US Election 2020: अफगानिस्तान में भारत के हितों की सुरक्षित कर सकता है बाइडेन की जीत
2008 में सत्ता में आने के बाद ओबामा ने सिर्फ तालिबान से किसी तरह की बातचीत से इनकार कर दिया बल्कि 30 हजार अतिरिक्त फौज भेजकर पाकिस्तान के भीतर भी तालिबानी ठिकानों पर ड्रोन हमले शुरू कर दिये। उस समय बाइडन अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। बाइडेन के हाथ अमेरिका की कमान गई तो अफगानिस्तान में भारतीय हित सुरक्षित हो सकते हैं। साथ ही ईरान के साथ अमेरिकी संबंधों के सुधरने से भी चाबहार बंदरगाह के रास्ते अफगानिस्तान से लेकर मध्य एशिया तक भारत की पहुंच आसान होगी। ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण चाबहार बंदरगाह का काम अटक गया था। दरअसल, अमेरिकी फौजों की वापसी की जल्दबाजी में ट्रंप ने फरवरी में दोहा में तालिबान के साथ समझौता कर 2021 में अप्रैल-मई तक इसे पूरा करने का ऐलान भी कर दिया।
तालिबान के साथ शांति वार्ता टूटने के आसार
अफगानिस्तान की आपत्तियों के बावजूद भी अमेरिका के दबाव में उसे तालिबान से बातचीत शुरू करनी पड़ी थी। लेकिन समस्या यह थी कि समझौता पूरी तरह तालिबान की शर्तों पर हो रहा था और उसने बातचीत के बीच भी आतंकी हमलों को जारी रखा। दो दिन पहले काबुल विश्वविद्यालय में हुए हमले से भले ही तालिबान ने इनकार किया हो, लेकिन अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह ने साफ कर दिया कि हमले के पीछे तालिबान का हाथ होने के ठोस सबूत हैं। इसके अलावा शांति वार्ता में तालिबान ने अफगानिस्तान में महिलाओं की आजादी और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों को लेकर कोई आश्वासन नहीं दिया था। अपनी शर्तों पर हो रहे समझौते को लेकर तालिबान पूरी तरह आश्वस्त था।
बाइडन की जीत से अफगानिस्तान में भारत के लिए राहत
10 अक्टूबर को अमेरिकी न्यूज नेटवर्क को दिये इंटरव्यू में एक तालिबानी कमांडर ने खुलेआम ट्रंप की जीत की कामना की थी। भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह थी कि एक बार अमेरिकी फौज के वापस जाते ही तालिबान फिर से काबुल पर काबिज हो सकता है और पाकिस्तान के इशारे पर अफगानिस्तान को भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र नहीं बना सकता है। कंधार विमान अपहरण के समय मौजूदा तालिबानी सरकार पूरी तरह आतंकियों के साथ थी और मजबूरी में भारत को जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर समेत तीन आतंकियों को छोड़ना पड़ा था। जाहिर है बाइडन की जीत से अफगानिस्तान में भारत के लिए राहत की बात होगी।
ओबामा की नीतियों को आगे बढ़ाएंगे बाइडेन
दरअसल, 2001 ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद जार्ज बुश ने अफगानिस्तान में हमला कर तालिबानी सरकार को उखाड़ फेंका था। 2008 में सत्ता में आने के बाद ओबामा ने सिर्फ तालिबान से किसी तरह की बातचीत से इनकार कर दिया, बल्कि 30 हजार अतिरिक्त फौज भेजकर पाकिस्तान के भीतर भी तालिबानी ठिकानों पर ड्रोन हमले शुरू कर दिये। उस समय बाइडन अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे। माना जा रहा है कि बाइडन अफगानिस्तान में कमोवेश ओबामा की नीतियों को आगे बढ़ाएंगे।
ईरान पर प्रतिबंध हटने से चाबहार बंदरगाह की अड़चने भी होंगी दूर
ओबामा काल में परमाणु समझौता कर ईरान और अमेरिकी के बीच की दूरी को कम करने के प्रयास को ट्रंप ने पूरी तरह पलट दिया था। इरान पर प्रतिबंधों के कारण इरान से न सिर्फ तेल की आपूर्ति पर असर पड़ा, बल्कि चाबहार बंदरगाह का काम भी लटक गया था। भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह बनाकर अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधी पहुंच बनाने की कोशिश में जुटा है। पिछले महीने टू प्लस टू वार्ता के दौरान अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह को प्रतिबंधों से छूट देने की बात मान ली थी। लेकिन अब बाइडन के आने के बाद बंदरगाह के रास्ते की सारी अड़चने दूर होने की उम्मीद है।