जमीं की गोद में सदा के लिए सो गए उर्दू के साहित्यकार पद्मश्री काज़ी अब्दुल सत्तार
उर्दू के साहित्यकार पद्मश्री काज़ी अब्दुल सत्तार (85) नहीं रहे। शाम चार बजे उनके शव को एएमयू कब्रिस्तान में सुपर्द-ए- खाक किया जाएगा।
अलीगढ़ (जेएनएन)। उर्दू के साहित्यकार पद्मश्री काज़ी अब्दुल सत्तार सोमवार को सदा के लिए जमीं की गोद में सो गए। मशहूर साहित्यकार को अलीगढ़ में एएमयू के कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। वे अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में उर्दू के लेक्चरार रहे और यहीं वो हेड ऑफ द डिपार्टमेंट होकर रिटायर हुए आठ फरवरी 1933 में जन्मे काजी अब्दुल सत्तार उर्दू के प्रख्यात उपन्यासकार और लघु कथा लेखक थे। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा ली थी।
उर्दू के प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री प्रोफेसर काजी अब्दुल सत्तार का रविवार रात उपचार के दौरान दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया था। वह 85 वर्ष के थे और पिछले डेढ़ महीने से अस्पताल में भर्ती थे।उनके तीन पुत्र व एक पुत्री हुईं, जिनमें एक बेटे की रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। एएमयू के उर्दू विभाग से सेवानिवृत्त हुए प्रोफेसर काजी अब्दुल सत्तार के निधन की खबर से साहित्यकारों में शोक की लहर दौड़ गई है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद में 1933 में उनका जन्म हुआ था। गजलकार अखलाक अहमद उर्फ शहरयार उनके शागिर्द थे।
अब्दुल सत्तार के प्रमुख उपन्यास
शाब गाजीदा, दारा शिकोह, सलाहुद्दीन अयूबी, खालिद इब्न-ए-वालीद, हजरत जान, ताजम सुल्तान, मज्जू भइया, पीतल का घंटा और गालिब सहित अनेक उपन्यास काफी प्रसिद्ध हुए। शिकस्त की आवाज उनकी पहली किताब थी।
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यह मिले सम्मान
1973: प्रथम गालिब पुरस्कार
1974 : पद्मश्री
1977 : मीर अवॉर्ड
1977: यूपी उर्दू अकादमी पुरस्कार
1987 : अल्मी पुरस्कार
1987: राष्ट्रीय पुरस्कार यूपी सरकार
1996: निशान-ए-सर सैयद पुरस्कार
1998: ज्ञानेंद्र पुरस्कार
2002 :बहादुर शाह जफर पुरस्कार
2005 : अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, दोहा (कतर)
2006 : राष्ट्रीय इकबाल पुरस्कार
2008 : आईएसटी विश्वविद्यालय उर्दू शिक्षक पुरस्कार
2011: यूपी हिंदी संस्थान का प्रथम पुरस्कार