Move to Jagran APP

नया खतरा: 15 हजार साल पहले के वायरस हो सकते हैं सक्रिय, बरसों पुरानी बीमारियां ले सकती हैं चपेट में

चीन में कोरोना वायरस के चलते दुनिया चिंतित है लेकिन वैज्ञानिकों का नया शोध दुनिया के संभावित और बड़े खतरे की इशारा कर रहा है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 28 Jan 2020 07:04 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jan 2020 01:18 AM (IST)
नया खतरा: 15 हजार साल पहले के वायरस हो सकते हैं सक्रिय, बरसों पुरानी बीमारियां ले सकती हैं चपेट में
नया खतरा: 15 हजार साल पहले के वायरस हो सकते हैं सक्रिय, बरसों पुरानी बीमारियां ले सकती हैं चपेट में

नई दिल्‍ली, जागरण स्‍पेशल। चीन में कोरोना वायरस के चलते दुनिया चिंतित है, लेकिन वैज्ञानिकों का नया शोध दुनिया के संभावित और बड़े खतरे की इशारा कर रहा है। वैज्ञानिकों ने तिब्बत में 15 हजार साल पुराने वायरस के समूह का पता लगाया है। कोल्ड स्‍प्रिंग हार्बर लेबोरेटरी द्वारा संचालित बॉयो आर्काइव डाटाबेस से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर की बर्फ पिघल रही है और ये वायरस बाहर आ रहे हैं। आशंका है कि इससे बरसों पुरानी बीमारियां फिर से दुनिया को अपनी चपेट में ले सकती हैं।

loksabha election banner

यहां छिपे हैं वायरस

उत्तर पश्चिम तिब्बत के पठारों में स्थित एक बड़े ग्लेशियर की बर्फ पिघल रही है। शोधकर्ता बताते हैं कि यहां पर कभी न देखे गए 15 हजार साल पुराने वायरस मौजूद हैं। ग्लेशियर के मूल तक जाने के लिए वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर के पठारों को करीब 50 मीटर तक ड्रिल किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जब ग्लेशियरों की बर्फ पिघलेगी और यह वायरस बाहर आएंगे तो यह दुनिया के लिए बड़ा संकट होगा। यह कई तरह की बीमारियों के कारण बन सकते हैं।

वायरसों का है समूह

यह 33 वायरसों का समूह है। यह 520 से 15 हजार साल पुराने हैं। जिन्होंने इस बर्फीले इलाके को अपना घर बना लिया है। चिंता की बात है कि इन 33 में से आधुनिक विज्ञान महज 5 के बारे में जानता है। जबकि 28 ऐसे हैं, जो विज्ञान के लिए नए हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि बर्फ में दबे होने के कारण यह वायरस अलग-अलग जलवायु में खुद को जिंदा रख सके हैं।

दो नमूने, एक नतीजा

अमेरिका से तिब्बत पहुंची वैज्ञानिकों की टीम ने 1992 और 2015 में ग्लेशियर से नमूने लिए थे। इनमें ग्लेशियर के टुकड़ों को ठंडे कमरों में रखा गया था। जहां एक को इथेलॉन से साफ किया गया और दूसरे को साफ पानी से धोया गया। ग्लेशियर की बाहरी परत हटते ही 15 हजार साल पुराने वायरस सामने आ गए।

जलवायु परिवर्तन बढ़ाएगा मुश्किल

जलवायु परिवर्तन को लेकर विभिन्न मंचों से आवाज उठती रही है, लेकिन ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने में हम कामयाब नहीं हो सके हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि अंटार्कटिका में ग्लेशियरों का पिघलना बहुत तेज है। 1980 की तुलना में यह 2019 में छह गुना तेज हो चुका है। जिसका प्रभाव कई समस्याओं को जन्म दे रहा है। जलवायु परिवर्तन को तिब्बती पठार को प्रभावित करने वाला माना जाता है और यह 1970 के बाद से अपनी एक चौथाई बर्फ खो चुका है। यदि इसे नहीं रोका गया तो शेष दो तिहाई ग्लेशियर सदी के अंत तक खो सकते हैं।

ऐसे समझिए खतरे की विभीषिका

2016 में एंथ्रेक्स के प्रकोप को देखते हुए रूसी सैनिकों को साइबेरिया ले जाया गया था। जहां ज्यादा तापमान के बाद 40 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इनमें से एक किशोर की मौत हो गई थी। यह एक रेंडियर की लाश के कारण हुआ था, जिसकी 70 साल पहले घातक संक्रमण के चलते मौत हो गई थी। उस वक्त इसे दफनाया गया था। रूसी विशेषज्ञों ने हिरन की लाश के गलने और बाद में एंथ्रेक्स के प्रकोप के लिए ग्लोबल वार्मिंग को दोषी ठहराया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.