Move to Jagran APP

कोरोना की मार से हर कोई बेहाल! भारत में 5 दिनों में 18 फीसद तक बढ़ गई बेरोजगारी की दर

कोरोना वायरस से रुके अर्थव्‍यवस्‍था के पहिए ने सभी का हाल बुरा कर दिया है। आलम ये है कि बीते 5 दिनों में ही बेरोजगारी की दर बढ़कर 6 फीसदद से 24 फीसद से अधिक हो गई है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 17 May 2020 10:38 AM (IST)Updated: Sun, 17 May 2020 10:38 AM (IST)
कोरोना की मार से हर कोई बेहाल! भारत में 5 दिनों में 18 फीसद तक बढ़ गई बेरोजगारी की दर
कोरोना की मार से हर कोई बेहाल! भारत में 5 दिनों में 18 फीसद तक बढ़ गई बेरोजगारी की दर

विवेक कौल। छोटे-बड़े हर व्यापार को शुरू करने के लिए पैसे की जरूरत होती है। जब व्यापार चलता है, तो इससे जुड़े लोग पैसा कमाते हैं। चाहे वे कर्मचारी हों या आपूर्तिकर्ता। व्यापार के चलने से सरकार भी पैसा कमाती है। मुनाफे पर आयकर, इसके उत्पाद शुल्क, माल के अलावा सेवा कर और सीमा शुल्क भी कमाती हैं। इस पैसे को देश के कल्याण के लिए खर्च करती है। मगर पिछले कुछ हफ्तों में ये पूरी प्रक्रिया टूट गयी है। लॉकडाउन की वजह से बड़े और छोटे व्यापार, दोनों बंद पड़े हैं। कोविड 19 के फैलाव को रोकने के लिए यह जरूरी भी था, लेकिन अब ऐसी स्थिति आन पड़ी है कि इलाज बीमारी से भी बदतर लग रहा है।

loksabha election banner

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी का डाटा बताता है कि मई 10 को बेरोजगारी की दर करीब 24 फीसद तक पहुंच गयी है। मार्च 15 को यह दर 6.74 फीसद पर थी। कहने का मतलब यह है कि भारत में औसतन हर चौथा कामगार बेरोजगार है। इस बेरोजगारी की सबसे ज्यादा मार अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वालों को झेलनी पड़ रही है। क्रिसिल के एक हालिया नोट में कहा गया है कि भारत के पास 46.5 करोड़ लोगों का कार्यबल हैं। इसमें से लगभग 41.5 करोड़ व्यक्ति अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं, जहां कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ उपलब्ध नहीं है।

पिछले कुछ हफ्ते शहरों में फंसे अनौपचारिक क्षेत्रों में काम कर रहे प्रवासी कामगारों के लिए मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से बहुत कठिन रहे हैं। बड़े शहरों से सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने मूल स्थानों पर जाने वाले प्रवासियों की कई डरावनी दिल-दहला देने वाली कहानियां भी सामने आयी हैं। लॉकडाउन से घरेलू आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस के द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि लगभग 84 फीसद भारतीय परिवारों में लॉकडाउन के बाद आय में कमी आयी है। इसके अलावा, परिवारों में वर्तमान आर्थिक माहौल का सामना करने की सीमित क्षमता है। केवल 66 फीसद परिवारों के पास एक और हफ्ते से अधिक समय तक चलने के संसाधन है। ग्रामीण परिवारों की आय पर ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

75 फीसद शहरी परिवारों की तुलना में कुछ 88 फीसद ग्रामीण परिवारों की आय में गिरावट दर्ज की गई। इन सब कारकों को ध्यान में रखने के बाद ये कहा जा सकता है कि जीवन जरूरी है, लेकिन जीविका भी उतनी ही जरूरी है। और जीविका के लिए यह जरूरी है कि व्यापार और अर्थव्यवस्था खुल जाये। कम से कम उन इलाकों में जहां पर कोविड-19 का प्रकोप कम है। इस बात का निर्णय स्थानीय सरकारों पर छोड़ दिया जाना चाहिए, क्योंकि जमीनी और वास्तविक हालात की सबसे अच्छी जानकारी उन्हीं के पास होती है।

जानकारों का मानना है कि अगर अर्थव्यवस्था जुलाई तक बंद रही तो, बहुत सारे छोटे व्यापारों का भट्ठा बैठ जाएगा। अगर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की बात करें, तो लॉकडाउन का इस क्षेत्र पर भारी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। केयर रेटिंग्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस क्षेत्र का भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में करीब 30 फीसद हिस्सा है। अगर हम माल निर्यात की बात करें, तो इस क्षेत्र का 48 फीसद हिस्सा है। अगर रोजगार की बात करें तो इस क्षेत्र में 11.1 करोड़ से ज़्यादा लोग काम करते हैं। इसलिए ये कहना सटीक होगा कि काफी लोगों की यहां जीविका दाव पर लगी हुई है और जब तक कोविड-19 का कोई टीका नहीं आ जाता, तो कहीं ना कहीं हम लोगों को इस बीमारी के साथ सारे एहतियात बरतते हुए रहने की आदत डालनी पड़ेगी।

सरकार की तरफ से भी जीविका को थोड़ा- बहुत मज़बूत करने के लिए, कुछ कदम उठाये जा रहे हैं। पिछले गुरुवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के प्रावधानों के अनुसार प्रवासी श्रमिकों को काम प्रदान करने की सलाह दी है। सीतारमण ने ये भी बताया कि पिछले साल मई की तुलना में योजना के तहत 40-50 फीसद अधिक लोगों ने नामांकन किया है। आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले दिनों की तुलना में प्रति घर प्रदान किए गए रोजगार के औसत दिन बढ़ गए हैं।

इसके अलावा योजना में दी जा रही औसत मजदूरी की दर इस साल 202 रुपये प्रतिदिन हो गई है। पिछले साल यह 182 रुपये प्रतिदिन थी। इससे पहले सरकार महिला जन धन खातों में तीन महीने तक 500 रुपये प्रति महीना डालने का निर्णय भी लिया था। ये भी कोविड-19 की मार सह रहे परिवारों की मदद करने का छोटा- सा कदम था। एक काम जो आसानी से हो सकता था, वह यह था कि हर जन- धन खाते में तीन महीने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से 1,000 रुपये जमा किए जाने चाहिए थे, न कि सिर्फ महिलाओं के जनधन खातों में 500 रुपये। जनधन खातों की कुल संख्या 38.41 करोड़ है।

इस कदम से सरकार पर लगभग 1.15 लाख करोड़ रुपये का खर्च आता और देश में प्रवासियों और गरीबों के दर्द को कम करने में बहुत अच्छा कदम होता। और अंत में यह कहना जरूरी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड-19 के प्रकोप के पहले से ही कुछ अच्छी स्थिति में नहीं थी। इसलिए केंद्र सरकार ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं है। इस वजह से यह बहुत जरूरी हो गया कि अर्थव्यवस्था और व्यापार को वापस खोला जाए। और कोई विकल्प बचा भी नहीं है।

(वरिष्ठ अर्थशास्त्री और इजी मनी ट्राइलॉजी के लेखक)

ये भी पढ़ें:- 

एयरोबायोसिस स्टार्ट अप ने तैयार किया कम कीमत वाला ‘जीवन लाइट’ वेंटिलेटर, एप से होगा संचालित

एंट्रेंस, एग्‍जाम को लेकर छात्रों में मन में हैं कई सवाल, लेकिन पॉजिटिव रहना ही है समय की मांग


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.