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छत्तीसगढ़ : लकड़ी बेचकर बच्चे को पढ़ाया, आदिवासी बच्चे ने फर्स्ट रैंक से पास किया IIT

देश के प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी में अपनी सीट बुक कराकर आदिवासी जनजाति के वमन ने अपने गांव और जाति का नाम रौशन किया है।

By Srishti VermaEdited By: Published: Thu, 15 Jun 2017 09:56 AM (IST)Updated: Thu, 15 Jun 2017 09:56 AM (IST)
छत्तीसगढ़ : लकड़ी बेचकर बच्चे को पढ़ाया, आदिवासी बच्चे ने फर्स्ट रैंक से पास किया IIT
छत्तीसगढ़ : लकड़ी बेचकर बच्चे को पढ़ाया, आदिवासी बच्चे ने फर्स्ट रैंक से पास किया IIT

छत्तीसगढ़ (एएनआई)। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के आदिवासी लड़के वमन मांडवी ने आईआईटी की परीक्षा पास कर एक नई मिसाल कायम की है। वह एक बहुत ही पिछड़े परिवार से आता है जिसका बचपन काफी संघर्ष भरा है। उसके जन्म के 10 महीने के बाद ही उसके पिता की मौत हो गई थी। तब से उसकी मां गांवों में लकड़ी बेचने का काम करती है। लकड़ी बेचकर उसने अपने बेटे को पढ़ाया और आज उसे इस मुकाम तक पहुंचाया है। 

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देश के प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी में अपनी सीट बुक कराकर वमन ने अपने गांव और जाति का नाम रौशन किया है। इतना ही नहीं उसने आईआईटी की मुख्य परीक्षा में फर्स्ट रैंक प्राप्त करके अपनी मां के सपने को एक नई उड़ान दी है। वमन अपनी पढ़ाई अपने गांव के ही सरकारी स्कूल से पूरी की है, जहां उसने दसवीं की परीक्षा में 72 प्रतिशत अंक लाए इसके बाद 76 प्रतिशत अंकों के साथ उसने इंटरमीडिएट पास किया।

वमन की मां मंगली मांडवी कहती हैं कि "उसे अपने बेटे की इस सफलता पर बहुत नाज है। वमन के पिता चामरो राम मांडवी की मौत तब हो गई थी हमारा बेटा दस महीने का था। उनकी मौत के बाद मैंने लकड़ी बेच कर वमन को पढ़ाया लिखाया और बड़ा किया। मेरा सपना था कि उसे पढ़ा लिखा कर एक बड़ा आदमी बनाउं। हम एक ऐसे समाज से संबंध रखते हैं जहां बच्चों को मवेशियों को चराने को कहा जाता है, उन्हें खेतों में काम करने कहा जाता है जिसके कारण उनकी पढ़ाई बाधित होती है। लेकिन इन सबके बावजूद मैंने अपने बेटे वमन को स्कूल पढ़ने के लिए भेजा। वे आगे कहती हैं कि "जिला प्रशासन और सरकार ने उसकी बेटे की इस सफलता के पीछे काफी मदद की है। मुफ्त शिक्षा योजना के तहत ही ये संभव हो पाया है।"

दूसरी तरफ वमन अपनी इस सफलता का पूरा श्रेय अपनी मां को देता है। वमन का गहना है कि, "मैं अपनी मां के सपनों को पूरा करना चाहता हूं। मेरी मां ने मुझे काफी मुश्किलों से इस मुकाम तक पहुंचाया है, और मैं अपनी मां के लिए इंजीनियर बनना चाहता हूं।"

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