उद्यम कर सेना निधि में योगदान दे रहीं शहीद की बुजुर्ग मां
निर्मला शर्मा केंद्रीय विद्यालय में इकॉनॉमिक्स की टीचर थीं। बेटे के शहीद होने के बाद समय से पहले 2002 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली।
ब्रजेंद्र वर्मा, भोपाल। जैसे ही घर के सामने कोई गाड़ी रुकती है 74 साल की निर्मला पल भर को व्याकुल हो उठती हैं, मानो बेटा छुट्टी पर घर आ गया हो। उम्रदराज नजरें जवान बेटे का अक्स तलाशने लगती हैं, जो मातृभूमि की रक्षा में सर्वोच्च बलिदान दे अमर हो गया। शहीद कैप्टन देवाशीष शर्मा की बुजुर्ग मां निर्मला अब चीनी मिट्टी के बर्तन बना और बेचकर सेना निधि में राशि जमा करती हैं।
10 दिसंबर 1994 में कैप्टन देवाशीष शर्मा जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों से मुकाबला करते हुए शहीद हो गए थे। अपने शहीद बेटे पर निर्मला देवी को गर्व है और वे अब उसकी याद में चीनी मिट्टी (सिरेमिक) के गिलास, मटकी और कप जैसे बर्तन बनाती हैं और प्रदर्शनी लगाकर उन्हें बेचती हैं। इससे मिलने वाले पैसे वे सेना की झंडा निधि में जमा कराती हैं, जिससे शहीद सैनिकों के माता-पिता व उनके बच्चों को मदद मिल सके। इस साल एक लाख 10 हजार रुपए सेना की निधि में जमा कराए हैं।
भोपाल, मप्र के शाहपुरा बी सेक्टर में रहने वालीं 74 वर्षीय मां निर्मला शर्मा की आंखों में बेटे को याद कर आंसू छलक पड़ते हैं। उन्होंने बताया कि बेटा 1992 में सेना में भर्ती हो गया तो घर में बहुत खुशी थी। उसकी शादी भी होने वाली थी। लड़की देख रखी थी। लेकिन कहते हैं न कि जिंदगी कब करवट ले लेती है इंसान को पता ही नहीं चलता। अचानक बेटे के शहीद होने की सूचना आई। वे कहती हैं, देश के लिए बेटे की शहादत पर आज भी गर्व है और जिंदगी की आखिरी सांस तक रहेगा।
निर्मला शर्मा केंद्रीय विद्यालय में इकॉनॉमिक्स की टीचर थीं। बेटे के शहीद होने के बाद समय से पहले 2002 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। पति जितेंद्र कुमार भी केंद्रीय विद्यालय में थे। 2006 में उनका देहावसान हो गया। घर में बेटे और पति की यादों के अलावा कुछ नहीं बचा। 1986 से मिट्टी से बर्तन व कलाकृतियां बनाना सीखने के लिए भारत भवन जाया करती थीं। इसी हुनर को बेटे की यादों से जोड़ा और साल 2007 से अब तक भोपाल, मुंबई, पुणे, कोचीन, अहमदाबाद सहित देश के अन्य शहरों में प्रदर्शनी लगाई। जो भी राशि मिली सेना की झंडा निधि में दान कर दी।