आज भी जारी है मूलभूत सुविधाओं के लिए आदिवासियों का संघर्ष
वर्तमान में आदिवासियों का संघर्ष किसी बड़े मुद्दे को लेकर नहीं है, बल्कि रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए है।
[अनुसुईया उइके] देश में जनजाति समाज प्राचीन काल से ही अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्षरत है। वर्तमान में इनका संघर्ष किसी बड़े मुद्दे को लेकर नहीं है, बल्कि रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए है। हालांकि आदिवासियों के विकास और उत्थान के लिए पूर्व में भी और वर्तमान सरकार द्वारा काफी कुछ किया जा रहा है। जनजातियों के विकास के प्रति चिंता आजादी के बाद से ही बनी हुई है। पहली पंचवर्षीय योजना में जनजातियों के कल्याण के लिए 43 विशेष बहुउद्देशीय परियोजनाएं बनी थीं, जिन्हें दूसरी योजना में भी जारी रखा गया। तीसरी योजना में एक अलग कार्यनीति बनाई गई, क्योंकि पहली दोनों योजनाएं सफल नहीं हो सकीं। पांचवीं पंचवर्षीय योजना में जन जातीय क्षेत्रों के सर्वागीण विकास के लिए जनजातीय उप योजना शुरू की गई। इसके साथ ही भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में जनजातियों के कल्याण व उनके शोषण को रोकने के भी व्यापक उपबंध किए गए हैं।
मंत्रालय चला रहा मिशन
वर्तमान में जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जनजाति समुदाय के समग्र विकास और कल्याण के लिए बहुत सारी योजनाएं, कार्यक्रम, मिशन चलाए जा रहे हैं। जनजातियों को आजीविका समर्थन के लिए जनजातीय उत्पादों के विकास तथा विपणन के लिए संस्थागत समर्थन की योजना है। लघु वन उत्पाद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना क्रियान्वित की गई है। जनजातियों के समग्र विकास के लिए भी मंत्रलय स्तर पर विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों को वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके अतिरिक्त विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के विकास के लिए और कम साक्षरता वाले जिलों में अनुसूचित जनजाति की लड़कियों में शिक्षा के सुदृढ़ीकरण के लिए भी केंद्र सरकार द्वारा योजनाएं संचालित हैं। इन सबके अलावा एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय, जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र, जनजातीय उप-योजना क्षेत्रों में आश्रम विद्यालयों की स्थापना, अनुसूचित जनजाति के लड़कों और लड़कियों के लिए छात्रवासों की केंद्रीय प्रायोजित योजना आदि भी जनजाति समुदाय के लिए संचालित हैं। जनजाति समुदाय में शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए भी कई तरह की छात्रवृत्तियां प्रदान की जा रही हैं। इन सबसे जनजातियों के विकास को गति मिली है।
जनजातियों के अधिकारों की रक्षा
स्वतंत्र भारत में जनजातियों के अधिकारों की रक्षा और उनके हितों की देखभाल के लिए कई सारे संवैधानिक प्रावधान भी किए गए। इन प्रावधानों में से एक प्रावधान था संविधान में अनुच्छेद 338 (क) शामिल करना। इसके तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन किया गया है। आयोग द्वारा देश भर में जनजाति समुदाय के तमाम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा, उन पर हो रहे अत्याचारों का निवारण करने की दिशा में सफल कार्य किए जाते रहे हैं। आयोग देश के सभी राज्यों में जनजाति कल्याण, उनके हितों और उनसे संबंधित मामलों, आरक्षण नियमों के पालन की समीक्षा कर सुझाव भी देता रहा है। संविधान के अनुच्छेद 338 (क) के खंड 9 के तहत संघ, राज्य को अनुसूचित जनजाति के हितों को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत मामलों में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से परामर्श का सुझाव दिया गया है। भारतीय संविधान द्वारा प्राप्त सिविल न्यायालय की शक्तियों से युक्त आयोग अपने संवैधानिक कृत्यों का निर्वहन लगातार कर रहा है और वंचित शोषित तथा पीड़ित जनजातियों को न्याय दिला रहा है।
चुनौतियों पर ध्यान देने की जरूरत
इन सबके बावजूद देश में आज इस संदर्भ में जो सबसे प्रमुख चुनौती पैदा हुई है उस पर ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है। राष्ट्रीय और सामूहिक विकास केवल सरकार के भरोसे रह कर प्राप्त करना संभव नहीं है। समाज के स्तर पर सामूहिक प्रयासों से ही यह संभव है। वर्तमान में देश की जनजातियां कई कारणों से विभिन्न समस्याओं का सामना कर रही हैं। उनके लिए तमाम कानून बनाए गए हैं। अनुसूचित जाति तथा जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 से ही विद्यमान है, किंतु इन समुदायों पर अत्याचार की घटनाएं आज भी समाप्त नहीं हुई हैं। आज भी कई योजनाओं में भूमि अधिग्रहण, अवैध खनन, वन कटाव आदि के कारण ये जनजातियां अपने परिवेश से विमुख होती जा रही हैं। जंगलों के खनन और भूमि अधिग्रहण से पैदा हुई चुनौतियों से भी ये सर्वाधिक प्रभावित हो रही हैं। आज इनकी रक्षा और इनके विकास के प्रति हमें गंभीरता से सोचने की जरूरत है। हमें ऐसी योजनाएं को अमल में लाना होगा जिससे आदिवासियों को कम से कम नुकसान हो। इनके विकास के लिए हम इन क्षेत्रों में खनन आदि से प्राप्त आय का कुछ हिस्सा आदिवासियों के कल्याणकारी योजनाओं में व्यय करने का प्रावधान कर सकते हैं। यह सरकार के प्रति आदिवासियों का विश्वास बढ़ाने वाला होगा।
विकास की राह में आदिवासी
इससे आदिवासी भी विकास की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेंगे। सीएसआर जैसे प्रावधान से इन क्षेत्रों में कुछ गतिविधियां बढ़ी हैं। जाहिर है उनकी शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, पेयजल, बिजली, आवास आदि बुनियादी जरूरतों की पूर्ति ईमानदार प्रशासनिक व्यवस्था के तहत हो तो हम एक शिक्षित, स्वस्थ और उत्पादक लोकतांत्रिक जनजाति समुदाय का निर्माण कर सकते हैं। उनकी सामाजिक असमानता को हम शिक्षा के माध्यम से दूर करने में सफल हो सकते हैं।1इन सबके साथ सबसे अहम है कि जनजाति समाज के जो लोग आज अपनी स्थिति को बेहतर बना चुके हैं वे पीछे रह गए अपने समाज के लोगों के उत्थान के लिए आगे आएं। ऐसे लोग जो विभिन्न तरीके से संघर्ष कर अंतत: सफल हैं तथा एक उन्नत जीवन जी रहे हैं उनकी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि अपने साथ के लोगों को भी आगे बढ़ाने में मदद करें। आज जागरूकता की कमी से कई तरह की समस्याएं निरंतर बनी हुई हैं। कम से कम जनजाति समाज के ये संपन्न लोग उन्हें जागरूक तो कर ही सकते हैं। इससे भी उनकी बहुत सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
लेखक राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में उपाध्यक्ष हैं