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कैसे दो आइएएस में प्यार हुआ, इकरार हुआ, तकरार हुई और फिर...

लाल बहादुर शास्त्री प्रशासन अकादमी मसूरी में ट्रेनिंग के दौरान दोनों के बीच गाढ़े प्रेम की शुरआत हुई थी, हालांकि अब दोनों साथ नहीं हैं।

By Vikas JangraEdited By: Published: Sat, 18 Aug 2018 08:21 PM (IST)Updated: Sun, 19 Aug 2018 09:14 AM (IST)
कैसे दो आइएएस में प्यार हुआ, इकरार हुआ, तकरार हुई और फिर...
कैसे दो आइएएस में प्यार हुआ, इकरार हुआ, तकरार हुई और फिर...

भोपाल [सौरभ खंडेलवाल,नईदुनिया]। 'नीथरा कौल। अकेली, सुंदर, तेज और कुशल आईएएस। जो सिर्फ सही काम करने में विश्वास रखती है, लेकिन उसके जीवन में सबकुछ सही नहीं है। उसका दिल टूटा है, काम में मिसफिट है और निराश है। इसकी वजह है उनकी प्रेम कहानी। दूसरी तरफ है, अविनाश राठौड़। भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में नीथरा के बैचमेट। नीथरा उसे बहुत प्यार करती थी।

महत्वाकांक्षी अविनाश की जिंदगी नीथरा से उलट है। उसके पास सबकुछ है। शानदार कॅरियर, सुंदर पत्नी और खूबसूरत बच्चा। लाल बहादुर शास्त्री प्रशासन अकादमी मसूरी में ट्रेनिंग के दौरान दोनों के बीच गाढ़े प्रेम की शुरुआत हुई थी, हालांकि अब दोनों साथ नहीं हैं।'


किस्मत कैसे एक बार फिर दोनों को एक साथ लाती है। क्या कुछ अनर्थ होता है? कैसे अविनाश दुश्मनी की वजह से एक भंवरजाल में फंस जाता है? क्या नीथरा को उसका प्यार मिलेगा? इसे एक किताब के रूप में लिखा है, 2008 बैच की आईएएस और जबलपुर कलेक्टर छवि भारद्वाज ने। 'लाइक अ बर्ड ऑन द वायर' नाम से यह उपन्यास हाल ही में प्रकाशित हुआ है।

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माना जा रहा है कि मप्र में पहली बार किसी आईएएस अफसर ने आईएएस अफसर की ही प्रेम कहानी पर कोई किताब लिखी है। इस किताब में नीथरा और अविनाश के अलावा कुछ अन्य आईएएस अफसर और उनकी पत्नी के भी पात्र हैं। 1988 में महाराष्ट्र बैच के आईएएस उपमन्यु चटर्जी ने 'इंग्लिश अगस्त' नाम से एक उपन्यास लिखा था, बाद में इस पर फिल्म भी बनी थी।
 
जीवन और राजनीतिक दबाव की झलक भी
भले ही यह उपन्यास हो, लेकिन इस बहाने किताब में आईएएस अफसरों का जीवन और काम के दौरान उनके पास आने वाले राजनीतिक दबाव की झलक देखने को मिलती है। इसके अलावा आईएएस के अधीनस्थ उनके बारे में किस तरह से बातें करते हैं, इसका उल्लेख भी है।

कुछ घटनाएं लिखते-लिखते बन गई किताब जबलपुर कलेक्टर छवि भारद्वाज ने बताया कि कुछ साल पहले छुट्टियों के दौरान मेरे मन में कुछ घटनाएं आई थीं तो मैंने उसे लिख लिया था। कोई कहानी मेरे दिमाग में नहीं थी या योजना बनाकर इस किताब का नहीं लिखा। इसे पूरा करते-करते यह उपन्यास बन गया।


डिंडौरी में कलेक्टर रहते हुए इस किताब को पूरा किया, लेकिन बाद में समय नहीं मिलने की वजह से अंतिम रूप नहीं दे सकी। यह किताब किसी सत्य घटना या व्यक्ति पर आधारित नहीं है। हालांकि किताब के कुछ हिस्से ऐसे हो सकते हैं, जो एक प्रशासक के तौर पर सामने आई स्थिति से मिलती--जुलते हों।


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