी खूबी है। तभी तो एक ओर कहते हैं कि काशी-मथुरा का मामला जब तक न्यायालय में है, तब तक सड़क पर संघर्ष की आवश्यकता नहीं। वहीं, दावा करते हैं कि यह शताब्दी ‘हिंदुओं की शताब्दी कहलाएगी। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंशः
क्या आतंकवाद का धर्म होता है?
– हां, आतंकवाद का धर्म होता है, बिलकुल होता है। यह भ्रम है कि आतंकवाद का धर्म नहीं होता, इस भ्रम को फैलाया गया है और फैलाया जा रहा है। दुनिया की आधी से अधिक लड़ाइयां धर्म के नाम पर लड़ी गईं, लड़ी जा रही हैं। खुद इस्लाम में इतने अंतरविरोध हैं कि उनके आपसी संघर्षों ने दुनिया की शांति के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर रखी है। पहलगाम की घटना में भी आतंकियों ने धर्म पूछकर कत्लेआम किया। जब एक वर्ग यह विश्वास करे कि यह उनके लिए, उनके धर्म की आज्ञा है कि जो लोग उनका धर्म नहीं मानते, उन पर हमला करो, मारो, लूटो, अपहरण करो, दुष्कर्म करो और यह लूट और दुष्कर्म उनको ऊपर से मिली नियामत है। फिर तो यह नहीं कहा जा सका कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। यह एक विचारधारा है, उस पर उस धर्म के कुछ लोग विश्वास करते हैं। उस कारण दुनिया भर की शांति को, प्रेम को और व्यवस्था को चुनौती मिलती रहती है। यह केवल कानून और व्यवस्था की समस्या नहीं है। यह विकृत धार्मिक मान्यताओं की भी समस्या है, इसलिए इसे वैचारिक चुनौती मानकर भी लड़ना होगा।
आपके (विहिप) अनुसार कश्मीर मामले के हल का अब क्या तरीका है?
– गुलाम कश्मीर की आजादी। गुलाम कश्मीर को भी अब आजाद करा दें।
क्या इस घटना के बाद ध्रुवीकरण और बढ़ेगा या बढ़ा है?
– कश्मीर में ध्रुवीकरण बढ़ेगा या बढ़ा है, ऐसा मुझको अंदाजा अभी नहीं हो रहा है, क्योंकि अब तक पर्यटकों पर हमला नहीं होता था। कश्मीर पर्यटकों पर जीता है। आम कश्मीरी चार महीने की कमाई से साल भर खाना खाते हैं। इस बार पर्यटन उद्योग की भी कमर तोड़ने की कोशिश की गई है। यह हमला तो सब पर है। सबको मिलकर लड़ना पड़ेगा।
पहलगाम हमले के बाद कश्मीर में विरोध प्रदर्शन हुए, मस्जिदों से हमले के विरोध में घोषणाएं की गईं। पहली बार ऐसा देखने को मिला। आप क्या सोचते हैं?
– मैं नहीं कह सकता, पर मुझे इतना तो संतोष है कि कह तो रहे हैं, कर तो रहे हैं। मैं नहीं जानता कि हृदय परिवर्तन हुआ है, एक घटना से होता भी नहीं है। संभवतः इस बात का डर होगा कि पर्यटक बंद हो गए तो हमारा क्या है। सरकार बाकी स्थिति तो संभाल लेगी, लेकिन पर्यटकों को कैसे लेकर आएगी, इस बारे में कह पाना थोड़ा मुश्किल है।
अमरनाथ यात्रा के आरंभ होने से ठीक पहले पहलगाम में आतंकी हमला कहीं श्रद्धालुओं को भयभीत करने का प्रयास तो नहीं...ताकि श्रद्धालु यात्रा पर न आएं?
– हमले के कारण लोग अमरनाथ यात्रा पर न आएं, ऐसा मुझे नहीं लगता। प्रयागराज कुंभ में एक दुर्घटना हो जाने के बाद भीड़ कम हो जाएगी, ऐसा कहा गया था, पर हुआ क्या, पहले से अधिक श्रद्धालु आए। कुंभ के दौरान ही नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचने से कुछ यात्री मर गए पर, इससे दिल्ली से कुंभ जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में कहीं कोई कमी नहीं आई। जहां श्रद्धा से जाते हैं, सैर-सपाटे के लिए नहीं जाते हैं, उनकी सोच और विश्वास अलग होता है। उनका अलग माइंडसेट होता है। अमरनाथ यात्रा सैर-सपाटा नहीं है।

सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले का कुछ दिन पहले एक बयान आया कि यदि संघ के स्वयं सेवक काशी-मथुरा से संबंधित आंदोलनों में भाग लेना चाहते हैं, तो संगठन (संघ) को कोई आपत्ति नहीं होगी। इस बयान को विहिप कैसे देखता है?
– काशी और मथुरा, यह दोनों मामले न्यायालयों में चल रहे हैं। एक वकील होने के नाते उसकी थोड़ी जानकारी-देखभाल मैं भी करता हूं। पूरी प्रमाणिकता के साथ तथ्यों और तर्कों को रखा जा रहा है। मामला न्यायालय में विचाराधीन है, प्रमाणिक तथ्यों को वहां रखा जा रहा है, इसलिए उनका यहां उल्लेख उचित नहीं। मेरी समझ यह है कि हमारे मुकदमे बहुत अच्छे हैं और मैं आशा करता हूं कि इन मुकदमों में हमें विजय मिलेगी। हिंदू समाज को काशी-मथुरा के मंदिर वापस प्राप्त होंगे। 1984 की धर्मसंसद में संतों ने निर्णय लिया था कि अयोध्या, काशी और मथुरा तीनों प्राप्त करेंगे।
क्या आप इसे अयोध्या आंदोलन की तरह देखते हैं?
– मुकदमे ठीक से लड़े जाएं, इसके लिए जो कुछ भी करने की आवश्यकता है। अध्ययन की, रिसर्च की, उन सबमें हम ठीक से जुटेंगे, पर जब तक न्यायालय में विषय चल रहा है, तब तक सड़क पर संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं है। उस समय का संघर्ष इसलिए हुआ था कि उस समय की सरकारों ने विरोध किया। अब ऐसी सरकारें हैं जो विरोध नहीं करेंगी, ऐसी हमको आशा है। उत्तर प्रदेश की भी नहीं करेगी, देश की भी नहीं करेगी। इसलिए इस संबंध में सड़क का आंदोलन इसकी अभी आवश्यकता हमें नहीं लगती। संघ सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के कथन का समर्थन है। जिस दिन भी हमें उसकी (आंदोलन) आवश्यकता पड़ी तो संविधान के अंतर्गत रहते हुए हमारे सामने जो-जो भी मार्ग और विकल्प हैं, उन सबको अपना कर हम मंदिर को पुन: प्राप्त करेंगे। पर, अभी इसकी आवश्यकता नहीं लग रही। न्यायालय में हमारा पक्ष मजबूत है।
अयोध्या, काशी और मथुरा के बाद ऐसे कौन-कौन से हिंदू धर्मस्थल हैं, जिन पर हिंदू पक्ष अपना एकाधिकार चाहता है?
– अभी हमारा सारा ध्यान काशी और मथुरा पर है और यह होने तक रहेगा। जब तक काशी-मथुरा के मंदिर हमको प्राप्त नहीं होते, उससे आगे का हम विचार नहीं करेंगे। ये होने के बाद संतों का क्या आदेश है, ये प्राप्त करेंगे, देखेंगे, अभी नहीं करेंगे। उनके दिशा-निर्देश के आधार पर ही आगे की नीति-कार्य योजना तय होगी।
आपने कहीं कहा है कि काशी-मथुरा के बाद विराम, इसका क्या आशय है?
– मैंने कभी, कहीं ऐसा नहीं कहा। मेरा यह कहना है कि हमारा ध्यान अन्य किसी ओर, अन्य किसी विषय पर नहीं है, पर काशी-मथुरा के मंदिर प्राप्त करने के बाद विराम नहीं लेंगे, हम और हमारे लोग इस दिशा में काम करते रहेंगे।
आरोप लगते रहे हैं कि हेट स्पीच का मामला हिंदू पक्ष की ओर से अधिक है। कोर्ट ने भी इसमें दखल दिया था और उस पर कार्रवाई भी हुई थी। क्या कहना है?
– हिंदू पक्ष की ओर से उतना नहीं है, जितना आरोप लगाया जा रहा है। हो सकता है कि कोई-कोई गैर जिम्मेदारी से बयानबाजी करता होगा। सुप्रीम कोर्ट के एक सीटिंग जज को अमेरिका के ला कालेज ने इन विषयों पर बोलने के बुलाया गया था। वह विदेश में लोगों को बोल रहे थे कि हेट स्पीच के मामले हिंदू समाज ही ज्यादा करता हैं। उसके अगले हिस्से में उन्होंने माना कि उनके पास जो मुकदमे आते हैं, उसके हिसाब से उनको लगा है, इसकी कोई ठोस जानकारी उनके पास नहीं है। बिना किसी ठोस जानकारी के सुप्रीम कोर्ट के सीटिंग जज विदेश के लोगों से बात करते हुए भारत की मेजोरिटी को अपमानित करे, आरोपित करे, मैं समझता हूं कि यह गैर जिम्मेदाराना है। मैं कानून का विद्यार्थी होने के कारण आश्वस्त हूं कि मेरी यह टिप्पणी मर्यादा के अनुकूल है। सब लोगों को इससे बचना चाहिए। और हेट स्पीच जो भी करता है, उसका निर्णय धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए। वह कोई भी, किसी भी धर्म का हो, अगर वह घृणा और नफरत फैलाता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
देश के विभिन्न राज्यों विशेषकर देवभूमि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि स्थानों पर जनसंख्या असंतुलन बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। इसे लेकर विहिप की क्या रणनीति है?
– विहिप के लिए भी यह चिंता का विषय है। हम इस पर काम कर रहे हैं। ये जो आबादी का असंतुलन है, इसके तीन कारण हैं। पहला घुसपैठ, दूसरा धर्मांतरण और तीसरा ज्यादा बच्चे पैदा करना। ये ज्यादा बच्चे पैदा करना मुसलमानों की बात है, यह ईसाइयों के यहां नहीं होता। सरकार ने बहुत अच्छी व्यवस्था बैठाकर घुसपैठ रोक दी है। सीमाएं सुरक्षित कर दी हैं, पर बंगाल में ऐसा नहीं हो पा रहा है, क्योंकि बंगाल की सरकार तो चाहती है कि वह आएं और बसें, बार-बार आएं और बार-बार बसें। बाकी जगह से अब इस तरह की खबरें नहीं हैं। और भी कई उपाए किए जा रहे हैं, सरकारें भी कदम उठा रही हैं। इसका प्रभाव नजर आ रहा है, आगे और दिखेगा। विहिप इसे लेकर लगातार सक्रिय है।
अवैध धर्मांतरण और घर वापसी बड़ा मुद्दा है। विहिप अवैध धर्मांतरण को राष्ट्रीय अभिशाप मानता है। क्या इसे रोकने के लिए कड़े केंद्रीय कानून की आवश्यकता है?
– अच्छा रहेगा अगर केंद्रीय कानून बने, पर यह कहना ठीक नहीं है कि इस पर कोई रोक नहीं लग रही है। मुझे संतोष है कि मध्य प्रदेश में और दूसरे राज्यों में अवैध धर्मांतरण कराने के आरोप में पादरियों को भी कोर्ट ने मुकदमा चलाने के बाद दंडित किया। बजरंग दल और दुर्गावाहिनी को भी इस बारे में सतर्क करेंगे। यह दूसरे की गलती है, हिंदू समाज इसका सामना करेगा। एक चुनावी ताकत थी मुसलमानों के पास सामूहिक वोट बैंक बनाकर प्रभावित करना। मैंने अपने सेकुलर मित्रों को कहा कि इसे बंद करो। पहले हिंदू जातियों में बंट कर वोट करता था, अब भी करता है, पर अगर तुम मुस्लिम वोट बैंक बनाओगे, उसका शोर करके बनाओगे, मस्जिद के लाउडस्पीकर से बनाओगे तो उसकी बहुत बड़ी प्रतिक्रिया में बहुत बड़ा हिंदू वोट बैंक बनेगा। महाराष्ट्र में बना, लोकसभा में बना, मध्य प्रदेश और हरियाणा में बना। इसी के साथ यह भी हुआ कि अब चुनाव में मुस्लिम ‘वीटो’ नहीं चलता। राष्ट्र धारा के अंदर शामिल होकर साथ चलेंगे तो साथ लेकर चलेंगे और अगर गुट बनाकर पराजित करने के इरादे से चलेंगे तो संख्याबल में हिंदू बहुत बड़ा है।
फिर यह बात क्यों कि हिंदू खतरे में है?
– मैं नहीं जानता और मैं मानता भी नहीं हूं। हिंदू किसी खतरे में नहीं है। अगर हम सनातन हैं तो शाश्व भी हैं। हम थे, हम हैं और हम रहेंगे भी। और हम विश्व में इस शताब्दी को ‘हिंदुओं की शताब्दी हैं,’ कहलवा कर रहेंगे।
अवैध धर्मांतरण रोकने के लिए उपाय?
– धर्मांतरण रोकने के लिए हमने लगभग 850 ब्लाक चिह्नित किए हैं, जो बेहद संवेदनशील हैं। हम प्रयत्न कर रहे हैं कि इन सबमें एक-एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता रखें। उनसे कहेंगे कि परिषद का काम बाकी लोग करेंगे, धर्मांतरण रोकने का काम तुम करो, घर वापसी का काम तुम करो। मुझे विश्वास है कि हम धारा को पलटेंगे। अगले पांच वर्षों में गांव के गांव, घर के घर सभी धर्म में लौट कर आएंगे।
कहा जा रहा है कि कुंभ मेले का उपयोग हिंदू एकता और सांस्कृतिक जागरण के लिए हो रहा है? आगे की रणनीति क्या है?
– कुंभ-महाकुंभ, हिंदू समाज की एकाग्रता निर्माण के लिए शुद्ध हृदय से किया जाने वाला उत्सव आयोजन है। हम लोगों ने इस अवसर पर संत सम्मेलन किए, मार्गदर्शक मंडल की बैठक की, देश की परिस्थिति का विचार किया था, संतों से आदेश लेकर ठोस अभियान की नीति बनाई। आगे भी ऐसा ही कुछ करते रहेंगे। मैं हर चीज को रणनीति नहीं कहना चाह रहा, हर चीज मेरे लिए रण है भी नहीं। हम राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक जागरण को इस तरह के आयोजन करते रहेंगे।
जातिगत जनगणना से क्या हिंदू समाज और ज्यादा नहीं बंटेगा?
– ऐसा कैसे होगा, घोषणा तो उस बात की हुई, जिसे सारा विपक्ष मांग रहा था। इसके पीछे कोई विवाद करने वाला खड़ा नहीं है। विपक्ष को भी लगा, सरकार को भी लगा, सारे देश को लगा कि 1931 के बाद जातिवार गणना नहीं हुई है। जब आरक्षण देना होता है किसी को तो 1931 के आंकड़ों के प्रोजेक्शन से काम चलाना होता है। यह गलत है, तो कितना आरक्षण होगा, इसका सही आंकड़ा बाद में आएगा, फिर आगे देखेंगे। मैं समझता हूं कि जब कोई बहुत कंट्रोवर्सियल बयान आता है तो वह ध्यान भटकाता ही है और जो सब लोग मांग रहे हैं, वो मिल जाता है तो बस ठीक है, धन्यवाद दो और आगे चलो।


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