यूजीसी ने किया शिक्षा में बदलाव, सिर्फ शपथ पत्र पर मिलेगी ओपेन कोर्स चलाने की अनुमति
यूजीसी ने मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के चलाए जाने वाले पाठ्यक्रमों के लिए तय नियमों में बदलाव किया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के सख्त नियमों में उलझे उच्च शिक्षण संस्थानों को यूजीसी ने बड़ी राहत दी है। ऐसे संस्थानों को नैक (राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद) रैंकिंग की शुरुआती बाध्यता से मुक्त रखते हुए सिर्फ एक शपथ पत्र पर ही मुक्त और दूरस्थ पाठ्यक्रमों को चलाने की अनुमति देने का फैसला लिया है। हालांकि ऐसे संस्थानों को अनुमति मिलने के दो साल के भीतर नैक की रैकिंग हासिल करना जरूरी होगा अन्यथा इन्हें दी गई अनुमति रद्द कर दी जाएगी। अभी तक उच्च शिक्षण संस्थानों को इन पाठ्यक्रमों को शुरु करने के लिए पहले नैक की रैकिंग हासिल करनी जरूरी थी, जो कि नए संस्थानों के लिए संभव नहीं था।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्च शिक्षण संस्थानों की इन्हीं दिक्कतों को देखते हुए मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के चलाए जाने वाले पाठ्यक्रमों के लिए तय नियमों में बदलाव किया है। वर्ष 2017 में इनके लिए बनाए गए नियमों के बाद से यह तीसरा बदलाव है।
उच्च शिक्षण संस्थानों को नैक की शुरुआती बाध्यता से किया मुक्त
यूजीसी ने मुक्त और दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रमों की अनुमति के लिए जो नियम तैयार किए थे, उसके तहत यह अनुमति पांच साल पुराने और नैक की रैकिंग ( औसत रैकिंग 3.26) हासिल करने वाले संस्थानों को ही मिल सकती थी। ऐसे में संस्थानों के लिए सबसे कठिन नैक की रैकिंग हासिल करना होता था, क्योंकि इसके लिए उन्हें इंफ्रास्ट्रक्चर सहित वह जरूरी मापदंड हासिल करना जरूरी होता था, जो वह कोर्स शुरू करने से पहले नहीं जुटा पाते थे।
संस्थानों का तर्क रहता था कि वह किस आधार पर जरूरी मापदंड जुटाए, जब उनके यहां छात्रों का अभी कोई नामांकन ही हुआ है। संस्थानों से इसके तहत चार अक्टूबर तक आवेदन भी करने को कहा है।
यूजीसी ने इसके साथ ही मुक्त और दूरस्थ कोर्सो को चलाने वाले संस्थानों के लिए कुछ नए मापदंड भी तय किए है, इसके तहत संस्थानों को प्रत्येक सौ छात्रों पर उस विषय से संबंधित एक योग्य परामर्शक की नियुक्ति को जरूरी बताया है।
इसके अलावा प्रयोगशाला, पुस्तकालय, ऑन-लाइन संपर्क तथा सूचना एवं संचार प्रोद्यौगिकी सुविधाओं को छात्रों की संख्या के अनुपात में जुटाने को जरूरी बताया है। वहीं नए नियमों के तहत मुक्त विश्वविद्यालयों को इससे अलग रखा गया है।