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मोबाइल टावरों में सौर ऊर्जा के प्रयोग से रोशन हो सकते हैं हजारों गांव

नक्सल प्रभावित राज्यों में सौर ऊर्जा से 2200 मोबाइल टावर चल रहे हैं।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Sun, 21 Jan 2018 09:08 PM (IST)Updated: Mon, 22 Jan 2018 12:44 PM (IST)
मोबाइल टावरों में सौर ऊर्जा के प्रयोग से रोशन हो सकते हैं हजारों गांव
मोबाइल टावरों में सौर ऊर्जा के प्रयोग से रोशन हो सकते हैं हजारों गांव
style="text-align: justify;">जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश के लाखों मोबाइल टावरों को सौर ऊर्जा से संचालित कर न केवल पर्यावरण को सुधारा जा सकता है, बल्कि ऊर्जा खर्च में भारी कमी के साथ-साथ हजारों गांवों को बिजली पहंुचाई जा सकती है।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सौर ऊर्जा चालित टावर
देश में इस समय 7.36 लाख से ज्यादा मोबाइल अथवा टेलीकॉम टावर हैं। इनमें 6.86 लाख टावर बिजली अथवा डीजल से चलते हैं। इनमें से केवल 50 हजार टावर स्वच्छ ऊर्जा से चलते हैं। लेकिन इन हरित टावरों में भी मात्र 2500 टावरों में ही सौर ऊर्जा का प्रयोग हो रहा है। बाकी में अन्य स्वच्छ ईधनों का प्रयोग होता है। सौर ऊर्जा चालित ज्यादातर टावर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हैं।
टेलीकॉम टावरों में सौर ऊर्जा के इस्तेमाल की स्कीम को सरकार ने सितंबर, 2014 में हरी झंडी दी थी। इसके तहत झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तर प्रदेश तथा आंध्र प्रदेश समेत दस नक्सल प्रभावित राज्यों में अब तक लगभग 2200 सौर ऊर्जा संचालित टेलीकॉम टावर स्थापित किए जा चुके हैं। अगले साल इस तरह के 10 हजार सौर ऊर्जा चालित टावर और लगाने का सरकार का इरादा है।
झारखंड के नक्सल प्रभावित इलाकों में सौर ऊर्जा संचालित मोबाइल टावरों से सुरक्षा बलों को नक्सलियों के खिलाफ सूचनाएं जुटाने में बड़ी मदद मिल रही है। पहले नक्सली अक्सर टावर की बिजली सप्लाई काट देते थे, जिससे संचार भंग हो जाता था। टावर परिसरों में सौर पैनल लगाए जाने के बाद ये समस्या खत्म हो गई है। क्योंकि इनकी बैट्री चार्ज होने के बाद एक सप्ताह तक चलती है।
नीतिगत अस्पष्टता और प्रोत्साहन के अभाव में नहीं मिल रहा है बढ़ावा
मगर अब तक स्थापित सभी सौर ऊर्जा टावर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बीएसएनएल द्वारा लगाए गए हैं। निजी क्षेत्र की टेलीकॉम कंपनियों ने इसमें विशेष रुचि नहीं दिखाई है। इसका कारण नीतिगत अस्पष्टता के अलावा प्रोत्साहनों का अभाव होना है।
सौर ऊर्जा टावर लगाने में बीएसएनएल की सहयोगी कंपनी वीएनएल के वाइस प्रेसीडेंट, कारपोरेट अफेयर्स व कम्यूनिकेशंस, मनोज भान के मुताबिक एक टेलीकॉम टावर साल में औसतन 7.5 लाख रुपये की बिजली व डीजल की खपत करता है। यदि सभी टावरों के साथ सौर ऊर्जा पैनल लगा दिए जाएं न केवल खर्च में कमी आएगी, बल्कि फालतू बिजली भी पैदा होगी, जिसका उपयोग हजारों गांवों को प्रकाशित करने में किया जा सकता है। अभी तक जिन 2200 टावरों में सौर पैनल लगाए गए हैं उनसे सालाना 1.40 करोड़ यूनिट बिजली पैदा हो रही है। इसमें से केवल 77 लाख यूनिट का ही उपयोग टावरों में होता है। बाकी 63 लाख यूनिट बिजली बच जाती है। इससे 466 गांवों को पूरे साल बिजली पहुंचाई जा सकती है।
भान के अनुसार सरकार की मंशा मार्च, 2018 तक देश के एक चौथाई टेलीकॉम टावरों को हरित ऊर्जा से संचालित करने की थी। लेकिन विभिन्न कारणों से ऐसा संभव नहीं हो सका है। नतीजतन अभी भी अधिकांश पुराने टावर बिजली व डीजल से चल रहे हैं। इसलिए सरकार को स्पष्ट दिशानिर्देश जारी कर टेलीकॉम उद्योग को सौर ऊर्जा के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
 

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