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प्रवासी मजदूरों के मामले पर तुषार मेहता के तीखे बोल, न्यायपालिका को धमकाने का प्रयास: सिब्बल

लॉकडाउन में सरकार की जनता से सोशल डिस्टेंसिंग इतनी बढ़ गई है कि नागरिकों के दुख-दर्द का न उसे भान है और न ही उसके पास कोई समाधान।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 31 May 2020 08:23 PM (IST)Updated: Sun, 31 May 2020 08:23 PM (IST)
प्रवासी मजदूरों के मामले पर तुषार मेहता के तीखे बोल, न्यायपालिका को धमकाने का प्रयास: सिब्बल
प्रवासी मजदूरों के मामले पर तुषार मेहता के तीखे बोल, न्यायपालिका को धमकाने का प्रयास: सिब्बल

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा पर कई हाईकोर्टो के निर्णयों के खिलाफ विवादित बोल के जरिये एतराज जताने वाले सालिसिटर जनरल तुषार मेहता को कांग्रेस ने आड़े हाथों लिया है। पार्टी ने कहा है कि मजदूरों की बेबसी का मामला सामने लाने वाले संगठनों और पत्रकारों के साथ हाईकोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कार्ट में आपत्तिजनक टिप्पणी कर सालिसिटर जनरल ने लोकतांत्रिक मर्यादा की सीमाएं लांघी है। सालिसिटर जनरल का यह बयान लोकतांत्रिक संस्थाओं पर लगातार प्रहार कर उन्हें कमजोर करने के प्रयास का एक और उदाहरण है।

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सिब्बल ने कहा- मेहता के बयान से साफ है कि मोदी सरकार जनता के दुख-दर्द को नहीं समझती

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने रविवार को इस मुद्दे पर विशेष वीडियो प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि तुषार मेहता के बयान से यह भी साफ है कि मोदी सरकार जनता के दुख-दर्द को नहीं समझती।

मजदूरों के दुख दर्द से सरकारी ने बनाई सामाजिक दूरी

कोरोना लॉकडाउन में बीते दो महीने से अधिक से लगातार मुसीबतों का सामना कर रहे प्रवासी मजदूरों और नागरिकों से सरकार की सामाजिक दूरी बढ़ गई है।

सालिसिटर जनरल के तीखे बोल, न्यायपालिका को धमकाने का प्रयास: सिब्बल

मजदूरों के पलायन पर अलग-अलग हाईकोर्ट के निर्देशों को सालिसिटर जनरल द्वारा समानांतर सरकार चलाया जाना बताना सीधे तौर पर न्यायपालिका को धमकाने का मामला दिखता है। इसमें कोई शक नहीं कि यह सरकार के घोर अहंकारी रवैये का सबूत है और लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा नहीं होना चाहिए।

मोदी सरकार की गलतियों के खिलाफ उठाई जाने वाली आवाज को दबाया जाता है- कपिल

सिब्बल ने कहा कि न्यायिक फैसलों के खिलाफ सरकार पहले भी कई मौकों पर इसी तरीके का रुख दिखा चुकी है और प्रतिकूल निर्णय देने वाले जजों का ट्रांसफर किया जा चुका है। गुजरात हाईकोर्ट में प्रवासी मजदूरों के मामले की सुनवाई कर रही बेंच को बदल दिया गया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार व्यवस्था की गलतियों और खामियों के खिलाफ उठाए जाने वाली हर आवाज को दबाने का प्रयास करती रही है।

जिस आक्रामकता से न्यायपालिका को धमकाया गया वह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं

मगर जितनी आक्रामकता से सुप्रीम कोर्ट के भीतर न्यायपालिका को धमकाया गया वह लोकतंत्र और न्यायिक स्वतंत्रता दोनों के लिए ठीक नहीं है। सिब्बल ने कहा कि सरकार ने मजदूरों की बेबसी सामने लाने वाले पत्रकारों को विनाश के अग्रदूत से लेकर गिद्ध तक करार दिया जो साफ दर्शाता है कि सरकार अपना संस्कार भूल गई है और कांग्रेस इसकी निंदा करती है।

लॉकडाउन में सरकार को नागरिकों के दुख-दर्द का न उसे भान है और न ही कोई समाधान

लॉकडाउन में मजदूरों के पलायन से लेकर अर्थव्यवस्था के धराशायी होने का जिक्र करते हुए सिब्बल ने कहा कि सरकार की जनता से सोशल डिस्टेंसिंग इतनी बढ़ गई है कि नागरिकों के दुख-दर्द का न उसे भान है और न ही उसके पास कोई समाधान। इसलिए इतिहास के पन्नों में मौजूदा सरकार को विकास नहीं बल्कि विनाश के अग्रदूत के रुप में याद रखा जाएगा। कोरोना महामारी से पहले 24 मार्च तक ट्रिपल तलाक, सीएए-एनआरसी-एनपीआर, अनुच्छेद 370 से लेकर गैरकानूनी गतिविधि संशोधन कानून सरकार के एजेंडे थे और शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और गरीबों की मुसीबतें जैसे मसले उसकी प्राथमिकता में थे ही नहीं। इसके विपरीत सरकार विभाजनकारी एजेंडा आगे बढ़ाकर लोगों के बीच दूरियां बढ़ा रही थी, लेकिन कोरोना महामारी की मुसीबत में लोगों ने एक दूसरे की मदद के लिए हाथ बढ़ाकर सरकार के इस इरादे पर पानी फेर दिया है।


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