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Holi Special: टेंशन में हैं टीवी वाले, क्या दिखाएं होली पर

भाबीजी घर पर हैं के भरभूतिजी उर्फ विभूति जी होली का फायदा उठाकर और ज्यादा छिछोरे हो गए हैं यह दिखा दिया जाए होली पर?

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 08:22 PM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 08:22 PM (IST)
Holi Special: टेंशन में हैं टीवी वाले, क्या दिखाएं होली पर
Holi Special: टेंशन में हैं टीवी वाले, क्या दिखाएं होली पर

बड़ी मुसीबत है कि होली पर आखिर क्या दिखाएं टीवी चैनल। जो पिट गए ऐसे कलाकारों के हिट गीत भी चार्म पैदा नहीं करते और धारावाहिक तो पहले से ही लथपथ हैं छिछोरेपन से। मनोरंजन जगत की इसी मजबूरी पर मजे ले रहे हैं आलोक पुराणिक...

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टीवी चैनलों की आफत है। होली हर साल आती है, कुछ नया दिखाना है। 'होली खेले रघुबीरा अवध में'-अमिताभ बच्चन का यह होली गीत अब कतई फर्जी मालूम होता है।अमिताभ बच्चन सरीखा शाणा मानुष होली खेलने में टाइम वेस्ट नहीं करता, यह सब जानते हैं। होली खेले रघुबीरा के नृत्य के दौरान भी अगर उन पे ऑफर आ जाए कि प्लीज इस रंग का प्रचार कर दो, गीत के बीच यह कह दो कि ये वाला रंग ही होली खेलने के लिए उपयुक्त है, अमिताभ बच्चन गीत रोककर ब्रांड एंबेसडर बन जाएंगे।

अमिताभ के होली गीत फर्जी लगते हैं। अमिताभ बच्चन इस कदर ढेरों आइटम बेच रहे हैं कि वो अब सिर्फ कुछ बेचते हुए ही अमिताभ बच्चन लगते हैं। अमिताभ बच्चन किसी और शेप में अमिताभ बच्चन नहीं लगते। अमिताभ बच्चन होना यानी कुछ बेचना। 'डॉन की तलाश तो सौ ब्रांडों के मार्केटिंग मैनैजर कर रहे हैं!' यह डायलॉग कतई सटीक लगता है अमिताभ बच्चन पर।

तो अमिताभ बच्चन को कितना दिखाएं होली पर, कुछ नया दिखाइए। शाह रुख खान इन दिनों बेरोजगार टाइप चल रहे हैं, फिल्में फ्लॉप जा रही हैं। पब्लिक उन्हें फिल्मों में तो देखना नहीं चाहती तो होली गीतों के जरिए क्यों देखेगी। फिर क्या दिखाएं होली पर? बलम पिचकारी का प्रख्यात होली गीत-'बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारी'- वाली दीपिका पादुकोण के बलम रणवीर सिंह हो गए हैं। इस गीत के हीरो रणबीर कपूर अभी तक किसी के बलम न हो पाए हैं, बलम इन वेटिंग हैं। यह गीत अब पुराना हो लिया है। इस गीत के बालमात्मक रिश्ते अब अस्त-व्यस्त पड़े हैं।

होली पर क्या दिखाएं- कवि सम्मेलन, हास्य कवि सम्मेलन का वक्त फिलहाल न दिखता, क्योंकि पाकिस्तानी आतंक से देश कराह रहा है तो वीर रस के कवि को बुलाओ। उसी कवि को बुलाओ, जो अब तक हजार बार पाकिस्तान को निपटा चुका है। रावलपिंडी में तिरंगा फहरा चुका है। फहराता ही जा रहा है। अब तो वीर रस के कवि का पुत्र भी लाहौर-रावलपिंडी को मंच से निपटाने लगा है। इतनी बार निपट लिया पाकिस्तान मंच

से फिर भी निपट नहीं रहा है। वीर रस का कवि चाहता है कि वह निपटे भी नहीं, पोते को भी एक दिन मंच से लाहौर-रावलपिंडी निपटाने का मौका मिलेगा। पाकिस्तान बहुत काम आता है, पाक सेना के जनरलों के लिए, पाक के भ्रष्ट अफसरों के लिए, भ्रष्ट नेताओं के लिए और वीर रस के कवियों के लिए।

मैंने वीर रस के एक कवि से अर्थशास्त्र डिस्कस किया। मैंने उसे बताया कि पाकिस्तान के फाइनेंस के पीछे चीन है। चीन रकम देता है तो पाकिस्तान चलता है। चीन यह रकम उन स्मार्टफोन से कमाता है, जो भारतवासी खरीदते हैं। भारत में बिकने वाले दस स्मार्टफोन में से सात चाइनीज हैं। इन चाइनीज फोन को हमारे बड़े

क्रिकेटर, फिल्म स्टार बेचते हैं। पाकिस्तान से लडऩा है तो मंच से चीन के खिलाफ जंग छेड़ो। मंच से बीजिंग और चीन के शहरों को निपटाओ।

कवि बोला-मुझे चीन के दस शहरों के नाम भी नहीं पता। फिर पब्लिक चीन को निपटाने में दिलचस्पी न दिखाती। पब्लिक रावलपिंडी को निपटते देखना चाहती है। पब्लिक लाहौर को निपटते देखना चाहती है। मैंने कवि को समझाया बेट्टे पाकिस्तान न निपटने का, चीन को निपटा ले। चीन को निपटाने का काव्य-कारोबार अभी जोरदार नहीं है तो चीन न निपट पा रहा है तो होली पर हास्य कवि सम्मेलन न हो सकता।

तो... तो... तो... क्या दिखाएं होली पर? होली पर कुछ नया दिखाना है। देशभक्ति वाले अपनी फिल्में 26 जनवरी को दिखा गए। कंगना रनौत की रानी झांसी वाली फिल्म उतना बिजनेस न कर पा रही है, जितने की उनको उम्मीद थी। देशभक्ति का माहौल थोड़ा बदल सा लिया है, अंग्रेजों के खिलाफ देशभक्ति अब वैसी नहीं उबलती, जैसे पाकिस्तान के खिलाफ उबलती है। पाकिस्तान के खिलाफ फिल्में बनाने का सीजन है यह।

टीवी सीरियलों में होली पर क्या दिखाएं?- भाबीजी घर पर हैं के भरभूतिजी उर्फ विभूति जी होली का फायदा उठाकर और ज्यादा छिछोरे हो गए हैं, यह दिखा दिया जाए होली पर? पर...पर...पर विभूति जी और तिवारी जी होली से पहले ही जितनी छिछोरगर्दी दिखा देते हैं, उसके मुकाबले और ज्यादा छिछोरगर्दी ये लोग क्या दिखा

देंगे! भारतीय टीवी सीरियलों के सामने एक चुनौती यह आ खड़ी हुई है कि कैसे-कैसे छिछोरगर्दी में नवाचार किया जाए।

नए-नए आयाम कैसे लाए जाएं?  इंसानों में छिछोरगर्दी के लगभग सारे आयाम छान लिए गए हैं, सो भारतीय टीवी सीरियलों पर नागिनों और चुड़ैलों तक को छिछोरगर्दी में उतारा जा रहा है। मन करता है कभी इच्छाधारी नाग या चुड़ैल बन जाऊं और टीवी की चुड़ैलों से कहूं-तुम काहे छिछोरगर्दी में अपना नाम खराब कर रही हो। ये सब काम भरभूति जी और तिवारी जी के लिए छोड़ दो, उनका तो धंधा-रोजगार है, तुम तो चुड़ैल हो, आराम से कहीं किले-खंडहर में लटककर चैन से रहो। पर मुझे चुड़ैलों का जवाब पता है। वो कहेंगी कि ये टीवी चैनल वाले वहां भी चैन से कहां रहने देते हैं? भानगढ़ किले पर नए-नए भूतं-चुड़ैलों की तलाश में कोई न कोई चैनल वाला रोज ही पहुंचा रहता है।  तो मूल सवाल वही है कि आखिर होली पर नया क्या दिखाया जाए? खैर, छोडि़ए सब टीवी पर, कंगना रनौत को देखें जो नाराज हैं इस बात पर कि अंग्रेजों के खिलाफ देशभक्ति में अब वह बात क्यों न रही!


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