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टोल खत्म करा तेल पर सेस बढ़वाने को अड़े ट्रांसपोर्टर

पिछले दिनों आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस और अकोगोवा के बैनर तले एकत्र हुए ट्रांसपोर्टरों ने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात की।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Mon, 09 Jan 2017 08:54 PM (IST)Updated: Mon, 09 Jan 2017 09:25 PM (IST)
टोल खत्म करा तेल पर सेस बढ़वाने को अड़े ट्रांसपोर्टर

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नोटबंदी के दौरान टोलबंदी से चांदी काटने वाले ट्रांसपोर्टर अब सरकार पर टोल टैक्स की वसूली बंद करने और उसकी जगह पेट्रोल/डीजल पर सेस बढ़ाने का दबाव बना रहे हैं। मांगे न माने जाने की स्थिति में उन्होंने देशव्यापी चक्का जाम की चेतावनी भी दे दी है।

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पिछले दिनों आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस और अकोगोवा के बैनर तले एकत्र हुए ट्रांसपोर्टरों ने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात की। इसमें उन्होंने अपनी 18 सूत्री मांगों का नया एजेंडा पेश किया। इसमें वाहनों से टोल वसूलने के बजाय पेट्रोल और डी़जल पर सेस (अतिरिक्त उत्पाद शुल्क) बढ़ाने की मांग रखी गई। अभी केंद्रीय सड़क निधि के लिए पेट्रोल व डी़जल पर प्रति लीटर लगभग साढ़े सात व छह रुपये का सेस लगता है। इससे सालाना तकरीबन 70 हजार करोड़ रुपये की राशि प्राप्त होती है। इसका इस्तेमाल सड़कों के निर्माण एवं रखरखाव में होता है।

ट्रांसपोर्टरों की यह मांग एकदम नई है। पहली मर्तबा वे टोल को पूरी तरह खत्म करने की मांग कर रहे हैं। जबकि इससे पहले वे टोल की एकमुश्त वसूली की वकालत करते थे। स्पष्ट है नोटबंदी के दौरान हुई टोलबंदी का स्वाद उन्होंने चख लिया है और अब वे इसे छोड़ना नहीं देना चाहते। भले ही इससे ट्रकों के साथ-साथ निजी वाहनों पर भी खर्च बढ़ जाए। क्योंकि यदि सरकार ने सेस बढ़ाने की मांग स्वीकार की तो यह डी़जल के साथ पेट्रोल पर भी बढ़ेगा। सरकार की कमजोरी भांप ट्रांसपोर्टर अपनी मांगें बढ़ाते जा रहे हैं। इससे पहले उन्होंने केवल छह सूत्री मांगें रखी थीं।

दरअसल, नोटबंदी से ट्रांसपोर्टरों की लाटरी लग गई है। क्योंकि इस दौरान जहां सरकार ने टोल की वसूली रोके रखी, वहीं पेट्रोल पंपों पर पुराने नोट स्वीकार करने की अनुमति भी दे दी। इससे ट्रांसपोर्टरों को दोहरा लाभ हुआ। उन्हें टोल की बचत तो हुई ही, पुराने नोटों को पेट्रोल पंपों पर खपाकर अपनी काली कमाई सफेद करने का मौका भी मिल गया। यही नहीं, बहती गंगा में हाथ धोते हुए ट्रांसपोर्टरों ने अपने तमाम यार-दोस्तों के पुराने नोट बदलने का ठेका लेकर भी ले लिया और कमीशन के रूप में भी अरबों कमाए।

परिवहन रिसर्च से जुड़ी संस्था फाउंडेशन आफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग (आइएफटीआरटी) के संयोजक एसपी सिंह के अनुसार नोटबंदी के 50 दिनों के दौरान देश के दस लाख बड़े ट्रांसपोर्टरों ने लगभग 90 हजार करोड़ रुपये के काले धन को सफेद किया। टोल स्थगन और पेट्रोल पंप पर पुराने नोट चलने की तारीखों को बार-बार बढ़ाकर सरकार ने उनकी सहायता की। इससे ट्रांसपोर्टरों के हौसले बुलंद हो गए हैं और अब उन्होंने अंगुली पकड़कर पहंुचा पकड़ना शुरू कर दिया है। सरकार को इनके झांसे में नहीं आना चाहिए।


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