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Apollo 11: जानें कहां से उठे नासा के मून मिशन पर सवाल, कौन-कौन हैं इसमें शामिल

पूरी दुनिया अपोलो 11 के चांद पर उतरने की खुशी मना रहा है। लेकिन इस एतिहासिक घटना के 50 वर्ष पूरे होने के बाद भी कुछ सवाल नासा का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 20 Jul 2019 10:44 AM (IST)Updated: Sat, 20 Jul 2019 01:34 PM (IST)
Apollo 11: जानें कहां से उठे नासा के मून मिशन पर सवाल, कौन-कौन हैं इसमें शामिल
Apollo 11: जानें कहां से उठे नासा के मून मिशन पर सवाल, कौन-कौन हैं इसमें शामिल

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। 20 जुलाई 1969 का दिन पूरी दुनिया में खासा अहमियत रखता है। इसी दिन अमेरिका के एयरोनॉटिकल इंजीनियर और सेना के पायलट नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर कदम रखा था। उनके साथ चांद की धरती पर उतरने वालों में बज एल्ड्रिन भी थे। अपोलो 11 के साथ चांद की ओर रवाना होने वालों में इन दोनों के अलावा माइकल कॉलिन्स भी थे, जो चांद की सतह पर न उतरकर इसकी परिक्रमा कर रहे थे। अमेरिका आज तक इस मिशन को लेकर दुनियाभर से वाहवाही बटोरता आ रहा है। इस मिशन को अंतरिक्ष के रहस्‍यों को खोजने में सबसे बड़ा पड़ाव भी माना गया है। लेकिन, दूसरी तरफ इस मिशन को सवाल भी उठते रहे हैं। इन सवालों में इस मिशन को झूठा साबित करने की कोशिश भी की गई है। कहा जाता रहा है कि यह मिशन केवल रूस को नीचा दिखाने के मकसद से कहीं अंजान जगह पर फिल्‍माया गया था।इसको लेकर जो वजह बताई जाती रही हैं उसमें शीत युद्ध, वियतनाम युद्ध का भी जिक्र है, जिनमें अमेरिका को कुछ हासिल नहीं हुआ था।   

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किसने की विवाद की शुरुआत 
नासा के मिशन पर सवाल उठाने वालों में अमेरिकी भी पीछे नहीं हैं। अमेरिका के पूर्व नेवी अधिकारी बिल केसिंग ((Bill Kaysing-William Charles Kaysing) की 1976 में अपनी किताब We Never Went to the Moon: America's Thirty Billion Dollar Swindle में इस पर सवाल खड़े किए हैं। केसिंग ने 1940 में मिडशिपमैन के तौर पर यूएस नेवी ज्‍वाइन की थी। इसके बाद उन्‍हें केलिफोर्निया के ऑफिसर ट्रेनिंग स्‍कूल में भेजा गया। 1949 में उन्‍होंने ग्रेजुएशन पूरा किया। इसके बाद सितंबर 1958 में वह सर्विस एनालिस्‍ट बने और सर्विस इंजीनियर के तौर पर काम किया। 1962 में उन्‍होंने पब्लिकेशन एलालिस्‍ट रहे। 1956-1963 तक वह रॉकेटडाइन टेक्‍नीकल पब्लिकेशन में प्रमुख रहे। बाद में उन्‍होंने निजी कारणों से पद से इस्‍तीफा दे दिया था। Rocketdyne कंपनी ने ही Saturn V रॉकेट में लगने वाले एफ-1 इंजन को डिजाइन किया था और तैयार किया था। केसिंग ने प्रोपल्‍शन फील्‍ड लैबोरट्री में भी अपनी सेवाएं दी थीं। अपनी किताब में उन्‍होंने लिखा था कि चांद पर सुरक्षित उतरने की हकीकत महज 0.0017 फीसद ही है। इनके अलावा 1980 में फ्लैट अर्थ सोसायटी ने भी नासा के इस मिशन पर सवाल उठाए हैं।

सवाल खड़ा करने वालों में ये भी शामिल 
एक ब्रिटिश पब्लिशर मारकॉस एलन का कहना था कि अमेरिका के यान का चांद पर उतरना इस बात का प्रमाण नहीं है कि वहां पर मानव उतरा भी था। चांद तक पहुंचना कोई मुश्किल काम नहीं था। रूस 1959 में धरती के पार चांद तक झांक चुका है। उनका ये भी कहना था कि नासा ने चांद पर रोबोट मिशन भेजा होगा इसकी वजह चांद पर होने वाला रेडिएशन लेवल का बढ़ा होना हो सकता है। उनका कहना है कि अपोला-14 और अपोलो 15 मिशन सही में भेजा गया था। 1982 में एक किताब Moongate: Suppressed Findings of the U.S. Space Program में भी इस मिशन पर सवाल उठाए गए। यह किताब न्‍यूक्लियर इंजीनियर ने लिखी थी। इनके अलावा अमेरिकी पत्रकार जेम्‍स एम कोलियर और मिल्‍टन विलियम कूपर समेत जेम्‍स फेजर जो एक अमेरिका में फिलोस्‍फी के प्रोफेसर थे उन्‍होंने सभी मून मिशन को झूठा बताया था।

अमेरिका को कटघरे में इन्‍होंने भी किया खड़ा 
इनके अलावा Quantech Image Processing के लिए काम करने वाले डेविड ग्रोव्‍स ने एल्ड्रिन द्वारा खींची गई फोटो की जांच करने के बाद इस मिशन पर सवाल उठाए थे। Antiapollon: Moonlight scam US किताब को लिखने वाले रूस के विपक्षी नेता यूरी आई मुखिन ने नासा के अपोलो 11 मिशन पर को कटघरे में खड़ा करते हुए इस पर सवाल उठाए हैं। इसमें कहा गया है कि इस मिशन में अमेरिका ने टेक्‍स चुकाने वालों के पैसों को बर्बाद किया था। नासा के इस मिशन पर सवाला उठाने वालों की लिस्‍ट यहीं पर खत्‍म नहीं हो जाती है बल्कि इसमें और कई नाम शामिल हैं। इसमें रूसी अमेरिकी, जापानी और जर्मनी के लोग भी लोग शामिल हैं।

मिशन को लेकर क्‍या हैं दावे और सवाल
इस मिशन के बाद आलोचक यह कहते आए हैं कि अमेरिका ने यह सब एक स्‍टूडियो में किया था। सवाल ये भी उठे कि जिस तस्‍वीर में अमेरिका का झंडा चांद की सतह पर लगाया गया दिखाया है वह वहां पर लहरा रहा है, जबकि वहां पर कोई वायुमंडल नहीं है। ऐसे में इसका लहराना नामुमकिन है। इसके अलावा आर्मस्ट्रांग के पैरो के निशान भी सवालों के घेरे में हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चांद पर ऐसा होना नामुमकिन है। कहा ये भी जाता रहा है कि जिस यान से आर्मस्‍ट्रांग चांद पर गए थे उसका वजन करीब 4 टन था, लेकिन उसने भी अपने निशान वहां पर नहीं छोड़े। ऐसे में आर्मस्‍ट्रांग के पांव के निशान अपने आप में सवाल खड़े करता है।

सवालों के घेरे में मिशन से जुड़ी तस्‍वीरें 
इस मिशन से जुड़ी तस्‍वीरों में चांद से तारों का न दिखाई देना भी सवाल खडे कर रहा है। वहीं सबसे ज्यादा हैरत में डालने वाली बात ये है कि इस ऐतिहासिक मिशन की मशीन के ब्लूप्रिंट्स आज तक किसी ने नहीं देखे। इस सवाल पर अमेरिका का कहना है कि वह गायब हो चुके हैं। इस मिशन से जुड़ी एक और तस्‍वीरों पर भी सवाल उठ रहे हैं। यह तस्‍वीर आर्मस्‍ट्रांग की है। लेकिन इसमें तस्‍वीर खींचने वाला इंसान दिखाई नहीं दे रहा है। जब उनके हेलमेट पर लगे शीशे में दूसरा अंतरिक्ष यात्री काफी दूर दिखाई दे रहा है। नासा का कहना है कि यदि तस्‍वीर दूसरे अंतरिक्ष यात्री के हेलमेट में लगे कैमरे से ली गई थी। वहीं एक सवाल ये भी है सूर्य से निकलने वाला रेडिएशन किसी भी इंसान को मार सकती है, फिर नासा इन सभी को सुरक्षित कैसे लेकर आया। 

ऐसे होगी अमेरिकी मिशन की जांच 
1969 में जब अमेरिका ने चांद पर मिशन भेजा था उसकी फुटेज से काफी कुछ हासिल हो सकता है। इसके अलावा आर्मस्‍ट्रांग के चांद पर मौजूद पांव के निशान इस मिशन की सारी कहानी को बयां करने के लिए काफी हैं। आपको बता दें कि चांद का अपना कोई वायुमंडल नहीं है। वहां पर न हवा है और न पानी। इसलिए यदि अमेरिका का मिशन सही होगा तो वहां पर वर्षों के बाद भी यह नील आर्मस्‍ट्रांग के पांव के निशान पहले की ही भांति मौजूद रहने चाहिए। इसके अलावा अमेरिका का झंडा जो वहां पर कोई वातावरण न होने के बावजूद लहरा रहा था, भी होना चाहिए। आपको यहां पर ये भी बता दें कि इस मिशन के बाद कहा गया था कि आर्मस्‍ट्रांग अपने साथ वहां से चांद की धूल भी लेकर आए थे। इस नमूने का असली से मिलान करने पर भी कई राज खोले जा सकते हैं।

झूठी साबित हो गई अमेरिकी थ्‍योरी तो क्‍या होगा 
रूस की तरफ से पिछले वर्ष कहा गया था कि वह अमेरिका के मून मिशन का पता लगाने के लिए चांद पर अपना मिशन भेजेगा। रूस की रोस्कोसमोस अंतरिक्ष एजेंसी के प्रमुख दिमित्री रोगोजिन के मुताबिक उनका एक मिशन भेजेगा। रूस इन सवालों के जवाब तलाशने को लेकर उत्‍साहित है। इस मिशन का काम यह पता लगाना है कि क्‍या वास्‍तव में अपोलो 11 चांद की सतह पर उतरा था या‍ फिर यह केवल एक नाटक था जो अमेरिका ने रूस से बदला लेने और पूरी दुनिया में अपना वर्चस्‍व कायम करने के लिए रचा था। इसको लेकर दिमित्री रोगोजिन ने कुछ समय पहले एक ट्वीट भी किया था। दरअसल अमेरिका का यह मिशन शुरू से ही रहस्‍य और सवालों में घेरे में रहा है। इस मिशन को लेकर लोगों की भी अलग-अलग राय है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि यदि रूस ने इस मिशन को गलत या झूठा साबित कर दिया तो क्‍या होगा। ऐसे में अमेरिका की साख को बट्टा लगने से लेकर चांद को लेकर कई तरह की थ्‍योरी भी झूठी साबित हो सकती हैं।

अपने स्‍पेस मिशन में रूस की मदद लेता है अमेरिका  
आपको यहां पर ये भी बता दें कि रूस और अमेरिका के बीच वर्षों से एक प्रतियोगिता चली आ रही है। यह अपने को एक कदम आगे दिखाने की प्रतियोगिता है। जहां तक अंतरिक्ष कार्यक्रम की बात है तो इसमें रूस का वर्चस्‍व पहले भी था और आज भी है। रूस ने ही पहली बार यूरी गागरिन के रूप में किसी मानव को धरती के पार अंतरिक्ष में भेजा था। उसने ही पहली बार धरती से बाहर जानवरों को भेजा था। अंतरिक्ष मिशन में उसका कोई सानी पहले भी नहीं था और आज भी नहीं है। इस बात का एक सुबूत ये भी है कि वर्तमान में अमेरिका अपने अंतरिक्ष मिशन के लिए रूस की मदद ले रहा है।

अंतरिक्ष में रूस ने अमेरिका को पीछे छोड़ा 
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब सोवियत संघ अंतरिक्ष में जाने की तैयारी करने लगा तो अमेरिका आसमान की बुलंदियों में उससे पिछड़ने लगा था। ऐसे में राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने 1961 में तय किया कि अमेरिकी विज्ञानी चांद पर पहुंचेंगे। लेकिन, एक के बाद एक मिशन में अमेरिका उसके कहीं पीछे रह गया। जहां तक रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रम की बात है तो उसके मिशन इस क्षेत्र में मील का पत्‍थर साबित हुए। अंतरिक्ष में जाने वाले पहले पुरुष से लेकर पहली महिला तक रूस की ही थी। सोवियत संघ ने 1970 के दशक के मध्य में अपने चंद्र कार्यक्रम को छोड़ दिया था क्योंकि चांद पर भेजे जाने वाले चार प्रयोगात्मक रॉकेटों में विस्फोट हो गया था।

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