बुनियादी ढांचा-प्रशासनिक सुधारों के 10 क्षेत्रों में भारत की उपलब्धि और चुनौतियों की पड़ताल
विजयदशमी पर्व के ऐन पहले शिक्षा स्वास्थ्य गरीबी कुपोषण प्रदूषण राष्ट्रीय सुरक्षा अर्थव्यवस्था खाद्य सुरक्षा बुनियादी ढांचा और प्रशासनिक सुधारों के दस क्षेत्रों में भारत की उपलब्धि और चुनौतियों की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
नई दिल्ली, जेएनएन। असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक पर्व विजयदशमी की तैयारियां जोरों पर हैं। चहुंओर खुशी का माहौल है। आजादी के बाद लगातार हम इस पर्व के मर्म के साथ आगे बढ़ रहे हैं। सात दशक से ज्यादा बीत चुके हैं। संयोग से देश में स्वाधीनता का अमृत महोत्सव भी मनाया जा रहा है। अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद विरासत में हमें तमाम चुनौतियां मिलीं, लेकिन हमारा स्वाभिमान जाग्रत हुआ।
कई अहम मसलों और समस्याओं से हमने स्वाधीनता पाई। कई मामलों में हमने स्वावलंबन हासिल किया। सिर्फ आत्मनिर्भर ही नहीं हुए, दुनिया के कई देशों को निर्यात भी करने लगे। कोई भी यह जानकर गर्व कर सकता है कि आजादी मिलने के समय पूरे देश में हम उतना भी अनाज नहीं पैदा कर पाते थे, जिससे सारी आबादी का पेट भर सके।
आज हम 1950-51 में 508 लाख टन खाद्यान्न के मुकाबले 3034 लाख टन खाद्यान्न उत्पादित करने लगे हैं। खाद्यान्न उत्पादन में हम न सिर्फ स्वाधीन हुए बल्कि आत्मनिर्भरता से आगे बढ़ते हुए हम निर्यातक देश भी बने। तेजी से विकास कर रहे देश की सबसे बड़ी जरूरत ऊर्जा है। आजादी के समय हम महज 6.6 अरब यूनिट बिजली उत्पादित करते थे, आज करीब 1600 अरब यूनिट बिजली उत्पादित की जा रही है। भारतीयों की जीवन प्रत्याशा करीब तीन गुना से अधिक बढ़ चुकी है। 1950-51 में देश का जो विदेशी मुद्रा भंडार 951 करोड़ रुपये था, आज वह अप्रत्याशित रूप से बढ़कर 36 लाख करोड़ रुपये हो चुका है।
देश के समक्ष कई बुराइयों, कमियों और समस्याओं पर हमने विजय पाई है। लेकिन हमारी विजयदशमी तभी सार्थक होगी जब देश के सामने एक भी समस्या अजेय नहीं होगी। चुनौतियां बहुत हैं। मीलों का सफर तय करना है। विजयदशमी जैसे त्योहार हमें यही सिखाते हैं कि हार नहीं माननी है। अंतत: विजय उसी की होगी जो सच के साथ निष्ठावान होकर कर्म करेगा।
कुपोषण पर विजय : आजादी के साथ भारत को कुपोषण और भुखमरी की समस्याएं विरासत में मिली थीं। इन समस्याओं के बीच तेजी से बढ़ती आबादी ने भी मुश्किल पैदा कर दी थी। इन चुनौतियों के बीच देश ने किसी सूक्ष्म पोषक तत्व की कमी को सीधे किसी सप्लीमेंट से पूरा करने के बजाय विज्ञानी तरीके से हल निकाला। स्थानीय बीमारियों का उन्मूलन उनके खान-पान की कमी को पूरा करके सफलता पाई गई। यह रणनीति बहुत कारगर रही।
योजनाओं से बदल रही तस्वीर
- बच्चों को स्कूल में पोषण से युक्त मिड डे मील देने से कुपोषण से लड़ने में मदद मिली। हाल ही में सरकार ने इसके प्रारूप को बदलते हुए योजना को और बेहतर किया है।
- दालों व अन्य मोटे अनाजों के उत्पादन पर जोर देते हुए देश हरित क्रांति 2.0 की तरफ बढ़ रहा है। इससे पोषण की कमी की समस्या से लड़ने की राह खुलेगी।
राष्ट्रीय सुरक्षा : राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। भारतीय सेना दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। सबसे बड़ी खूबी यह है कि भारत में सेना में भर्ती होना अनिवार्यता नहीं है, बल्कि लोग स्वैच्छिक रूप से देश सेवा की भावना से ओतप्रोत होकर सेना का हिस्सा बनते हैं। जटिल से जटिल भौगोलिक परिस्थितियों में भी भारतीय जवानों की दृढ़ता का दुनिया लोहा मानती है। संयुक्त राष्ट्र की शांतिरक्षक सेनाओं में भारतीय जवानों का अप्रतिम योगदान है। इसी तरह गिनती के कुछ अधिकारियों और सिपाहियों के साथ गठित की गई भारतीय वायुसेना आज दुनिया की शीर्ष पांच वायुसेनाओं में शामिल है। राफेल जैसे उन्नत लड़ाकू विमानों ने इसकी ताकत को और बढ़ाया है। बीते दिनों वायुसेना दिवस के मौके पर भारतीय जांबाजों ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया था। भारतीय नौसेना भी शीर्ष 10 में शामिल है। हाल ही में सरकार ने नौसेना के लिए छह पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इनसे नौसेना की ताकत को और बढ़ाने में मदद मिलेगी।
बुनियादी ढांचा : समग्र रूप में किसी भी संसाधन में हम दुनिया से पीछे नहीं ठहरते। चूंकि हमारी आबादी विशाल है लिहाजा प्रति व्यक्ति के अनुपात में हम जरूर पिछड़ जाते हैं। पिछले दो दशक इसमें विशेषरूप से अहम रहे हैं। अटलजी की सरकार में स्वर्णिम चतुभरुज योजना और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से देश में तेजी से सड़कों का जाल बिछा। मौजूदा सरकार ने भी इस दिशा में कदम उठाए हैं। देश में रिकार्ड 30 किलोमीटर प्रतिदिन से ज्यादा की दर से सड़क निर्माण हो रहा है। इसके अतिरिक्त रेलवे, टेलीकाम समेत कई अन्य बुनियादी ढांचे के मामले में भी भारत आज दुनिया के कई देशों को टक्कर दे रहा है। इस स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 100 लाख करोड़ की गति शक्ति योजना का एलान किया है। इसके तहत रेल, हवाई और जलमार्ग से एकीकृत यातायात प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाएगा। यातायात के विभिन्न माध्यमों में तालमेल नहीं होने के कारण लाजिस्टिक्स की लागत बढ़ती है। गति शक्ति योजना से इस लागत में अवश्य कमी आएगी।
प्रशासनिक सुधार : प्रशासनिक व्यवस्था किसी राष्ट्र की उन्नति में अहम होता है। स्वतंत्रता के तुरंत बाद से ही प्रशासनिक सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए गए। 1947 में सचिवालय पुनर्गठन समिति, 1948 में मितव्ययिता समिति, 1949 में आयंगर समिति और 1951 में एडी गोरेवाला समिति ने समय-समय पर सुझाव दिए। 1966 में प्रशासनिक सुधार आयोग गठित किया गया। 1970 में आयोग ने करीब छह सौ सुझाव दिए थे। इनसे प्रशासन सुधारने में बहुत मदद मिली। इसके बाद 2005 में दूसरा आयोग गठित किया गया। नौकरशाही में सुधार के लिए आयोग ने अहम सिफारिश दी थी। इसमें कहा गया था कि 14 साल की सेवा के बाद काम की समीक्षा लोकसेवक को उसके मजबूत व कमजोर पहलुओं से अवगत कराने के लिए होनी चाहिए। वहीं 20 साल में होने वाली समीक्षा का उद्देश्य यह तय करना होना चाहिए कि वह लोकसेवक सेवा में बने रहने योग्य है या नहीं। मौजूदा सरकार ने भी सरकारी मशीनरी में कामकाज सुधारने की दिशा में कई अहम फैसले लिए हैं।
खाद्य सुरक्षा : आजादी के कुछ ही वर्षो बाद देश खाद्यान्न की कमी का सामना कर रहा था। इसके लिए आजादी के तुरंत बाद की सरकारी नीतियां भी कारण थीं। जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में सरकार ने कृषि पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया। 1965 में स्थिति यह थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को जनता से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील करनी पड़ी। इसके कुछ वर्ष बाद धीरे-धीरे हरित क्रांति का असर दिखना शुरू हुआ। 1980 आते-आते देश में खाद्यान्न की कमी नहीं रह गई थी। आज कई उत्पादों के हम अग्रणी निर्यातक भी बन चुके हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से गरीब तबके के लिए भोजन की व्यवस्था सुनिश्चित हो रही है। हरित क्रांति में गेहूं और चावल पर जोर देने से अन्य अनाजों व दालों का उत्पादन जोर नहीं पकड़ पाया था। हाल के वर्षो में दलहन और तिलहन के उत्पादन में तेजी आई है। देश में हरित क्रांति 2.0 की तैयारियां जोरों से चल रही हैं।
प्रदूषण को मात : मानवजाति ने प्रदूषण के रूप में विकास की बड़ी कीमत चुकाई है। जैसे-जैसे आर्थिक विकास होता गया, दुनिया के तमाम देश प्रदूषण का शिकार होते चले गए। भारत भी अपवाद नहीं है। 2020 में लगातार तीसरे साल दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी रही थी। हालांकि सरकार पिछले कुछ समय से इस दिशा में लगातार प्रयासरत है।
भारत के अहम कदम
- भारत की अगुआई में 124 देशों का इंटरनेशनल सोलर अलायंस गठित हुआ है। 2015 में भारत ने इसकी पहल की थी। इसका उद्देश्य सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना है। इससे कोयला आधारित बिजली संयंत्रों पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
- भारत ने 2016 में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 2005 की तुलना में 30 से 35 फीसद कम करना है। इस दिशा में भारत के प्रयासों की सराहना हो रही है।