वेंकैया नायडू ने किया आलोचनाओं को खारिज
नायडू का कहना था कि देरी से न्याय का मतलब न्याय देने से इन्कार करना होता है। देश भर में लोग उनके फैसले की सराहना कर रहे हैं, लेकिन कुछ नेता स्वार्थवश आलोचना में जुटे हैं।
नई दिल्ली, प्रेट्र: जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव व अली अनवर की राज्यसभा सदस्यता रद करने के मामले में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने उन आलोचनाओं को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें उन पर पक्षपात का आरोप लगाया जा रहा है।
राज्यसभा के सभापति वेंकैया का कहना है कि उन्होंने रिकार्ड तीन माह के समय में याचिका को निपटाकर एक मिसाल कायम की है। केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) के 12 सालाना सम्मेलन में पहुंचे उप राष्ट्रपति ने कहा कि इस तरह के मामलों को पीठासीन अधिकारी तीन माह के भीतर निपटाएं। यह मामले लंबित रहने से बेवजह विवाद होते हैं। नायडू का कहना था कि देरी से न्याय का मतलब न्याय देने से इन्कार करना होता है। देश भर में लोग उनके फैसले की सराहना कर रहे हैं, लेकिन कुछ नेता स्वार्थवश आलोचना में जुटे हैं। उधर, माकपा के महासचिव प्रकाश करात व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इतनी तेजी से फैसला करने पर सवाल खड़े किए हैं।
जदयू बोला, शरद व अली अनवर को खुद त्यागपत्र देना चाहिए था
जदयू ने शरद यादव व अली अनवर पर तीखा हमला करते हुए कहा कि उन्हें खुद इस्तीफा दे देना चाहिए था। नैतिकता का हवाला देते हुए कहा गया कि दोनों को राज्यसभा तक पहुंचाने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अहम भूमिका थी। जब उन्होंने पार्टी से विद्रोह किया और उनके साथ कोई विधायक नहीं गया तो अपने आप से जाहिर हो जाता है कि वह राज्यसभा सदस्य बनने के काबिल नहीं रहे।
लेकिन दोनों ने अपना मजाक बनवा लिया। जदयू के महासचिव संजय झा का कहना है कि शरद यादव को राजनीति में मुकाम देने वाले नीतीश कुमार ही हैं। जार्ज फर्नाडीज के बाद शरद यादव को जदयू अध्यक्ष बनाने में अहम भूमिका नीतीश की थी, लेकिन शरद ने उलटे उनके खिलाफ राजनीति की। यहां तक कि जीतन राम मांझी को नीतीश के खिलाफ खड़ा कर दिया। अनवर पर तीखा हमला करते हुए संजय झा ने कहा कि वह राजनीतिक तौर पर गुमनाम थे। नीतीश ने उन्हें राज्यसभा तक पहुंचाया, लेकिन अनवर ने उनकी पीठ में छुरा घोप दिया।
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