कोरोना महामारी के खिलाफ टीकाकरण की सुस्त रफ्तार और उसकी राह में आ रही चुनौतियां
Vaccination Drive In Indiaअनुमान है कि दिसंबर 2021 तक देश के पास 216 करोड़ खुराक वैक्सीन की होगी। लेकिन वास्तविक आपूर्ति हमेशा अनुमानित आपूर्ति से कम होती है। इसलिए आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक उपाय भी तैयार रखने होंगे।
चंद्रकांत लहारिया। Vaccination Drive In India हर मर्ज की एक दवा होती है। यह रामबाण होती है। उपाय सहायक होते हैं। कोविड-19 महामारी का भी इलाज है। इसका टीका। कोविड प्रोटोकाल के तहत तमाम एहतियाती कदम इससे बचने के सहायक उपाय हैं। इनके इस्तेमाल से एक सीमित अवधि तक हम खुद को सुरक्षित रख सकते हैं, लेकिन टीका लगाकर हम इस महामारी को परास्त कर सकते हैं। इस मर्म को दुनिया ने समझा और टीके की होड़ शुरू हुई। वैक्सीन के विकास-क्रम में भारत भी पीछे नहीं रहा। उसने भी अपना टीका विकसित किया। 16 जनवरी 2021 से चरणबद्ध तरीके से देश में दो टीके (कोवैक्सीन और कोविशील्ड) लगाए जाने लगे। करीब पांच महीने में हम अपनी 18 करोड़ आबादी को टीका लगा चुके हैं जिनमें पहली डोज वालों की संख्या अधिक है।
एक मई से टीकाकरण का दायरा बढ़ाया गया और तब से देश की सभी वयस्क आबादी को इसका हकदार बना दिया गया। जितनी यह बात सही है कि देर से टीकाकरण शुरू होने के बावजूद अब तक सबसे अधिक टीका लगाने वाले हम अव्वल देश हैं, उतनी ही यह बात भी सच है कि पहला टीका लगवा चुका व्यक्ति दूसरे टीके की आस में दिन भर जतन कर रहा है। राज्य अपना रोना रो रहे हैं कि टीका नहीं है, केंद्र सबके पास टीका होने के आंकड़े पेश कर रहा है। राज्यों को कंपनियों से सीधे खरीद की अनुमति भी मिल चुकी है, लेकिन दुनिया भर में इन दिनों टीके का ही टोटा है। दुनिया में टीके की सर्वाधिक उत्पादन क्षमता भारत के पास है, लेकिन उसे क्षमता बढ़ाने के लिए कच्चा माल ही नहीं मिल रहा है। हम दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चला रहे हैं, लेकिन अभी 14 फीसद आबादी को भी हम दोनों टीके लगाकर सुरक्षित नहीं कर सके हैं। आखिर कहां चूक रहे हैं हम? जिस देश के बारे में पहले कहा जा रहा था कि पोलियो जैसे बड़े टीकाकरण अभियान के लिए जिसके पास व्यापक नेटवर्क है, उसको टीकाकरण में भला क्या दिक्कत आएगी। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
दश में टीकाकरण अभियान से लोगों को बहुत उम्मीदें हैं, लेकिन प्रथमदृष्टया लगता है कि यह अभियान कई चुनौतियों से जूझ रहा है। हम दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता देश हैं। बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए भारत 1978 से टीकाकरण कार्यक्रम चलाता आ रहा है। पोलियो के खात्मे में देश ने मिसाल पेश की है। इसके बावजूद 16 जनवरी 2021 को शुरू हुए कोविड टीकाकरण के चार महीने के बाद अभी सिर्फ 18 करोड़ लोगों को ही टीके की पहली या दूसरी खुराक लगाई जा सकी है। टीकाकरण अभियान गति पाने को जूझ रहा है। हालांकि देश के पास क्षमता और जरूरत प्रतिदिन 80 लाख से एक करोड़ टीके लगाने की है लेकिन एक दिन में सिर्फ 20 लाख टीके लग रहे हैं।
पिछले एक महीने में टीकाकरण की दर 40 लाख रोजाना से गिरकर 20 लाख हो गई है। एक मई से देश के 18 से 44 साल की आबादी के लिए भी टीकाकरण शुरू किया गया। इस आयुवर्ग की संख्या करीब 60 करोड़ है। हालांकि इस आयुवर्ग के लिए पूरे मई महीने के लिए सिर्फ दो करोड़ टीके ही उपलब्ध होंगे। नतीजतन लोग अपने टीकाकरण के लिए बुकिंग नहीं कर पा रहे हैं। लगभग सभी राज्यों में टीकाकरण की रफ्तार सुस्त हो गई है। 18-44 आयुवर्ग के लिए कई राज्यों ने या तो अभी अभियान शुरू ही नहीं किया है या फिर जिन्होंने शुरू किया, उन्हें कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। भारत के साथ ऐसी दिक्कत क्यों आई? हालांकि भारत सरकार (आइसीएमआर के माध्यम से) ने, जून, 2020 में ही, कुछ निजी वैक्सीन निर्माताओं के साथ टीके के निर्माण के लिए गठजोड़ किया, लेकिन लक्षित आबादी के टीकाकरण के लिए पर्याप्त वैक्सीन की आपूर्ति के लिए विस्तृत योजना नहीं तैयार की गई। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और यूरोपीय संघ जैसे देशों ने मई, जून 2020 में ही वैक्सीन निर्माताओं को अग्रिम रूप से ही वैक्सीन के आर्डर देने शुरू कर दिए थे। इन देशों ने ये कदम वैक्सीन के दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल में जाने से पहले ही उठा लिए गए थे। इसके विपरीत भारत ने कोविड-19 टीकाकरण अभियान से महज पांच दिन पहले पहली वैक्सीन आपूर्ति का आर्डर दिया। टीकाकरण अभियान सुस्त भी रहा और आम जनता के लिए खोलने में छह हफ्ते लगाये।
भारत की कोविड-19 टीकाकरण नीति जटिल और खंडों में होने के नाते आलोचना के घेरे में रही। पूरी दुनिया के अधिकांश देश अपने सभी नागरिकों को मुफ्त में वैक्सीन दे रहे हैं लेकिन यहां ऐसा नहीं है। वैक्सीन खरीद, कीमत और डिलीवरी को लेकर केंद्र और राज्य सरकार उलझ रहे हैं। 18-44 साल आयुवर्ग के लिए वैक्सीन की खरीद के लिए राज्यों की जिम्मेदारी तय कर दी गई है। राज्यों और केंद्र के लिए वैक्सीन की कीमत अलग-अलग निर्धारित हैं। राज्यों को टीका निर्माताओं से वैक्सीन हासिल करने के लिए निजी क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा करनी है। परंपरागत रूप से सरकारी टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए टीके की खरीद केंद्र सरकार किया करती थी। राज्य सरकारों के पास वैक्सीन खरीदने और वैक्सीन निर्माताओं से मोल भाव करने का अनुभव ही नहीं है। फिर, टीका निर्माताओं के पास भी अभी वैक्सीन नहीं है लिहाजा इस आयुवर्ग के लिए ज्यादातर राज्यों के पास वैक्सीन की किल्लत है। इस समस्या के समाधान के लिए कई राज्यों ने ग्लोबल टेंडर भी जारी किए हैं।
कोविड-19 महामारी के खिलाफ भारत का अहम कदम यही होना चाहिए कि देश की ज्यादा से ज्यादा आबादी को टीके लग जाएं। मौजूदा चुनौतियों के समाधान के लिए, कुछ दिन पहले ही सरकार ने, कोविशील्ड की दो खुराकों के बीच का अंतर छह-आठ सप्ताह से बढ़ाकर 12-16 सप्ताह कर दिया। इससे दूसरी खुराक के लिए दबाव कम होगा और उनका इस्तेमाल लोगों को पहली खुराक देने में किया जा सकेगा। लेकिन यह अस्थायी समाधान है। अनुमान है कि दिसंबर 2021 तक देश के पास 216 करोड़ खुराक वैक्सीन की होगी। लेकिन वास्तविक आपूर्ति हमेशा अनुमानित आपूर्ति से कम होती है। इसलिए आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक उपाय भी तैयार रखने होंगे। जब तक आपूर्ति का मामला सुलझे, तब तक हमें उपलब्ध आपूर्ति का समानुपातिक रूप से इस्तेमाल भी करना होगा।
[जन नीति और स्वास्थ्य तंत्र विशेषज्ञ]