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यहां रेलवे-ग्रामीणों ने पेश की सहयोग की अनोखी मिसाल, एक प्रोजेक्ट से दोनों की जरूरत पूरी

कुल्हार रेलवे को तीसरी रेल लाइन बिछाने के लिए मुरुम (बजरी) की जरूरत थी और ग्रामीणों को खेती के लिए पानी की जरुरत थी। दोनों के सहयोग से दोनों का काम सफल हुआ।

By Pooja SinghEdited By: Published: Fri, 30 Aug 2019 11:04 AM (IST)Updated: Fri, 30 Aug 2019 12:07 PM (IST)
यहां रेलवे-ग्रामीणों ने पेश की सहयोग की अनोखी मिसाल, एक प्रोजेक्ट से दोनों की जरूरत पूरी
यहां रेलवे-ग्रामीणों ने पेश की सहयोग की अनोखी मिसाल, एक प्रोजेक्ट से दोनों की जरूरत पूरी

भोपाल, संदीप चंसोरिया। कुल्हार रेलवे स्टेशन की तीसरी रेल लाइन बिछाने के लिए मुरुम (बजरी) की जरूरत थी और ग्रामीणों को खेती के लिए पानी की। एक तरकीब ने दोनों की जरूरतों को पूरा कर दिया। ग्रामीणों और रेलवे के बीच इस तरह के प्रयोग का ये संभवतः पहला और बेहद अनोखा मामला है। यह सफल प्रयोग मध्य प्रदेश के भोपाल से करीब 150 किलोमीटर दूर विदिशा जिले के छोटे से गांव कुल्हार में हुआ।

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अन्य गांवों को भी दिखाई नई राह
वर्तमान में गांव के छह तालाबों में करीब 60 लाख क्यूबिक फीट पानी जमा हो चुका है। यह एक गांव की तस्वीर है। ऐसा ही बदलाव बीना से भोपाल के बीच रेलवे लाइन के किनारे के अनेक गांवों में देखने को मिलता है, जो कुल्हार गांव में हुई पहल के बाद हुआ है। दरअसल, वर्ष 2010 में बीना-भोपाल रेलखंड में तीसरी रेल लाइन बिछाने का काम शुरू हुआ था। यह काम देश की जानी मानी निर्माण कंपनी एल एंड टी कर रही थी। रेल लाइन बिछाने के लिए हार्ड मुरुम (बजरी) की जरूरत थी, जो इस क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध थी। कंपनी ट्रैक के नजदीक से ही मुरुम खोदकर बिछा रही थी।

गांव के सरपंच ने दिया सुझाव
कुल्हार के पूर्व सरपंच वीरेंद्र मोहन शर्मा को मुरुम खोदाई के जरिए गांव में जल संरचनाएं तैयार करवाने की तरकीब सूझी। उन्होंने अपने साथी सुरेंद्र सिंह दांगी को साथ लेकर निर्माता कंपनी के अधिकारियों के सामने प्रस्ताव रखा कि वे गांव में जहां-जहां जगह चिह्न्ति करें, वहां तालाबनुमा संरचना में खोदाई कर दें, तब तो गांव से कंपनी को मुरुम मिलेगी अन्यथा मुरुम नहीं दी जाएगी। चूंकि कंपनी को मुरुम चाहिए थी, इसलिए प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। नतीजन गांव की सरकारी जमीन पर छह तालाब तैयार हो गए।

बारिश का पानी जमा कर गांव वालों को मिला फायदा 
कंपनी को गांव के एक ओर पांच और दूसरी ओर एक तालाब की संरचना के लिए जगह मुहैया करवाई गई। पंचायत के अधीन सरकारी जमीन पर तैयार होने वाली सभी छह संरचनाओं का कुल क्षेत्र करीब तीन लाख वर्गफीट था, जो औसत 20 फीट गहराई तक खोदी गईं। इस पूरे काम में चार से पांच साल का समय लगा। औसतन 20 फीट गहराई वाले सभी छह तालाबों का कुल क्षेत्रफल 6 लाख वर्गफीट है, जिनमें बारिश का वो पानी जमा होने लगा है, जो पहले बह जाता था। इसकी मात्र करीब 60 लाख क्यूबिक फीट यानी 38 मिलियन गैलन है। 

कुल्हार रेलवे के लिए गांव वालों ने दी मुरूम
गांव के एक ओर पांच तालाब तैयार किए गए हैं। इनकी डिजाइन एक-दूसरे को जोड़कर तैयार की गई है। लिहाजा, जब सबसे ऊपर का तालाब ओवरफ्लो होता है तो उसका पानी दूसरे तालाब में स्वत: पहुंच जाता है। इस तरह सभी तालाब भरने के बाद ही पानी बहता है, हालांकि सभी तालाबों के ओवरफ्लो होने की स्थिति अब तक नहीं बनी है। जब कुल्हार में तालाब बनकर तैयार हो गए तो उन्हें देखकर बीना-भोपाल के बीच रेलवे लाइन से लगे गांवों के ग्रामीणों ने भी इस तरह की संरचनाएं तैयार करवाने में रुचि दिखाई। ग्रामीणों ने स्वयं की जमीन से कंपनी को मुरुम देकर तालाब तैयार करा लिए। वीरेंद्र कहते हैं, अगर सभी तालाबों के चारों ओर पाल बांध दी जाए और पानी निकासी के लिए नहर व्यवस्थित कर दी जाए तो ये तालाब आगे कई साल बने रहेंगे। 

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