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1200 साल पहले यूरोप से पूरी दुनिया में फैला था यह रोग, आज बना महामारी

दुनियाभर में होने वाली कुल मौतों की 10वीं मुख्य वजह टीबी है। शोधकर्ताओं के मुताबिक बारह सौ साल पहले यूरोप से यह रोग पूरी दुनिया में फैला।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 19 Oct 2018 11:51 AM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2018 12:23 PM (IST)
1200 साल पहले यूरोप से पूरी दुनिया में फैला था यह रोग, आज बना महामारी
1200 साल पहले यूरोप से पूरी दुनिया में फैला था यह रोग, आज बना महामारी

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दुनियाभर में होने वाली कुल मौतों की 10वीं मुख्य वजह टीबी (तपेदिक) है। लंदन ग्लोबल यूनिवर्सिटी और नॉर्वे इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं के मुताबिक बारह सौ साल पहले यूरोप से यह रोग पूरी दुनिया में फैला। तेरहवीं और चौदहवीं सदी में इसने अमेरिका, अफ्रीका और एशिया को चपेट में ले लिया। ये अफ्रीका और कोरिया में आज महामारी बना हुआ है।

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क्या है टीबी

टीबी यानी ट्यूबरकुलासिस को कई नामों से जाना जाता है जैसे इस क्षय रोग, तपेदिक, राजयक्ष्मा, दण्डाणु इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। टीबी एक संक्रामक बीमारी है और इससे ग्रसित व्यक्ति में शारीरिक कमजोरी आ जाती है और इसके साथ ही उसे कई गंभीर बीमारियां होने का भी खतरा रहता है। टीबी सिर्फ फेफड़ों का ही रोग नहीं है, बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों को भी यह प्रभावित करता है।

टीबी के प्रकार

आमतौर पर टीबी तीन तरह का होता है। यह पूरे शरीर को संक्रमित करता है। टी.बी के तीन प्रकार हैं- फुफ्सीय टीबी, पेट का टीबी और हड्डी का टीबी। तीनों ही प्रकार के टीबी के कारण, पहचान और लक्षण भिन्न होते हैं। यही नहीं, तीनों प्रकार के टीबी का इलाज भी अलग-अलग तरह से किया जाता है।

बचाव ही इलाज है...

टीबी से बचने के लिए अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को बढ़िया रखें। न्यूट्रिशन से भरपूर खाना खासकर प्रोटीन डाइट (सोयाबीन, दालें, मछली, अंडा, पनीर आदि) भरपूर मात्रा में लें। अगर आपकी इम्युनिटी कमजोर है तो टीबी के बैक्टीरिया के एक्टिव होने की आशंका ज्यादा रहती है। असल में कई बार टीबी का बैक्टीरिया शरीर में तो होता है, लेकिन अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण यह एक्टिव नहीं हो पाता और टीबी नहीं होती।

बड़ा खतरा

रिपोर्ट आगाह करती है कि दुनिया के कुल टीबी मरीजों में भारत सहित जिन सात देशों की 64 फीसद हिस्सेदारी है, उनमें रोगियों की संख्या 2025 तक 90 फीसद तक हो जाएगी।

कसी कमर: टीबी की पहचान कर मरीजों के तुरंत उपचार के लिए डब्ल्यूएचओ ने एक प्रोग्राम लांच किया है जिसमें 2018 से 2022 तक 40 लाख लोगों का इलाज, देखभाल और 30 लाख नए मरीजों की पहचान कर समय पर इलाज देना लक्ष्य है।

टीबी के मरीजों में शीर्ष पर भारत

इस गंभीर बीमारी पर भारत की तस्वीर भी विचलित करने वाली है। भारत में 2016 में टीबी ने चार लाख से ज्यादा जानें ली और 27 लाख से ज्यादा नए मरीज सामने आए। इनमें से 19.4 लाख टीबी के केस ही निजी और सार्वजनिक रूप सें दर्ज किए।

एक तिहाई नहीं कराते इलाज

दुनिया में नए मरीजों की संख्या में हर साल दो फीसद कमी दर्ज की जा रही है। टीबी से ग्रसित एक करोड़ लोगों में से सिर्फ 60.4 लाख ही इलाज करा रहे हैं और राष्ट्रीय आंकड़ों में दर्ज हैं। वहीं 30.6 लाख ऐसे टीबी के रोगी हैं जिनके इलाज या चेकअप का कोई रिकार्ड दर्ज नहीं है। इनमें बच्चों की संख्या तकरीबन दस लाख है। इलाज न कराने वाले कुल मरीजों में 80 फीसद दस टीबी ग्रसित देशों में मौजूद हैं। भारत और इंडोनेशिया और नाइजीरिया इस सूची में शीर्ष पर हैं।

यूरोप से फैली महामारी

1200 साल पहले यूरोप में टीबी के संक्रमण के मामले सामने आए। इसके 200 साल बाद यानी सन 1400 के आसपास ये रोग एशिया तक पहुंच गया। यूरोप से आए आक्रमणकारी और खोजकर्ता जहां भी गए उन देशों में टीबी के मरीज सामने आने लगे।

चपेट में गरीब देश

शोधकर्ताओं ने पाया कि टीबी का सबसे आम संक्रमण लिनेगे 4 है, जो बारह सौ साल पहले यूरोप में मिला था। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव की वजह से दक्षिण अफ्रीका में कई गरीब देश आज भी इसकी चपेट में हैं। 


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