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अमेरिका में भारतीयों ने बचाकर रखी है अपनी संस्कृति और हिंदी

संयुक्त राज्य अमेरिका में वृहत भारतवंशी समुदाय ने अपनी संस्कृति और अस्मिता को तो अक्षुण्ण रखा ही है, भाषा को भी यथोचित मान दिया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 17 Sep 2018 10:57 AM (IST)Updated: Mon, 17 Sep 2018 10:57 AM (IST)
अमेरिका में भारतीयों ने बचाकर रखी है अपनी संस्कृति और हिंदी
अमेरिका में भारतीयों ने बचाकर रखी है अपनी संस्कृति और हिंदी

[डॉ. सुरेश अवस्थी]। संयुक्त राज्य अमेरिका में वृहत भारतवंशी समुदाय ने अपनी संस्कृति और अस्मिता को तो अक्षुण्ण रखा ही है, भाषा को भी यथोचित मान दिया है। वहां हिंदी के शिक्षण-प्रशिक्षण के अतिरिक्त सृजनात्मक आयोजन भी उत्साहपूर्वक किए जा रहे हैं.....

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भाषा आंगन से विदा हो जाती है, तो न केवल उस भाषा की अकाल मृत्यु होती है बल्कि उस भाषा-भाषी समुदाय की संस्कृति और संस्कारों का क्षरण होने लगता है। दुनिया के शक्ति केंद्र अमेरिका में बसे भारतवंशी इस तथ्य को भलीभांति जानते हैं, इसीलिए वे नई पीढ़ी (अमेरिका में जन्मी) को मात्र भाषा, खासतौर से हिंदी सिखाने के लिए अथक तपस्या कर रहे हैं। जिन परिवारों में ये तपस्या फलीभूत हो रही है, वहां भारतीय संस्कृति और सनातन संस्कार स्वाध्याय के रूप में सहज ही संप्रेषित होते दिखते हैं।

अमेरिका की साहित्यिक यात्रा में 14 शहरों में जाना हुआ जहां हिंदीभाषी तमाम परिवारों, कई मंदिरों में जाने का अवसर तो मिला ही, कवि सम्मेलनों के साथी रचनाकारों, कवयित्री डॉ. कीर्ति काले, कुछ शहरों में शशांक प्रभाकर व अभिनव शुक्ल के साथ काव्यपाठ के बाद बड़ी संख्या में प्रवासियों से वार्ता भी हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विदेश की धरती पर हिंदी में भाषण देने से राजभाषा को लेकर प्रवासियों का आत्मविश्वास बढ़ा है। विश्व योग दिवस मनाने से योग की लोकप्रियता बढ़ने, पिछले एक दशक में वहां आयुर्वेद स्टोर खुलने से हिंदी मजबूत हो रही है।

मंदिरों में हिंदी की कक्षाएं

प्रवासी भारतीयों ने लगभग सभी बड़े शहरों में हिंदू मंदिर बनाए हैं। ये मंदिर धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, संस्कार और भाषा संरक्षण का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। वहां हिंदी शिक्षण की दो व्यवस्थाएं सक्रिय हैं। एक है अनौपचारिक शिक्षा, जो प्रवासियों ने अपने जनबल व धनबल पर तैयार की है। दूसरी औपचारिक शिक्षा, जिसे सरकार चलाती है। औपचारिक केंद्रों की संख्या बहुत कम है जबकि अनौपचारिक केंद्र न्यू यार्क, न्यू जर्सी, डलास जैसे तमाम बड़े शहरों में चल रहे हैं। मंदिरों व घरों में बच्चों को हिंदी बोलना व लिखना सिखाया जाता है। पढ़ाने व सिखाने के लिए रुचिपूर्ण पुस्तकें, खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण तैयार किए गए हैं। यहां बच्चे क से कबूतर नहीं, क से कंप्यूटर सीखते हैं। हिंदी यूएसए, आईएचए, अखिल विश्व हिंदी समिति जैसी संस्थाएं हिंदी साहित्य व भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए खूब काम कर रही हैं। ये संस्थाएं हिंदी महोत्सव मनाती हैं।

अमेरिका में विगत डेढ़ दशक से हिंदी कवि सम्मेलन तेजी से लोकप्रिय हुआ है। कवि सम्मेलनों में लोगों का समूह में हिंदी कविता सुनने आना भी हिंदी के पांव मजबूत कर रहा है। सेरिटोस शहर के समारोह में सुनील गर्ग ने जिस अंदाज में हिंदी में प्रारंभिक संचालन किया, वो चमत्कृत करने वाला था। श्रोताओं में युवाओं की उपस्थिति और उनका हिंदी कविता के प्रति उल्लासपूर्ण भाव प्रदर्शन साबित कर रहा था कि हिंदी की जड़ें गहरी हैं। हास्टफोर्ड में सुरेश शर्मा के निर्देशन में हुए वरिष्ठ नागरिकों के समारोह में शुरुआती दौर में हिंदी फिल्मों के गानों की प्रस्तुति और बाद में आमंत्रित कवियों की कविताओं पर प्रवासियों ने जिस तरह से अप्रतिम आनंद का उत्सव मनाया वो यादगार बन गया।

शक्तिशाली बन रहा भारत

हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए अमेरिका में राष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहे भारतवंशी बताते हैं कि चूंकि भारत विश्व में शक्तिशाली देश के रूप में उभर रहा है, इसलिए भारत में सर्वाधिक प्रचलित भाषा हिंदी का सम्मान बढ़ रहा है। अमेरिकन काउंसिल फॉर टीचिंग फॉरेन लैंग्वेज के मानकों के मुताबिक मान्य शिक्षा केंद्र से हाईस्कूल स्तर तक की हिंदी सीखने का प्रमाणपत्र होने पर विश्वविद्यालय स्तर पर हिंदी नहीं लेनी पड़ती, जिससे हजारों डॉलर की बचत होती है। वह परीक्षा लेकर मान्य सर्टिफिकेट देने को अधिकृत है। अमेरिका सरकार ने हिंदी शिक्षण के लिए 7 मिलियन डॉलर के बजट का प्रावधान किया है। विश्वविद्यालयों में हिंदी लोकप्रिय हो रही है।

संस्थाएं निभा रहीं दायित्व

देशभर में कई संस्थाएं हिंदी सीखने का गुरुतर दायित्व निभा रही हैं। भाषाप्रेमी देवेन्द्र सिंह द्वारा संस्थापित संस्था हिंदी यूएसए वर्तमान में 23 पाठशालाओं का संचालन कर रही है जिनमें 2500 छात्र हैं तथा 425 स्वयंसेवक संस्था के लिए अनवरत कार्य कर रहे हैं। न्यू जर्सी के डॉ. नन्दलाल सिंह की संस्था भी कई ऐसे केंद्र संचालित कर रही है। देवेन्द्र सिंह के अमेरिका में हिंदी प्रचार एवं प्रसार के कार्यों हेतु केंद्रीय हिंदी संस्थान ने अखिल भारतीय हिंदी सेवी सम्मान योजना 2016 के लिए हिंदी जगत में उल्लेखनीय कार्य करने वालों में उन्हें चयनित किया है। सम्मान में ‘पद्मभूषण डॉ. माटूरी सत्यनारायण’ पुरस्कार 5 लाख रुपए की राशि के साथ दिया जाता है।

भारतीयता के दर्शन

ब्रेक्सर्स फील्ड में उस समय भारतीयता के दर्शन हुए जब वहां के लोकप्रिय चिकित्सक डॉ. अरुण गुप्त और उनकी पत्नी रेखा ने अपने आवास के प्रवेश द्वार पर आरती करके मस्तक पर रोली- चावल का टीका लगाकर स्वागत किया। उनके चिकित्सक पुत्र व दूसरे युवा ने चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्रदान करने का आग्रह किया और शुद्ध हिंदी में बातें की। भोजन से पूर्व मंत्र का उच्चारण संस्कृति का नायाब उदाहरण था। रेखा ने बताया कि उन्होंने कुछ सालों तक सारे कार्य पीछे करके बच्चों को हिंदी बोलना, पढ़ना व लिखना सिखाया। उनकी तपस्या सफल हुई। लॉस एंजिलस के हिंदू मंदिर के प्रभारी राम सिंहानिया कहते हैं कि भारत में बसे दादा-दादी से संवाद के लिए भी नई पीढ़ी को हिंदी सिखाना जरूरी है।

हिंदी यूएसए संस्था 17 सालों से कार्य कर रही है। इसके द्वारा अमेरिका के 3 राज्यों में 17 हिंदी पाठशालाएं संचालित हो रही है जो 4000 से अधिक विद्यार्थियों को 9 स्तरों पर हिंदी का प्रशिक्षण दे रहीं हैं। 3 नई पाठशालाएं शुरू होने को हैं। संस्था के स्वयंसेवक घरों में भी जाकर हिंदी सिखाते हैं।’

राज मित्तल, संपादक सदस्य, कर्मभूमि

(हिंदी पत्रिका) हिंदी यूएसए अमेरिका सरकार प्राय: राष्ट्रीय सुरक्षा, एयरपोर्ट, सेलटैक्स, आयकर जैसे विभागों में भारतीयों को नौकरी नहीं देती परंतु भारतीयों की बढ़ती संख्या और इन विभागों से जुड़े कामों को देखते हुए हिंदी जानने वाले अपने नागरिकों को नौकरी में प्राथमिकता दे रही है। इससे हिंदी का दबदबा

बढ़ रहा है।’

अरुण प्रकाश, ह्यूस्टन

अमेरिका एक पूंजीवादी देश है। यहां भारतीयों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और भारतीय आर्थिक रूप से सर्वाधिक मजबूत हैं। इसलिए सरकार भी हिंदी को आगे लाने का प्रयास कर रही है। जरूरत प्रवासियों की नई पीढ़ी को आगे लेकर हिंदी से जोड़ने और जागरूक करने की है।’

अनूप भार्गव, न्यू जर्सी

अमेरिका में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आर्य समाज भी बढ़ चढ़ कर कार्य कर रहा है। आध्यात्मिक व साहित्यिक अनुष्ठानों में हिंदी प्रसार के साथ आर्य समाज मंदिरों में प्रतिनिधि नई पीढ़ी को हिंदी सिखाते हैं।’

इंद्रजीत शर्मा, न्यू यार्क (आर्य समाज के प्रतिनिधि)

संस्कृति और संस्कारों को सुरक्षित रखने के लिए यहां तमाम शहरों में स्थापित हिंदू मंदिर धर्म अध्यात्म के साथ हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं को प्रचारित प्रसारित करने और बच्चों को हिंदी सिखाने के केंद्र होने की अहम भूमिका निभा रहे हैं।’

चौधरी प्रताप सिंह, अध्यक्ष, हिंदू मंदिर, वाशिंगटन डीसी 


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