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TRP Scam: न्‍यूज चैनलों की साख का संकट और धोखा, तीन दशक से चल रहा यह फर्जीवाड़ा

TRP Scam बाजार विशेषज्ञ और निवेशकों का मानना है कि टीआरपी का खेल कोई नया नहीं है बल्कि इंडस्ट्री में यह कम से कम 30 साल से चल रहा है। इस खेल में सिर्फ रिपब्लिक ही नहीं बल्कि कुछ अपवाद को छोड़कर सभी चैनल शामिल हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 16 Oct 2020 09:07 AM (IST)Updated: Fri, 16 Oct 2020 09:07 AM (IST)
TRP Scam: न्‍यूज चैनलों की साख का संकट और धोखा, तीन दशक से चल रहा यह फर्जीवाड़ा
टीआरपी का खेल इंडस्ट्री में यह कम से कम 30 साल से चल रहा है।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। TRP Scam टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट यानी टीआरपी के खेल से जहां टीवी चैनलों और खासकर समाचार चैनलों के लिए साख का संकट पैदा हो गया है, वहीं विज्ञापनदाताओं के लिए यह धोखे के समान है। दरअसल, रेटिंग में अगर लगातार कई हफ्तों तक उछाल देखा जाता है तो एड सेल्स के लोग एजेंसियों को आंकड़े दिखाकर उच्च दरों पर विज्ञापन हासिल करते हैं। जानकारों का कहना है कि दो करोड़ रुपये खर्च करके फर्जी आंकड़े जमा किए जा सकते हैं और उनके जरिये 100 करोड़ रुपये से अधिक का बिजनेस हासिल किया जा सकता है।

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ऐसे होता है खेल : जिन घरों से टीआरपी के आंकड़े लिए जाते हैं उनमें सेटटॉप बॉक्स के साथ एक डिवाइस लगाई जाती है, जिसे बैरोमीटर या पीपल मीटर कहते हैं। जिस घर में बैरोमीटर लगा होता है उसे एक रिमोट दिया जाता है, जिसमें परिवार के सदस्यों के लिए अलग-अलग नंबर होते हैं। जब टीवी चलता है और परिवार का कोई सदस्य अपनी पसंद का न्यूज चैनल या अन्य चैनल देखता है तो उसे स्पेशल रिमोट पर अपना नंबर दबाना होता है। चैनल बंद करते समय भी उसे स्पेशल रिमोट के उसी बटन को दबाना होता है। बैरोमीटर चैनल को और उसको देखने के समय को दर्ज कर लेता है। बैरोमीटर वाले घरों का पता चलने पर साजिश के तहत उनमें किसी एक चैनल पर परिवार के सभी सदस्यों के बटन को ऑन कर दिया जाता है। लंबे समय तक उन्हें ऑन ही रहने दिया जाता है ताकि उस चैनल को देखने वाले से लेकर वहां समय बिताने (टाइम स्पेंट) का बढ़ा हुआ आंकड़ा दर्ज हो जाए।

कई बार साजिशकर्ता उस रिमोट को ही अपने पास रख लेता है और मनमुताबिक उसका इस्तेमाल करता है। उस घर में दूसरा टीवी लगा दिया जाता है, जिसका परिवार इस्तेमाल करता है। अगर किसी क्षेत्र में पांच बैरोमीटर वाले घरों में फर्जीवाड़ा हो जाता है तो खास चैनल की रेटिंग काफी बढ़ जाती है। आरोप है कि मुंबई में भी कई घरों को 500 रुपये दिए गए ताकि वे फक्त मराठी, बॉक्स ऑफिस और रिपब्लिक चैनल को दिनभर देखते रहें।

तीन दशक से चल रहा है यह फर्जीवाड़ा : बाजार विशेषज्ञ और निवेशकों का मानना है कि टीआरपी का खेल कोई नया नहीं है, बल्कि इंडस्ट्री में यह कम से कम 30 साल से चल रहा है। इस खेल में सिर्फ रिपब्लिक ही नहीं बल्कि कुछ अपवाद को छोड़कर सभी चैनल शामिल हैं। जब घरों में सैटेलाइट डिश नहीं हुआ करते थे और टीवी 100 चैनल की क्षमता वाले नहीं होते थे, तब केबल माफिया मनमानी करते थे। वे उन्हीं चैनलों को टॉप 20 में दिखाते थे, जिनसे पैसे मिलते थे। टीआरपी के खेल का एक तरीका यह भी था।


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