Move to Jagran APP

घातक ट्यूबरक्लोसिस का मिला नया उपचार, इस आसान इलाज से जड़ से होगा खात्मा

अध्ययन के अनुसार टीबी के उपचार के लिए यदि एंटीबायोटिक के साथ ईवी का इस्तेमाल हो तो बीमारी को जड़ से मिटाया जा सकता है। चूहों पर इसका परीक्षण सफल रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 02:09 PM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 02:14 PM (IST)
घातक ट्यूबरक्लोसिस का मिला नया उपचार, इस आसान इलाज से जड़ से होगा खात्मा
घातक ट्यूबरक्लोसिस का मिला नया उपचार, इस आसान इलाज से जड़ से होगा खात्मा

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा तरीका खोजा है जिससे टीबी का पूरी तरह इलाज हो सकेगा। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नोट्रे डेम के शोधकर्ताओं के अनुसार ट्यूबरक्लोसिस से संक्रमित कोशिका से निकले एक्सट्रासेल्युलर वेसिकल्स (ईवी) से टीबी को हराया जा सकता है। इससे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र भी मजबूत होगा। कोई भी कोशिका नष्ट होते समय अपने बाहर वेसिकल्स या पुटिकाएं उत्सर्जित करती है, जिन्हें ईवी कहा जाता है। टीबी से संक्रमित कोशिका से निकले ईवी में माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस (टीबी फैलाने वाला बैक्टीरिया) का आरएनए पाया जाता है।

loksabha election banner

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बैक्टीरिया की कोशिका से निकले ईवी प्रतिरक्षा तंत्र में पाई जाने वाली श्वेत रक्त कोशिका ‘मैक्रोफेज’ की अपेक्षा संक्रमण को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं। अध्ययन के अनुसार टीबी के उपचार के लिए यदि एंटीबायोटिक के साथ ईवी का इस्तेमाल हो तो बीमारी को जड़ से मिटाया जा सकता है। चूहों पर इसका परीक्षण सफल रहा है।

क्या है टीबी

टीबी यानी ट्यूबरक्लोसिस को कई नामों से जाना जाता है जैसे इस क्षय रोग, तपेदिक, राजयक्ष्मा, दण्डाणु इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। टीबी एक संक्रामक बीमारी है और इससे ग्रसित व्यक्ति में शारीरिक कमजोरी आ जाती है और इसके साथ ही उसे कई गंभीर बीमारियां होने का भी खतरा रहता है। टीबी सिर्फ फेफड़ों का ही रोग नहीं है, बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों को भी यह प्रभावित करता है।

टीबी संक्रमण के कारण

टीबी एक प्रकार के बैक्टेरिया से होता जो संक्रमण से फैलता है। यदि कोई टीबी पीड़ित व्यक्ति आप के आसपास थूकता है, खांसता है, छींकता है, हंसता है या गाना भी गाता है तो संभावना है कि सांस के माध्यम से आप भी टीबी संक्रमणित हो जाएं। लेकिन अगर पीड़ित व्यक्ति जो कम से कम दो सप्ताह से दवा सेवन कर रहा हो तो उससे इसके फैलने की संभावना कम हो जाती है।

टीबी के प्रकार

आमतौर पर टीबी तीन तरह का होता है। यह पूरे शरीर को संक्रमित करता है। टी.बी के तीन प्रकार हैं- फुफ्सीय टीबी, पेट का टीबी और हड्डी का टीबी। तीनों ही प्रकार के टीबी के कारण, पहचान और लक्षण भिन्न होते हैं। यही नहीं, तीनों प्रकार के टीबी का इलाज भी अलग-अलग तरह से किया जाता है।

अलग-अलग टीबी को कैसे पहचानें

फुफ्सीय टीबी- इस प्रकार के टीबी को पहचान पाना काफी मुश्किल होता है। यह अंदर ही अंदर बढ़ता रहता है और जब स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर हो जाती है, तभी फुफ्सीय टीबी के लक्षण उभरते हैं। फुफ्सीय टीबी हर उम्र के व्यक्ति को हो सकती है, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि हर व्यक्ति में इसके लक्षण अलग-अलग होते हैं। सांस तेज चलना, सिरदर्द होना या नाड़ी तेज चलना आदि कुछ इसके लक्षण हैं।

पेट की टीबी- पेट में होने वाली टीबी की पहचान तो और भी मुश्किल होती है, क्योंकि पेट की टीबी पेट के अंदर ही तकलीफ देना शुरू करती है और जब तक इसके बारे में पता चलता है, तब तक पेट में गांठें पड़ चुकी होती हैं। दरअसल पेट की टीबी के दौरान मरीज को सामान्य रूप से होने वाली पेट की समस्याएं ही होती हैं जैसे बार-बार दस्त लगना, पेट में दर्द होना आदि।

हड्डी की टीबी- हड्डी में होने वाली टीबी की पहचान आसानी से की जा सकती हैं, क्योंकि हड्डी में होने वाली टीबी के कारण हडि्डयों में घाव पड़ जाते हैं जोकि इलाज के बाद भी आराम से ठीक नहीं होते। शरीर में जगह-जगह फोड़े-फुंसियां होना भी हड्डी की टीबी होने के लक्षण हैं। इसमें हड्डियां बहुत कमजोर हो जाती हैं और मांसपेशियों में भी बहुत प्रभाव पड़ता है।

बचाव ही इलाज है...

टीबी से बचने के लिए अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को बढ़िया रखें। न्यूट्रिशन से भरपूर खाना खासकर प्रोटीन डाइट (सोयाबीन, दालें, मछली, अंडा, पनीर आदि) भरपूर मात्रा में लें। अगर आपकी इम्युनिटी कमजोर है तो टीबी के बैक्टीरिया के एक्टिव होने की आशंका ज्यादा रहती है। असल में कई बार टीबी का बैक्टीरिया शरीर में तो होता है, लेकिन अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण यह एक्टिव नहीं हो पाता और टीबी नहीं होती।

टीबी से बचना चाहते हैं तो, ज्यादा भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से भी बचना चाहिए। कम रोशनी वाली और गंदी जगहों पर नहीं रहना चाहिए और वहां जाने से भी परहेज करना चाहिए। हो सके तो टीबी के मरीजों के पास न जाएं, जाना जरूरी ही हो तो कम-से-कम एक मीटर की दूरी बनाकर रखें। टीबी के मरीज को हवादार और अच्छी रोशनी वाले कमरे में रहने की सलाह दी जाती है। कमरे में ताजा हवा आने दें और पंखा चलाकर खिड़कियां खोल दें, ताकि बैक्टीरिया बाहर निकल सके।

जिन लोगों को एसी में रहने की आदत है, वे मरीज स्प्लिट एसी से परहेज करें; क्योंकि स्प्लिट एसी में बंद खिड़की, दरवाजों के कारण बैक्टीरिया अंदर ही घूमता रहेगा और दूसरों को भी बीमारी से ग्रसित कर देगा। टीबी के मरीज को हर समय मास्क पहनकर रखना चाहिए। मास्क उपलब्ध न होने पर हर बार खांसने या छींकने से पहले मुंह को नैपकिन से अच्छी तरह से ढक लेना चाहिए। बाद में इस नैपकिन को कवरवाले डस्टबिन में फेंक दें। मरीज को खासतौर पर ध्यान देना चाहिए कि वह इधर-उधर थूके नहीं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.