दागी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध के हक में नहीं केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट किया रुख
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दागी या दोषी ठहराए जा चुके नेताओं के संसद या विधानसभा चुनाव लड़ने राजनीतिक पार्टी बनाने या किसी पार्टी का पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का विरोध किया है।
नई दिल्ली, आइएएनएस। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दागी या दोषी ठहराए जा चुके नेताओं के संसद या विधानसभा चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने या किसी पार्टी का पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का विरोध किया है। केंद्र का कहना है कि किसी अपराध में दोषी ठहराए जाने पर नौकरशाहों पर प्रतिबंध की तुलना सांसदों/विधायकों पर इसी तरह के प्रतिबंध से नहीं की जा सकती। इसकी वजह यह है कि सांसद/विधायक सेवा नियमों के नहीं बल्कि पद की शपथ के अधीन होते हैं।
कानून एवं न्याय मंत्रालय की ओर से दाखिल हलफनामे के मुताबिक, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के संबंध में कोई विशेष नियम नहीं हैं, यद्यपि तथ्य यह है कि जनप्रतिनिधि लोकसेवक हैं। निर्वाचित जनप्रतिनिधि सामान्यत: उस शपथ के अधीन होते हैं जो उन्होंने देश के और खासकर अपने संसदीय क्षेत्र के नागरिकों की सेवा के लिए ली होती है।
विभिन्न कानूनों के प्रावधानों के तहत दोषी पाए जाने पर नौकरशाहों को उनकी सेवा से जीवनभर के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाता है, लेकिन सांसदों/विधायकों को किसी अपराध में दोषी पाए जाने पर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में वर्णित अवधि के लिए ही अयोग्य ठहराया जाता है।
हलफनामे के मुताबिक, सांसदों/विधायकों का आचरण उनके चरित्र और विवेक पर निर्भर होता है, सामान्यत: उनसे देशहित में काम करने की अपेक्षा की जाती है और वे कानून से ऊपर नहीं हैं। जहां तक नौकरशाहों की सेवा शर्तो का संबंध है तो वे अपने संबंधित सेवा कानूनों के अधीन होती हैं जिनमें सेवानिवृत्ति के नियम इत्यादि शामिल हैं। इसलिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के उक्त प्रावधानों को चुनौती देने का कोई औचित्य नहीं है।
केंद्र सरकार ने यह हलफनामा अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर दाखिल किया है जिन्होंने अपने आवेदन में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को यह निर्देश देने का अनुरोध किया है कि वह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 की भावना के अनुरूप विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के दोषी व्यक्तियों को समान रूप से जीवनभर के लिए प्रतिबंध करे। जबकि केंद्र सरकार ने हलफनामे के जरिये इसे खारिज करने की मांग की है। मालूम हो कि 10 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया था।