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यूएन में हिंदी को लेकर कमजोर पड़ा भारत, 129 देशों से मदद की दरकार

भारत की कोशिश है कि वो हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने पर आने वाली सालाना 41 करोड़ रुपये की लागत खुद वहन कर ले।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Wed, 03 Jan 2018 08:10 PM (IST)Updated: Wed, 03 Jan 2018 10:38 PM (IST)
यूएन में हिंदी को लेकर कमजोर पड़ा भारत, 129 देशों से मदद की दरकार
यूएन में हिंदी को लेकर कमजोर पड़ा भारत, 129 देशों से मदद की दरकार

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने लोकसभा में स्पष्ट कर दिया कि आखिरकार संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की कोशिशों को सफलता क्यों नहीं मिल पा रही है? दरअसल, इसके लिए संयुक्त राष्ट्र का एक प्रावधान ही सबसे बड़ी अड़चन है। इस प्रावधान के मुताबिक आधिकारिक दर्जा बनने के बाद पूरी लागत सभी सदस्य देशों को समान तौर पर बांटनी होगी। ऐसे में यूएन के आर्थिक तौर पर कमजोर देश भारत के प्रस्ताव का समर्थन करने को तैयार नहीं है। भारत की कोशिश है कि वो हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने पर आने वाली सालाना 41 करोड़ रुपये की लागत खुद वहन कर ले। लेकिन इसके लिए यूएन के सदस्य देशों को राजी कराना होगा क्योंकि अंतत: लागत में हिस्सेदारी का भुगतान सदस्य देशों के जरिए ही होगा।

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विदेश मंत्री स्वराज ने प्रश्नकाल में बताया, ''भारत 40 करोड़ रुपये नहीं बल्कि 400 करोड़ रुपये की लागत आती है तो उसे भी वहन करने को तैयार है। लेकिन समस्या यह है कि हमें इसके लिए 129 देशों को समझाना होगा और उनका समर्थन लेना होगा। किसी भी दूसरी भाषा को आधिकारिक दर्जा देने के लिए यूएन के 193 सदस्यों में से 129 सदस्यों का समर्थन चाहिए। भारत यह समर्थन भी हासिल कर सकता है लेकिन यूएन की शर्त होती है कि भाषा के लागू करने पर आने वाली लागत सभी देश एक साथ वहन करेंगे। भारत इसके लिए दूसरे देशों को मनाने की कोशिश कर रहा है।'' उन्होंने बताया कि भारत उन देशों के साथ संपर्क में है जहां हिंदी भाषी लोग रहते हैं मसलन मारीशस, सूरीनाम, फिजी वगैरह। इनके जरिए प्रस्ताव लाने की कोशिश की जा रही है।

थरुर को सुननी पड़ी खरी खरी

एक तरफ जहां पूरा सदन हिंदी को यूएन में आधिकारिक दर्जा देने की मांग कर रहा था वहीं पूर्व विदेश राज्य मंत्री व कांग्रेस के सांसद शशि थरुर ने इस औचित्य पर ही सवाल उठा दिया। इस पर उन्हें विदेश मंत्री स्वराज की खरी खरी भी सुननी पड़ी। थरुर ने सवाल उठाया कि सरकार यह कोशिश क्यों कर रही है जबकि दुनिया में सिर्फ एक ही देश भारत में हिंदी को सरकार की तरफ से दर्जा दिया गया है।

साथ ही यह कदम भविष्य में अगर कोई तमिलनाडु या बंगाल का विदेश मंत्री बनता हो तो उस पर हिंदी थोपने जैसा होगा। गैर हिंदीभाषी सांसदों ने उनकी बात पर जोर से मेज थपथपाई लेकिन स्वराज ने सभी की बोलती बंद कर दी। स्वराज ने कहा कि भारत के अलावा फिजी, सूरीनाम, मारीशस समेत कई देशों में हिंदी बोली जाती है। अगर आप यह समझते हैं कि सिर्फ भारत में ही हिंदी बोली जाती है तो यह आपकी अज्ञानता है।

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