चीन पर बढ़ रहा वैश्विक दबाव, अमेरिका, जापान व ऑस्ट्रेलिया ने ड्रैगन को दी चेतावनी
चीन अब बेनकाब हो गया है। अपने तमाम पड़ोसी देशों के लिए किसी न किसी वजह से परेशानी पैदा कर रहे चीन को लेकर विश्व बिरादरी का सब्र जवाब देने लगा है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। चीन अब बेनकाब हो गया है। अपने तमाम पड़ोसी देशों के लिए किसी न किसी वजह से परेशानी पैदा कर रहे चीन को लेकर विश्व बिरादरी का सब्र जवाब देने लगा है। बुधवार को अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्रालयों की तरफ से जारी एक संयुक्त बयान में हिंद महासागर क्षेत्र में पैदा हो रहे खतरों को देखते हुए साझा रणनीति बनाने का संकेत दिया गया है। एक दिन पहले भारत और अमेरिका के विदेश मंत्रालयों की तरफ से जारी बयान में भी चीन को लेकर परोक्ष तौर पर रणनीतिक संकेत दिया गया था। बयान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर रणनीति का संकेत भी था।
ईस्ट चाइना सी के बारे में भी अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के संयुक्त बयान में कहा गया है कि अगर इस क्षेत्र में किसी देश की तरफ से बलपूर्वक यथास्थिति को बदलने की कोशिश की जाती है तो उसका पूरा विरोध किया जाएगा। कहने की जरूरत नहीं कि यहां भी इशारा किस तरफ है। साउथ चाइना सी के बारे में भी इसी मंशा को दोहराते हुए उक्त तीनों देशों ने कहा है कि वे इस समूचे क्षेत्र को सभी के लिए एक समान अवसर वाला बनाने को लेकर कृतसंकल्पित हैं।
यही नहीं चीन की तरफ से इस क्षेत्र में जिस तरह से आक्रामक तरीके से नौवहन किया जा रहा है और दूसरे देशों की सीमा में प्रवेश किया जा रहा है, उसे समुद्री मिलिशिया की संज्ञा देते हुए इन देशों ने कहा है कि इस क्षेत्र का बड़े पैमाने पर सैन्यीकरण बंद किया जाना चाहिए। तीनों देशों ने हांगकांग में नया कानून लागू करने के चीन के फैसले का भी कड़ा विरोध किया है।
हाल के वर्षों में भारत के साथ अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का एक साझा वैश्विक मंच तैयार करने की कोशिश चल रही है, जिसे क्वाड की संज्ञा दी गई है। पिछले तीन वर्षों में इन चारों देशों के अधिकारियों की कई स्तरों पर बैठक भी हुई है। जिस तरह से अमेरिका, भारत व जापान के बीच साझा सैन्य अभ्यास होता है, उसी तरह से अमेरिका, जापान व ऑस्ट्रेलिया के बीच साझा सैन्य कार्यक्रम चलता है। चारों देशों की सेनाओं के बीच सैन्य अभ्यास शुरू करने को लेकर भी बातचीत चल रही है। अगर पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीन की घुसपैठ की बात करें तो जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका अपने-अपने स्तर पर इसका विरोध कर चुके हैं।